भेडिये की आँखें सुर्ख हैं ।
उसे तब तक घूरो
जब तक तुम्हारी आँखें
सुर्ख न हो जाएं ।
और तुम कर ही क्या सकते हो
जब वह तुम्हारे सामने हों ?
यदि तुम मुहँ छुपा भागोगे
तो तुम उसे
अपने भीतर इसी तरह खडा पाओगे
यदि बच रहे ।
भेडिये की आँखें सुर्ख हैं ।
और तुम्हारी आँखें ?
_सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
उसे तब तक घूरो
जब तक तुम्हारी आँखें
सुर्ख न हो जाएं ।
और तुम कर ही क्या सकते हो
जब वह तुम्हारे सामने हों ?
यदि तुम मुहँ छुपा भागोगे
तो तुम उसे
अपने भीतर इसी तरह खडा पाओगे
यदि बच रहे ।
भेडिये की आँखें सुर्ख हैं ।
और तुम्हारी आँखें ?
_सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
the poem is good enough. it will better if u explain it in a simple manner so that every reader can understand it .
ReplyDeleteShalini Saraswat