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Thursday, July 5, 2012

हिग्स बोसोन - विज्ञान और मानवता के लिए एक अनमोल उपलब्धि

 4 जुलाई 2012 विज्ञान जगत के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए एक यादगार दिन रहा. इस दिन  स्विट्जरलैंड और फ़्रांस की सरहद पर जेनेवा के सर्न लेबोरेटरी के निदेशक रोल्फ ह्यूर ने  दुनिया के जानेमाने वैज्ञानिकों की उपस्थिति में हिग्स बोसोन या ‘गौड पार्टिकिल’ की खोज का ऐलान किया. उन्होंने कहा कि “हमने एक नए कण का अवलोकन किया, जो हिग्स बोसोन से पूरी तरह मेल खाता है. हालाँकि अभी हमारे सामने ढेरों काम पड़े हैं. अब हम यह भी जानते हैं कि हमें किस दिशा में जाना है.” इस अवसर पर इस सूक्ष्म कण की अवधारणा प्रस्तुत करनेवाले दो वैज्ञानिकों में से एक, पिटर हिग्स भी मौजूद थे. किसी ज़माने में उन्होंने कहा था कि अपनी अवधारणा को प्रयोग द्वारा सिद्ध होते वे शायद ही देख पायें. दूसरे वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस की 1974 में ही मृत्यु हो गयी थी.

पाँच हजार से भी अधिक वैज्ञानिकों की टीम के साथ इस खोज में लगे दो शीर्षस्थ वैज्ञानिकों इन्कान्देला और गिआनोत्ती ने इस नए कण के प्रमाण को जटिल वैज्ञानिक शब्दावली में विस्तार से प्रस्तुत किया. हालाँकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अभी और भी निर्णायक रूप से इसकी पुष्टि की जायेगी. यही वह कण है जो इस बात की व्याख्या करता है कि ब्रह्माण्ड में मौजूद किसी भी पदार्थ का रूप और आकार किस चीज से निर्धारित होता है. यह ब्रह्माण्ड की सृष्टि को व्याख्यायित करने वाले बिग बैंग सिद्धांत कि विलुप्त कड़ियों में से एक है.

लगभग आधी सदी से वैज्ञानिक इस रहस्य से पर्दा उठाने में लगे हैं कि ब्रह्माण्ड की उत्पति कैसे हुई. इस दिशा में काफी प्रगति हुई है, सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि इसके विविध पहलुओं को प्रायोगिक सत्य की कसौटी पर परखने की दृष्टि से भी. इस कण की अवधारणा 1960 के दशक में पीटर हिग्स और आइंस्टीन तथा सत्येंद्रनाथ बोस सहित वैज्ञानिकों के पांच अलग-अलग समूहों ने प्रस्तुत की थी. यह उस स्टैण्डर्ड मॉडल को पूर्णता प्रदान करनेवाला एक गायब अंश है जो मूलभूत कणों और प्रकृति के बलों की बिलकुल सही-सही व्याख्या करने में सफल साबित हुआ था. इसके अनुसार मूलभूत कणों का द्रव्यमान हिग्स बोसोनके साथ उनकी परस्पर क्रिया की शक्ति से निर्धारित होती है. हिग्स कणों के बिना ब्रह्माण्ड में मौजूद पदार्थ का कोई द्रव्यमान नहीं होगा, इसीलिए इस कण का वजूद ब्राह्मंड की सही-सही व्याख्या करने के लिए बेहद जरूरी है.

सैद्धांतिक रूप से पूरी तरह स्वीकृत और स्थापित होने के बाद अब इसे प्रयोग से सिद्ध करना बाकी था. इस काम के लिए सर्न लैब के 27 कि.मी. लंबे सुरंग में प्रोटोन तोड़ने वाला एक विराट कोलाइडर लगाया गया. इसके अंदर दो विपरी़त दिशाओं में घूर्णन करते, उच्च ऊर्जा से त्वरान्वित प्रोटोन की दो किरणों को आमने-सामने टकराया जाता है. इसके चलते असंख्य जाने-अनजाने कण पैदा होते है. ऐसे ही लाखों टकरावों के मलबे में वैज्ञानिक सिग्नल की तलाश करते हैं. हिग्स कण का जीवन-काल बहुत ही छोटा होता है- एक सेकेंड का दस हजार अरबवाँ हिस्सा. पैदा होते ही हिग्स बोसोन कई स्तरों पर विनष्ट होता है. फिर प्रयोग के दौरान यह विश्लेषण किया जाता है कि जो चीज अंत में बचती है, क्या वह हिग्स बोसोन का ही अवशेष है. कुल मिला कर यह प्रयोग बहुत ही सूक्ष्म और जटिल है.

हिग्स बोसोन कण के साथ गौड ‘पार्टिकिल’ नाम कैसे जुड़ा? इसकी कहानी यह है कि नोबेल पुरष्कार विजेता वैज्ञानिक लिओन लेदरमान ने 1993 में एक किताब लिखी थी, जिसके शीर्षक (The God Particle: If the Universe Is the Answer, What Is the Question?) में इस शब्द का प्रयोग व्यंजना में किया गया था. उस लेख में यह स्थापित किया गया था कि हिग्स बोसोन की खोज से पदार्थ की संरचना को निर्णायक रूप से समझने में मदद मिलेगी. लेकिन साथ की यह ढेर सारे नए सवालों को भी जन्म देगा. इस अर्थ में यह कण ईश्वर की तरह ही मायावी है.

खुद हिग्स और लेदरमान दोनों ही दृढ भौतिकवादी हैं. ईश्वर का संदर्भ तो व्यंग्यस्वरूप आया था, क्योंकि लेदरमान पहले उस किताब का शीर्षक (goddamn particle) "हे भगवान कण" रखना चाहते थे, लेकिन प्रकाशक इस पर राजी नहीं हुआ. तब कम चलाने के लिए उन्होंने गौड पार्टिकिल रख दिया. बहुत से वैज्ञानिक इस नाम को भ्रामक मानते हैं और इसे बहुत ही नापसंद करते हैं.

मीडिया ने रोचक किस्से गढ़ कर इस नाम को बहुप्रचलित कर दिया. कम बुद्धि वालों को अक्सर अभिधा-लक्षणा में भ्रम हो जाता है. यही कारण है कि कई मूढ़मति लोगों ने इस वैज्ञानिक खोज को ईश्वर की खोज मान कर जश्न भी मना लिया. इसमें यह निहित है कि ऐसे ईश्वर भक्त ईश्वर के अस्तित्व को लेकर संशयग्रस्त हैं, नहीं तो नास्तिक भला ईश्वर की खोज क्यों करेंगे उनके द्वारा ईश्वर का प्रमाण पाकर भक्तगण इतने गदगद भला क्यों होते?

हिग्स बोसन कण की खोज के विषय में मेरी दिलचस्पी बढाने का काम भी हिंदी के ऐसे ही किसी अनोखे पत्रकार ने अब से लगभग ६ महीने पहले की थी. उसने लिखा था कि इस कण की खोज हो जाने पर यह पक्के तौर पर स्थापित हो जायेगा कि ब्रह्माण्ड की रचना ईश्वर ने की. पहले मैंने इसे क्षद्म-विज्ञान का कोई शगूफा समझा, जो आये दिन ईश्वर और आत्मा का अस्तित्व साबित करने के लिए अकाट्य किन्तु हस्यपदक वैज्ञानिक प्रमाण पेश करते रहते हैं. लेकिन जब इस पूरी वैज्ञानिक परियोजना की तह में गया और पता चला कि जल्दी ही इस के परिणाम आने की सम्भावना है तो काफी मजा आया. वह दिन और आज का दिन, जब सुबह-सुबह अखबार से यह सुखद समाचार मिला.

हालाँकि आज भी इस युगांतरकारी घटना के विषय में खास तौर पर हिंदी अखबारों में भ्रामक उक्तियों की भरमार रही. सब का एक ही मकसद था, विज्ञान पर अन्धविश्वास की जीत सिद्ध करना. देशबंधु के एक लेख में पत्रकार यह बात घुंसाने का लोभ संवरण नहीं कर पाया कि- "यह सुनिश्चित करने के लिए हालांकि अभी और अधिक काम करने की आवश्यकता है कि जो उन्होंने  देखा, वह वाकई में कोई ईश्वर है।"

आज की परिस्थितियों में ऐसी घटनाएँ बहुत ही स्वाभाविक हैं. वर्तमान समाज में ज्ञान-विज्ञान पर जिन लोगों का कब्ज़ा है वे अपने निकृष्ट स्वार्थों के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं और बहुसंख्य जनता को अज्ञान के अँधेरे में कैद रखना चाहते हैं. जब तक समाज व्यवस्था पर परजीवियों- धर्मधजाधारियों, सत्ताधारियों और थैलीशाहों का वर्चस्व कायम है, वे विज्ञान को अपनी चेरी बनाये रहेंगे. इसीलिए वैज्ञानिक शोध के साथ-साथ सामाजिक बदलाव भी बहुत जरूरी है. तभी जन-जन में विज्ञान और वैज्ञानिक नजरिया व्यापेगा.

हमारे यहाँ ऐसे अतीत पूजकों की भी कमी नहीं जो मानते हैं कि वेद ही दुनिया के सभी ज्ञान-विज्ञान का एकमात्र और अकाट्य स्रोत है. ऐसे ही किसी किसी भारत व्याकुल महानुभाव ने फेसबुक पर यह टिप्पणी जड़ी कि "वेदों में भी है ईश्वरीय कण का जिक्र... यूरोपीय वैज्ञानिको ने जिस हिग्स बोसॉन से मिलते-जुलते कण को खोजने का दावा किया है उसका व बिग बैंग का सबसे पहला जिक्र वेदों में आता है। वैज्ञानिकों ने हिग्स बोसॉन को गॉड पार्टिकल यानी ब्रह्मकण का नाम दिया है ।"

अतिशयोक्ति को तर्क का छूआ लगते ही भीषण हास्य उत्पन्न होता है. ये अतिशय ज्ञानी यह भी नहीं समझते एकि अपनी इन असंगत बातों से वे वेद का और प्राचीन भारतीय संस्कृति का कितना अधिक अपमान करते हैं.

बाबा आदम ने वर्जित फल खाया और भगवन ने उनको स्वर्ग से भगाया. और अब भगवान को इस सम्पूर्ण विश्व से- गोपुर, नरपुर, नागपुर से अंतिम बिदाई देने के लिए जैसे एक छोटे से कण- हिग्स बोसन की थाह लगना ही काफी है. वैसे थोड़ा-थोड़ा तो विज्ञान की हर खोज ही उन्हे पीछे  सरकाती आ रही थी, अब अलविदा, फातेहा, श्राद्ध, अंतिम अरदास, और जो जिस विधि-विधान से खुश हो, वह सब.

ग़ालिब ने बिलकुल इसी मौके के लिए लिखा था-


निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन,
बहुत बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले.