Thursday, January 12, 2012

जब से मैं कैद हूँ – नाजिम हिकमत


जब से मैं कैद हूँ
दुनिया दस बार घूम चुकी है सूरज के इर्द-गिर्द
और तुम धरती से पूछो, वह कहेगी --
ये कोई दर्ज करनेवाली बात नहीं,
बहुत ही छोटा अरसा.
और तुम मुझसे पूछो, मैं कहूँगा
मेरी जिंदगी के दस साल.
मेरे पास एक पेन्सिल थी
जिस साल मैं कैदखाने में आया.
घिस गयी एक ही हफ्ते में वह लिखते-लिखते.
और अगर तुम पूछो उस पेन्सिल से, वो कहेगी
एक पूरी जिंदगी.
और मुझसे पूछो तो कहूँगा
कुछ नहीं, महज एक हफ्ता.
उस्मान को क़त्ल के जुर्म में कैद किया गया था
सात साल की सजा काट कर बाहर निकला वह
उस रोज जब मैं कैदखाने में आया.
कुछ दिन घूमता रहा वह बाहर
फिर तस्करी के जुर्म में गिरफ्तार हुआ.
छे महीने की सजा काट कर वह फिर बाहर निकला.
और कल ही एक खत मिला कि उसने शादी कर ली
और बहार के मौसम में जनमेगा उसका बच्चा.
अब दस साल के हैं
वे बच्चे जो अपनी माँ की कोख से जन्मे उस साल
जब मैं इस कैदखाने में आया था,
और उस साल जन्मे, दुबले पैरों पर लडखडाते बछेड़े
अब चौड़े पुट्ठे वाले घोड़ों में तब्दील हो चुके हैं.
मगर जैतून के पौधे आज भी पौधे ही हैं
और आज भी वे बच्चे ही हैं.
यहाँ से दूर हमारे शहर में खुल गए हैं नए चौक-बाजार
जब से मैं कैद हूँ.
और हमारा परिवार रहता है
उस घर में जिसे हमने कभी देखा नहीं
उस गली में जिसे मैं नहीं जानता.
रोटी बिलकुल सफ़ेद हुआ करती थी, कपास की तरह,
जिस साल मैं कैदखाने में आया.
बाद में राशन बंध गया,
और यहाँ, इस दीवार के भीतर हम एक-दूसरे को पीटते थे 
मुट्ठी भर काली पपड़ी के टुकड़े के लिए.
अब दुबारा इस पर पाबंदी नहीं
मगर भूरा और बेस्वाद.
नाजियों के दचाऊ कैंप का तंदूर अभी नहीं सुलगा था,
एटम बम अभी नहीं गिराया गया था हिरोशिमा पर.
किसी बच्चे की कटी गर्दन से बहते लहू की मानिंद 
गुजरता रहा वक्त.
फिर खत्म किया गया बजाप्ता वह दौर आगे चल कर
अमरीकी डालर अब बातें करते हैं तीसरे आलमी जंग की
लेकिन सब के बावजूद, रोशन हुए हैं दिन
जब से मैं कैदखाने में हूँ,
और उनमें से आधे दिन
अपना मजबूत हाथ रखते देते हैं पत्थर के फर्श
और अँधेरे के छोर पर
सीधे आकर.
जब से मैं कैदखाने में हूँ
दुनिया दस बार घूम चुकी है सूरज के इर्द-गिर्द
और एक बार फिर दुहराता हूँ मैं उसी जज्बे के साथ 
जीनके बारे में लिखा था मैंने
उस साल जब मैं कैदखाने में आया था
वे
जिनकी तादाद उतनी ही ज्यादा है
जितनी जमीन पर चींटियाँ
पानी में मछलियाँ
आसमान में परिंदे
वे खौफज़दा और बहादुर हैं 
जाहिल और जानकार हैं
और वे बच्चे हैं,
और वे ही
जो तबाह करना और बनाना जानते हैं
इन गीतों में उन्हीं के जोखिम भरे कारनामे हैं.
और बाकी सभी बातें,
मसलन, मेरा दस साल यहाँ पड़े रहना
कुछ भी नहीं.
अंग्रेजी से अनुवाद - दिगंबर  

Monday, January 9, 2012

नाजिम हिकमत की कविता -- जीने के बारे में


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जीना कोई हंसी-मजाक नहीं,
तुम्हें पूरी संजीदगी से जीना चाहिए
मसलन, किसी गिलहरी की तरह
मेरा मतलब जिंदगी से परे और उससे ऊपर
किसी भी चीज की तलाश किये बगैर.
मतलब जिना तुम्हारा मुकम्मल कारोबार होना चाहिए.
जीना कोई मजाक नहीं,
इसे पूरी संजीदगी से लेना चाहिए,
इतना और इस हद तक
कि मसलन, तुम्हारे हाथ बंधे हों पीठ के पीछे
पीठ सटी हो दीवार से,
या फिर किसी लेबोरेटरी के अंदर
सफ़ेद कोट और हिफाज़ती चश्मे में ही,
तुम मर सकते हो लोगों के लिए
उन लोगों के लिए भी जिनसे कभी रूबरू नहीं हुए,
हालांकि तुम्हे पता है जिंदगी 
सबसे असली, सबसे खूबसूरत शै है.
मतलब, तुम्हें जिंदगी को इतनी ही संजीदगी से लेना है
कि मिसाल के लिए, सत्तर की उम्र में भी
तुम रोपो जैतून के पेड़
और वह भी महज अपने बच्चों की खातिर नहीं,
बल्कि इसलिए कि भले ही तुम डरते हो मौत से
मगर यकीन नहीं करते उस पर,
क्योंकि जिन्दा रहना, मेरे ख्याल से, मौत से कहीं भारी है.


ll

मान लो कि तुम बहुत ही बीमार हो, तुम्हें सर्जरी की जरूरत है
कहने का मतलब उस सफ़ेद टेबुल से
शायद उठ भी न पाओ.
हालाँकि ये मुमकिन नहीं कि हम दुखी न हों
थोड़ा पहले गुजर जाने को लेकर,
फिर भी हम लतीफे सुन कर हँसेंगे,
खिड़की से झांक कर बारीश का नजारा लेंगे
या बेचैनी से
ताज़ा समाचारों का इंतज़ार करेंगे....
फर्ज करो हम किसी मोर्चे पर हैं
रख लो, किसी अहम चीज की खातिर.
उसी वक्त वहाँ पहला भारी हमला हो,
मुमकिन है हम औंधे मुंह गिरें, मौत के मुंह में.
अजीब गुस्से के साथ, हम जानेंगे इसके बारे में,
लेकिन फिर भी हम फिक्रमंद होंगे मौत को लेकर
जंग के नतीजों को लेकर, जो सालों चलता रहेगा.
फर्ज करो हम कैदखाने में हों
और वाह भी तक़रीबन पचास की उम्र में,
और रख लो, लोहे के दरवाजे खुलने में
अभी अठारह साल और बाकी हों.
फिर भी हम जियेंगे बाहरी दुनिया के साथ,
वहाँ के लोगों और जानवरों, जद्दोजहद और हवा के बीच
मतलब दीवारों से परे बाहर की दुनिया में,
मतलब, हम जहाँ और जिस हाल में हों,
हमें इस तरह जीना चाहिए जैसे हम कभी मरेंगे ही नहीं.

lll

यह धरती ठंडी हो जायेगी,
तारों के बीच एक तारा
और सबसे छोटे तारों में से एक,
नीले मखमल पर टंका सुनहरा बूटा
मेरा मतलब है, यह गजब की धरती हमारी.
यह धरती ठंडी हो जायेगी एक दिन,
बर्फ की एक सिल्ली के मानिंद नहीं
या किसी मरे हुए बादल की तरह भी नहीं
बल्कि एक खोंखले अखरोट की तरह चारों ओर लुढकेगी
गहरे काले आकाश में...
इस बात के लिये इसी वक्त मातम करना चाहिए तुम्हें
--इस दुःख को इसी वक्त महसूस करना होगा तुम्हें
क्योंकि दुनिया को इस हद तक प्यार करना जरुरी है
अगर तुम कहने जा रहे हो कि मैंने जिंदगी जी है...

अंगरेजी से अनुवाद --दिगंबर