Saturday, March 29, 2008

इंकलाब चाहिए

नफ़स-नफ़स कदम-कदम बस एक फिक्र दम ब दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है के इंकलाब चाहिए
इंकलाब जिन्दाबाद, जिन्दाबाद इंकलाब -२

जहाँ आवाम के खिलाफ साजिशें हो शान से
जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
जहाँ पे लब्जे अमन एक खौफनाक राज़ हो
जहाँ कबूतरों का सरपरस्त एक बाज़ हो
वहाँ न चुप रहेंगे हम कहेंगे हाँ कहेंगे हम
हमारा हक हमारा हक हमें जनाब चाहिए
जवाब दर सवाल है के इंकलाब चाहिए
इंकलाब जिन्दाबाद, इंकलाब इंकलाब -२

यकीन आँख मूँद कर किया था जिनको जानकर
वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तान कर
उन्ही की सरहदों में कैद हैं हमारी बोलियाँ
वही हमारी थाल में परस रहे हैं गोलियाँ
जो इनका भेद खोल दे हर एक बात बोल दे
हमारे हाथ में वही खुली किताब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है के इंकलाब चाहिए
इंकलाब जिन्दाबाद, जिन्दाबाद इंकलाब

वतन के नाम पर खुशी से जो हुए हैं बेवतन
उन्ही की आह बेअसर उन्ही की लाश बेकफान
लहू पसीना बेचकर जो पेट तक न भर सके
करे तो क्या करें भला जो जी सके न मर सके
स्याह ज़िंदगी के नाम जिनकी हर सुबह और शाम
उनके आसमान को सुर्ख आफ़ताब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है के इंकलाब चाहिए
इंकलाब जिन्दाबाद, जिन्दाबाद इंकलाब -2

तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर
निगाह डाल सोच और सोचकर सवाल कर
किधर गए वो वायदे सुखों के ख्वाब क्या हुए
तुझे था जिनका इंतज़ार वो जवाब क्या हुए
तू इनकी झूठी बात पर ना और ऐतबार कर
की तुझको साँस साँस का सही हिसाब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
नफ़स-नफ़स कदम-कदम बस एक फिक्र दम ब दम
जवाब दर सवाल है के इंकलाब चाहिए
इंकलाब जिन्दाबाद, जिन्दाबाद इंकलाब -२

--शलभ श्रीराम सिंह

Monday, March 10, 2008

भेडिया-2

भेडिया गुर्राता है
तुम मशाल जलाओ ।
उसमें और तुममें
यही बुनियादी फर्क है
भेडिया मशाल नहीं जला सकता ।

अब तुम मशाल उठा
भेडिये के करीब जाओ
भेडिया भागेगा ।

करोड़ों हाथों में मशाल लेकर
एक-एक झाडी की ओर बढो
सब भेडिये भागेंगे ।

फ़िर उन्हें जंगल के बाहर निकल
बर्फ में छोड़ दो
भूखे भेडिये आपस में गुर्रायेंगे
एक-दूसरे को चीथ खायेंगे ।

भेडिये मर चुके होंगे
और तुम ?
_सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

Tuesday, March 4, 2008

सबसे खतरनाक

सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से भर जाना
न होना तड़प का
सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
-पाश

सपने

सपने
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग को सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली के पसीने को सपने नहीं आते
शेल्फों में पड़े
इतिहास ग्रंथों को सपने नहीं आते

सपनों के लिए लाजिमी है
झेलनेवाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की नजर होनी लाजिमी है

सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते

- पाश

Sunday, March 2, 2008

भेडिये-1

भेडिये की आँखें सुर्ख हैं ।

उसे तब तक घूरो
जब तक तुम्हारी आँखें
सुर्ख न हो जाएं ।

और तुम कर ही क्या सकते हो
जब वह तुम्हारे सामने हों ?

यदि तुम मुहँ छुपा भागोगे
तो तुम उसे
अपने भीतर इसी तरह खडा पाओगे
यदि बच रहे ।

भेडिये की आँखें सुर्ख हैं ।
और तुम्हारी आँखें ?
_सर्वेश्वर दयाल सक्सेना