हमारे वतन की नई जिन्दगी हो
नई जिन्दगी एक मुकम्मल खुशी हो,
नया हो गुलिस्तां नई बुलबुलें हों
मुहब्बत की कोई नयी रागिनी हो
न हो कोई राजा न हो रंक कोई
सभी हों बराबर सभी आदमी हों
न ही हथकड़ी कोई फसलों को डाले
हमारे दिलों की न सौदागरी हो
ज़ुबानों में पाबंदियाँ हों न कोई
निगाहों में अपनी नयी रोशनी हो
न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन
न ही कोई भी कायदा हिटलरी हो
सभी होंठ आजाद हों मयकदे में
कि गंगो-जमन जैसी दरयादिली हो
नए फैसले हों नई कोशिशें हों
नई मंजिलों की कशिश भी नयी हो।
-गोरख पाण्डे
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