Sunday, May 3, 2009

रघुवीर सहाय की कविता गुलामी:-

गुलामी

मनुष्य के कल्याण के लिए
पहले उसे इतना भूखा रखो कि वह और कुछ
सोच न पाए
फिर उसे कहो कि तुम्हारी पहली जरुरत रोटी है
जिसके लिए वह गुलाम होना भी मंजूर करेगा
फिर तो उसको यह बताना रह जायेगा कि
अपनों कि गुलामी विदेशियों की गुलामी से बेहतर है
और विदेशियों की गुलामी वे अपने करते हों
जिनकी गुलामी तुम करते हो तो वह भी भला क्या बुरी है
तुम्हे तो रोटी मिल रही है एक जून .

Saturday, April 25, 2009

रघुवीर सहाय की ये कविता वर्तमान दौर पर एक करारा व्यंग है -

आप की हँसी
निर्धन जनता का शोषण है
कह - कर आप हँसे
लोकतंत्र का अन्तिम क्षण है
कह - कर आप हँसे
सब के सब हैं भ्रस्टाचारी
कह - कर आप हँसे
चारो ओर बड़ी लाचारी
कह - कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे मै सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पाकर फ़िर से आप हँसे

Thursday, March 12, 2009

शील जी की कविता - मध्यम वर्ग

खाते-पीते दहशत जीते , घुटते-पिटते बीच के लोग,
वर्ण धर्म पटखनी लगाता, माहुर गाते बीच के लोग,
घर में घर की तंगी नंगी, भ्रम में भटके बीच के लोग,
लोभ-लाभ की माया लादे , झटके खाते बीच के लोग,
घना समस्याओं का जंगल, कीर्तन गाते बीच के लोग,
नीचे श्रमिक विलासी ऊपर, बीच में लटके बीच के लोग.