Friday, September 27, 2013

मनहूस आज़ादी — नाजिम हिकमत

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तुम बेच देते हो –

अपनी आँखों की सतर्कता, अपने हाथों की चमक.

तुम गूंथते हो लोइयाँ जिंदगी की रोटी के लिये,

पर कभी एक टुकड़े का स्वाद भी नहीं चखते

तुम एक गुलाम हो अपनी महान आजादी में खटनेवाले.

अमीरों को और अमीर बनाने के लिये नरक भोगने की आज़ादी के साथ

तुम आजाद हो!

 

जैसे ही तुम जन्म लेते हो, करने लगते हो काम और चिंता,

झूठ की पवनचक्कियाँ गाड़ दी जाती हैं तुम्हारे दिमाग में.

अपनी महान आज़ादी में अपने हाथों से थाम लेते हो तुम अपना माथा.

अपने अन्तःकरण की आजादी के साथ

तुम आजाद हो!

 

तुम्हारा सिर अलग कर दिया गया है धड़ से.

तुम्हारे हाथ झूलते है तुम्हारे दोनों बगल.

सड़कों पर भटकते हो तुम अपनी महान आज़ादी के साथ.

अपने बेरोजगार होने की महान आज़ादी के साथ

तुम आजाद हो!

 

तुम बेहद प्यार करते हो अपने देश को,

पर एक दिन, उदाहरण के लिए, एक ही दस्तखत में

 

उसे अमेरिका के हवाले कर दिया ज़ाता है

और साथ में तुम्हारी महान आज़ादी भी.

उसका हवाईअड्डा बनने की अपनी आजादी के साथ

तुम आजाद हो!

 

वालस्ट्रीट तुम्हारी गर्दन ज़कड़ती है

ले लेती है तुम्हें अपने कब्ज़े में.

एक दिन वे भेज सकते हैं तुम्हें कोरिया,

ज़हाँ अपनी महान आजादी के साथ तुम भर सकते हो एक कब्र.

एक गुमनाम सिपाही बनने की आज़ादी के सा

 

तुम आजाद हो!

 

तुम कहते हो तुम्हें एक इंसान की तरह जीना चाहिए,

एक औजार, एक संख्या, एक साधन की तरह नहीं.

तुम्हारी महान आज़ादी में वे हथकडियाँ पहना देते हैं तुम्हें.  

गिरफ्तार होने, जेल जाने, यहाँ तक कि

फाँसी पर झूलने की अपनी आज़ादी के साथ

तुम आजाद हो.

 

तुम्हारे जीवन में कोई लोहे का फाटक नहीं,

बाँस का टट्टर या टाट का पर्दा तक नहीं.

आज़ादी को चुनने की जरुरत ही क्या है भला -

तुम आजाद हो!

 

सितारों भारी रात के तले बड़ी मनहूस है यह आज़ादी.  

(अनुवाद- दिनेश पोसवाल)

Wednesday, September 25, 2013

राष्ट्रपति ओबामा के नाम ब्रैडली मैनिंग का पत्र

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(ब्रैडली मैनिंग एक अमरीकी सैनिक रहे हैं जिन्होंने विकीलिक्स को इराक और अफगानिस्तान में अमरीकी कारगुजारियों के बारे में  ख़ुफ़िया जानकारी मुहैया की थी. इस जुर्म में उन्हें 35 साल की सजा हुई है.)

मैंने 2010 में जो निर्णय लिया था, वह अपने देश के प्रति और जिस दुनिया में हम जी रहे हैं उसके प्रति गहरे लगाव का परिणाम था. 11 सितम्बर की त्रासद घटना के समय से ही हमारा देश युद्धरत है. हम ऐसे दुश्मन से युद्ध करते आ रहे हैं जो हमें किसी परम्परागत युद्धक्षेत्र में हमारा मुकाबला नहीं करना चाहता और इसी के चलते हमें अपने ऊपर और अपनी जीवन शैली के ऊपर थोपे गये जोखिम का सामना करने का अपना तौर-तरीका बदलना पड़ा.

शुरू-शुरू में मैं इस तौर-तरीके से सहमत था और मैंने अपने देश की हिफाजत में मदद करने के लिए अपनी सेवा अर्पित करने का रास्ता चुना. लेकिन यह उससे पहले की बात है जब में ईराक में था और रोज-ब-रोज गोपनीय सैनिक रिपोर्टों को पढता था. तब हम जो कर रहे थे उसकी नैतिकता पर मैंने सवाल उठाना शुरू किया. यही वह समय था जब मुझे यह अहसास हुआ कि दुश्मन द्वारा थोपे गये जोखिम का मुकाबला करने के अपने प्रयासों में हम अपनी मानवता को भूल चुके हैं. हमने सचेतन रूप से ईराक और अफगानिस्तान, दोनों ही जगह मानव जीवन की गरिमा को कम करने का रास्ता चुना. हम उन लोगों का सामना करते हुए  जिन्हें हमने दुश्मन मान लिया था, कभी-कभी हमने निर्दोष लोगों को मार डाला. जब भी हमने निर्दोष नागरिकों की हत्या की, हमने अपने बर्ताव की जिम्मेदारी लेने की जगह किसी भी सार्वजनिक जिम्मेदारी से बचने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और वर्गीकृत सूचना के नकाब में खुद को छुपाने का रास्ता अपनाया.

दुश्मन को कत्ल करने के जोश में हमने यातना और उत्पीडन की परिभाषा पर अंदरखाने बहस की. हमने लोगों को ग्वाटेमाला में कई वर्षों तक बिना उचित प्रक्रिया अपनाए बंदी बनाकर रखा. इराकी सरकार द्वारा किये जाने वाले उत्पीडन और मृत्युदंड से हमने आँख मूँद ली, जो समझ से परे है. और आतंक के खिलाफ अपने युद्ध के नाम पर हम ऐसी बेशुमार कार्रवाइयों को चुपचाप पचा लिया.

अक्सर जब सत्ताधारियों दवारा अपनी नैतिक रूप से गलत कारगुजारियों को सही ठहराना होता है, तब देशभक्ति की चीख पुकार मचाई जाती है. जब तार्किकता पर आधारित किसी विरोध को देशभक्ति की इन चीखों में डुबो देना होता है, तो अमूमन अमरीकी सैनिक ही हैं जिन्हें किसी दुर्भावनापूर्ण मुहीम को पूरा करने का आदेश दिया जाता है.

हमारे राष्ट्र के सामने भी लोकतंत्र के सद्गुण के लिए ऐसे ही अंधकारपूर्ण समय आये हैं, जिनमें से कुछ एक हैं- अश्रुधारा त्रासदी (जिसमें अमरीकी सरकार ने दक्षिणपूर्व राज्यों के लाखों अमरीकी मूल निवासियों को अपनी ज़मीन से ज़बरन उजाड कर उनकी जमीनें कपास उगानेवाले वाले फार्मरों को दे दिया था और उन्हें मिसिसिपी नदी के किनारे एक बाड़े में बसा दिया था), ड्रेड स्कॉट निर्णय (अमरीकी गृहयुद्ध- 1861-65 के दौरान अमरीकी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमरीकी गुलाम ड्रेड स्कॉट के मामले में दिया गया कुख्यात फैसला जिसमें कहा गया था कि किसी भी अफ्रीकी-अमरीकी को यह अधिकार नहीं है कि वह न्यायालय में आकर न्याय के लिये गुहार लगाये), मैकार्थिज्म (मैकार्थी की नीतियों के अनुसार ऐसे हजारों लोगों को, जिन पर कम्युनिस्ट या उनके समर्थक होने का संदेह था, बिना किसी प्रमाण के गैरकानूनी रूप से शारीरिक-मानसिक उत्पीडन का शिकार बनाया गया), जापानी-अमरीकी नज़रबंदी शिविर (दूसरे महायुद्ध के अंतिम दिनों में पर्ल हार्बर पर हमले के बाद एक लाख से भी अधिक जापानी मूल के अमरीकी नागरिकों को नज़रबंदी शिविर में रखा गया था). मुझे पूरा विशवास है कि ९ सितम्बर के बाद से कई कार्रवाइयों को किसी न किसी दिन इसी रोशनी में देखा जाएगा.

जैसा कि स्वर्गीय हॉवर्ड जीन ने एक बार कहा था- “कोई भी झंडा इतना बड़ा नहीं होता, जो निर्दोष जनता की हत्या के शर्म को ढकने के लिए पर्याप्त हो.”

मैं समझता हूँ कि मेरी कार्रवाई से कानून का उल्लंघन हुआ है और अगर मेरी कार्रवाई से किसी को ठेस पहुंची या अमरीका का नुकसान हुआ, तो इसके लिए मुझे खेद है. मै केवल जनता की सहायता करना चाहता था. जब मैंने वर्गीकृत सूचना को प्रकट करने का निर्णय लिया तो मैंने अपने देश के प्रति प्यार और दूसरों के प्रति कर्तव्य की भावना से ही किया.

अगर आप ने हमारी क्षमा याचना को स्वीकार नहीं किया, तो मै यह मान कर अपनी सजा भुगत लूँगा कि एक मुक्त समाज में जीने के लिए कभी-कभी आपको उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. मै खुशी-खुशी वह कीमत चुकाऊंगा, अगर इसका मतलब यही है कि हमें एक ऐसा देश चाहिए जिसने आजादी को सही मायने में आत्मसात किया हो और इस प्रस्तावना के प्रति समर्पित है कि हर औरत और मर्द एक सामान हैं.