Thursday, August 2, 2012

पावर ग्रिड ठप्प या कल्पनाशीलता का लोप?

कल दुनिया के सबसे बड़े बिजली संकट के कारण ट्रेन यातायात बाधित रहा

-एम जी देवसहायम
(लेखक श्री देवसहायम एक सेवानिवृत्त भारतीय प्रसाशनिक अधिकारी [आईएएस] और हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड के पूर्व प्रमुख हैं.)   

मंगलवार को दोपहर एक बजे एक-के-बाद एक तीन ग्रिड फेल होने के कारण इतिहास का सबसे बड़ा बिजली संकट आया जिसने 60 करोड़ लोगो को अपनी चपेट में ले लिया.
राष्ट्रीय पावर ग्रिड एक छोर पर ट्रांसमिसन लाइनों और विद्युत उत्पादन केन्द्रों से जुड़े सब-स्टेशनों और दूसरे छोर पर लोड केन्द्रों (या वितरण कम्पनियों) का आपस में गुथा हुआ जाल है. उत्पादन केन्द्र ट्रांसमिसन लाइनों के जरिये ग्रिड को बिजली भेजते हैं. लोड केन्द्र इन लाइनों से बिजली लेकर अंतिम छोर पर मौजूद उपभोक्ताओं को देते हैं.

बिजली कि आपूर्ति में अवरोध न हो, इसके लिए उत्पादन और खपत के बीच हमेशा एक नाजुक  संतुलन बनाये रखना जरूरी होता है.
भारत में पाँच बिजली ग्रिड हैं- उत्तरी, पूर्वी, उत्तरपूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी. सरकारी कम्पनी पावर ग्रिड कार्पोरेशन, जो उन 95,000 हज़ार सर्किट किलोमीटर से भी ज्यादा ट्रांसमिसन लाइनों का संचालन करती है, जिन के जरिये ये ग्रिड काम करते हैं. इन पाँच ग्रिडो में तीन ग्रिड- उत्तरी, पूर्वी और उत्तरपूर्वी मंगलवार को बैठ गये.
कोई ग्रिड तभी फेल होता है जब इससे जुड़े राज्य या तो इसकी क्षमता से ज्यादा बिजली निकासी करने लगते हैं या उत्पादन केन्द्र से बहुत ज्यादा बिजली आने लगती है. ग्रिड फेल होने का इससे कोई लेना-देना नही होता कि बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता या इसकी मात्रा कितनी है.

क्षमता से ज्यादा बिजली निकासी का मतलब यह है कि एक दिन पहले ग्रिड आपरेटर को जो  रिपोर्ट दी जाती है, जिसमें उस दिन बिजली का कितना उपभोग होना है इसका हर 15 मिनट का ब्यौरा होता है, उसमें बताई गयी क्षमता से ज्यादा बिजली की निकासी करना. केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग हर राज्य के लिए बिजली निकासी की सीमा तय करता है, जो राज्यों और उत्पादक कम्पनियों के बीच हुए समझौते पर आधारित होता है.

ग्रिड फेल होने की मुख्य जिम्मेदारी पवार ग्रिड कार्पोरेशन और नेसनल लोड डिस्पैच सेंटर की होती है और यह विभिन्न उत्पादन, ट्रांसमिसन और वितरण कम्पनियों की भी साझा जिम्मेदारी होती है.
इसका मूल कारण बिजली से सम्बंधित विभिन्न संस्थाओं में फैली सडांध है जिनके पास प्रबंधन का कोई दर्शन नहीं है और जो वितरण और विभाजन की कार्यकुशलता को बिलकुल महत्त्व नहीं देते. वे केवल अधिक से अधिक विद्युत उत्पादन का राग अलापते रहते हैं, और वह भी केंद्रीकृत, क्योंकि उसमें भारी पूँजी निवेश होता है तथा घूसखोरी और भ्रष्टाचार की भरपूर गुन्जाइश होती है.
बिजली विहीन भारत ‘अंधा युग’ में प्रवेश कर रहा है. इसका एक मात्र समाधान है एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना. इसमें विकेन्द्रित रूप से अलग-अलग जगहों पर उत्पादन करना (ग्रिड से इतर अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता), वितरण और विभाजन का आधुनिकीकरण, माँग पक्ष का प्रबंधन और अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचाने में कार्यकुशलता, सब शामिल है. बिजली उपभोग के मामले में प्रबंध संस्कृति के प्रतिमान में भी बदलाव लाना जरूरी है.
 (अनुवाद- सतीश)

Wednesday, August 1, 2012

ओलम्पिक खेल, आचार-संहिता और डाव केमिकल



(ओलम्पिक खेलों में भारत की झोली में कितने पदक आयेंगे यह तो आने वाले कुछ दिनों में पता चल ही जायेगा, लेकिन लन्दन ओलम्पिक के आयोजकों ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के न्यायप्रिय, स्वाभिमानी और जनपक्षधर लोगों को अपमानित किया है, इसमें कोई संदेह नहीं है. भोपाल गैस काण्ड को अंजाम देनेवाली  अपराधी कम्पनी यूनियन कार्बाईड का मालिकाना जिस डाव केमिकल ने हथियाया है, उसे ओलम्पिक का प्रायोजक बनाने के खिलाफ दुनिया भर में भारी विरोध हुआ. लेकिन इसकी अनदेखी करते हुए अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक संघ ने अपना फैसला नहीं बदला. प्रस्तुत है दुनिया भर में इस कंपनी के काले कारनामों का खुलासा करता ‘एथलेटिक्स अगेंस्ट डाव केमिकल’ समूह द्वारा जारी यह खुला पत्र.)

 एथलेटिक्स अगेंस्ट डाव केमिकल की ओर से जारी एक खुला पत्र

8 जुलाई, 2011 से प्रभावी ओलम्पिक चार्टर के अनुसार -- 

“ओलम्पिक में भाग लेने के लिये किसी भी प्रतियोगी, कोच, प्रशिक्षक या टीम के अधिकारी के लिये यह जरुरी शर्त है कि वह ओलम्पिक चार्टर का हर हालत में पालन करे......”

ओलम्पिक खेलों में भाग लेना किसी भी खिलाड़ी का सबसे बड़ा सपना और लक्ष्य होता है. खेल भावना, चुनौतियों और बाधाओं के कारण ओलम्पिक खेल प्रेरणा के श्रोत होते हैं. इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि पूरी मानवता के लिये यादगार पल होने के कारण लोगों का ओलम्पिक  खेलों के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव होता है.

यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक संघ (आईओसी) ने जब डॉव केमिकल को ओलम्पिक में शामिल करने का निर्णय लिया तो हम काफी हतोत्साहित हुए, साथ ही हमने महसूस किया कि यह फैसला ओलम्पिक चार्टर और उसकी आचर संहिताओं का खुलेआम उल्लंघन है जो ओलम्पिक की मूल भावनाओं को बरक़रार रखने में सहायक हैं.

एथलेटिक्स अगेंस्ट डाव केमिकल का गठन आईओसी की इसी राय की प्रतिक्रिया में हुआ था कि केवल गिने-चुने संगठनों को छोड़कर(जो भोपाल गैस काण्ड और एजेंट आरेंज का विरोध करने वालों के प्रतिनिधि हैं) किसी के लिए डाव केमिकल का ओलम्पिक प्रायोजक होन कोई मुद्दा नहीं हैं.

हम इस बात का खंडन करते है, क्योंकि खुद खिलाड़ी होने के नाते हम इसे पूरी तरह गलत मानते है. सच्चाई यह है कि ज्यादातर खिलाड़ी यह जानते ही नहीं हैं कि दरअसल डाव केमिकल कौन और क्या है तथा इसने कैसे-कैसे कुकृत्य किये हैं. अज्ञानता का मतलब ही होता है किसी बात को चुपचाप स्वीकार कर लेना.

चार्टर के अनुच्छेद-२ के अनुसार- “उन चीजों को प्रोत्साहन और सहायता देनी चाहिए जिनसे खिलाड़ियों के स्वास्थ्य की रक्षा होती है”. लेकिन जो डाव केमिकल निम्नलिखित घटनाओं के लिये जिम्मेदार रही है, वह भला स्वास्थ्य का रक्षक कैसे हो सकती है-

* जहरीले पदार्थों का उत्सर्जन करने के कारण अमरीकी पर्यावरण रक्षा संस्थान ने इसको                                         2010 की दूसरी सबसे ज्यादा प्रदुषण फैलाने वाली कम्पनी बताया है. 

* 1951 से 1975 तक इसने नाभिकीय हथियार और उसका पलीता बनाने वाली कम्पनी का संचालन किया. जिस समय इस कम्पनी की देखरेख का जिम्मा डाव केमिकल ने लिया था, उसी दौरान वहाँ आगजनी की 200 घटनाएँ हुईं, जिनमें 300 मजदूर हताहत हुए. डाव केमिकल के अधिकारीयों ने बाद में यह स्वीकार किया कि वहाँ गैरकानूनी तरीके से प्लूटोनियम विमुक्त किया जाता था.
   
* इसने टीसीई नामक एक घोलक का अविष्कार किया, जो बाद में कैंसर और ओजोन परत में छेद का कारण बना.

* इसने डीवीसीपी नामक एक कीटनाशक का उत्पादन किया. कम्पनी के अन्दर ही जारी किये गये एक रिपोर्ट के अनुसार डीवीसीपी त्वचा के रास्ते शरीर में समा जाता है और इसे सूँघ लेने भर से ही बहुत ज्यादा नुकसान होता है.

* इसने एक खतरनाक रासायनिक विस्फोटक नापाम और एजेंट आरेन्ज का उत्पादन किया जो बहुत अधिक विषैला होता है. अमरीकी सेना ने वियतनाम युद्ध के दौरान इस घातक रसायन का प्रयोग वहाँ के नागरिकों पर किया था.

* इसने युनिवर्सिटी आफ नेब्रास्का के नेब्रास्का स्थित एक प्रयोगशाला में, विद्यार्थियों पर डर्सबन का परिक्षण किया. इसके बाद डाव एलान्को पर डर्सबन के बारे सुरक्षा सम्बन्धी सूचना और दस्तावेज़ दबाने के अपराध में 890 हज़ार डॉलर का जुर्माना लगाया गया, जो उस समय तक सबसे बड़ा जुर्माना था. 2004 में डर्सबन के उत्पादन पर रोक लगा दिया गया.

* इसने लार्सबन नाम का एक कीटनाशक तैयार किया, जो स्वास्थ्य के लिये बेहद नुकसानदायक है.

* स्टेड (ज़र्मनी) में इसने क्लोरीन छोड़ा और इसके खतरों के बारे में वहाँ कि जनता को सूचित नहीं किया.

अमरीकन केमिकल सोसाइटी ने खुलासा किया कि रासायनिक कम्पनियों ने जानबूझकर विनाइल क्लोराइड से होने वाले एंजियोसार्कोमा (यकृत कैंसर) से सम्बन्धित सूचना को दबा कर रखा. (डॉव केमिकल विनाइल क्लोराईड के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है.)

* मिडलैंड, मिशिगन में डाईआक्सीन को साफ़ करने का प्लांट स्थापित किया, जिसके कारण अमरीका में अन्य जगहों की अपेक्षा पिछले 35 सालों से डाईआक्सीन का प्रदुषण सबसे ज्यादा हो रहा है.

* डाव केमिकल ने अपने 20 हज़ार मजदूरों का गुप्त रूप से बीमा करवाया था, ताकि उनकी किसी कारण से मौत होने पर बीमा राशि खुद हड़प ले. यह काम लगभग सभी देशों में गैरकानूनी है.

* युनिवर्सिटी आफ पेन्सिलवेनिया के एक चर्म रोग विशेषज्ञ को इस कम्पनी ने होल्मरवर्ग जेल के कैदियों पर डाईआक्सिन के परीक्षण के लिये पैसे दिए थे.

* इसने सेंट क्लेयर नदी में 8000 गैलन खतरनाक रसायन- ‘पर्क’ (जिसका पेशेवर ड्राईक्लीनर इस्तेमाल करते हैं) बहाया.

* इसने सर्निया में प्रतिदिन 28 टन विषैले रसायन जलाये.

* एक जूरी ने बेनेडेक्टिन (मार्निंग सिकनेस ड्रग) के परिक्षण, उत्पादन, बिक्री और वितरण में इस कम्पनी की लापरवाही को चिन्हित किया.

टाक्सिक सब्स्टांस कंट्रोल एक्ट का उल्लंघन करने के कारण इस कम्पनी पर 11 लाख डॉलर का जुर्माना किया गया.

* नब्बे के दशक में संघीय और राज्य संस्थाओं द्वारा नियमित रूप से कानून का पालन न करने के कारण जुर्माना लगाया गया.

* क्लोरीन युक्त घोलकों का अवैध तरीके से भूगर्भ-जल और सनफ्रांसिस्को खाड़ी में उड़ेलने के खिलाफ इस पर मुक़दमा चलाया गया.

* लुसियाना कोर्ट ने पाया कि डाव केमिकल ने सिलिकान स्तन प्रत्यारोपण के परिक्षण में लापरवाही बरती, संभावित खतरों के बारे में झूठ बोला और अपनी सहायक कम्पनी डाव कार्निक के साथ मिलकर षड़यंत्र रचा.

* लुसियाना के डू पोंट-डॉव इलास्टोमर्स संयंत्र को अमरीका के सबसे घटिया और गंदे संयंत्र कि श्रेणी में रखा गया है. इस संयंत्र ने 1991 मे 540 हज़ार पाउंड कार्सिनोजेंस (कैंसर जनक पदार्थ) का उत्सर्जन किया.

* डाव केमिकल के अमरीका और कनाडा स्थित संयंत्रों मे विषैले पदार्थों के रिसाव और प्रसार के चलते दुर्घटना के कुल 1337 मामले दर्ज हुए, जो एक रिकार्ड है.

* इस कम्पनी ने सिक्योरिटी एक्ट के उन प्रावधानों को बदलवाने के लिये लाबी बनायी, जिनके तहत किसी रासायनिक संयंत्र में जोखिम कम करने के लिए सुरक्षा मानदंडों को कठोर बनाया गया था.

* कम्पनी ने ओट्टो एम्ब्रोस जैसे एक रसायनज्ञ को नौकरी पर रखा जो गुलामी और नरसंहार जैसे युद्ध अपराधों का मुजरिम है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एम्ब्रोस आईजी फारबेन कम्पनी का निदेशक था, यह कम्पनी जाईक्लोन बी जैसे जानलेवा पदार्थ का उत्पादन करती थी. जाईक्लोन बी  का इस्तेमाल लाखों यहूदियों की हत्या के लिये किया गया था. एम्ब्रोस उन कुख्यात लोगों में से एक है जिन लोगों ने फासीवादी कन्संट्रेसन  कैम्पों मे कैद लोगों के ऊपर जाईक्लोन बी  का इस्तेमाल करने का फैसला लिया था.

* डाव एग्रोसाइंस के ऊपर 2003 में झूठे विज्ञापन करने के लिए 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया. इन विज्ञापनों में यह दावा किया गया था कि डर्सबन के प्रयोग से मानव स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होता है और इसके प्रयोग से स्वास्थ्य पर कोई दीर्घकालिक प्रभाव नहीं पड़ता है.

* इस कम्पनी ने क्यूबेक सरकार के एक फैसले को चुनौती दी, जिसमें इसके खर-पतवार नाशक 2,4-डी पर प्रतिबन्ध लगाया गया था. इस जहरीले पदार्थ से कैंसर होने का खतरा था. डाव केमिकल ने नाफ्टा की मदद से इस प्रतिबन्ध को हटवा दिया.

डाव केमिकल द्वारा किये गए स्वास्थ्य उल्लंघनों की यह केवल एक छोटी सी फेहरिस्त भर है.

अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक संघ द्वारा डाव केमिकल को ओलम्पिक में शामिल किये जाने और उसकी वकालत करने के चलते खिलाड़ी अब सीधे एक ऐसी कम्पनी से जुड़ गए हैं जो न केवल ओलम्पिक की भावना के खिलाफ काम करती है, बल्कि यह इसके उदेश्यों  का सम्मान भी नहीं करती है.


हमने अपना बयान डाव केमिकल तक ही सीमित रखा है, लेकिन ब्रिटिश फार्मास्युटिकल जिसने मेक्सिको की खाड़ी को प्रदूषित किया, ईडीएफ जो जासूसी करवाने की दोषी पायी गयी है और प्राक्टर एंड गैम्बल जो मेथिलपैराबेंस जैसे कैंसर उत्पन्न करने वाले पदार्थों का उत्पादन करती है, ये सभी कम्पनियाँ ओलम्पिक प्रायोजक के अच्छे उदहारण नहीं हैं. (इन कम्पनियों के बारे में यह सिर्फ सरसरी तौर पर की गयी टिप्पणी है.)

आईओसी को चाहिए कि या तो वह आचार-संहिता और ओलम्पिक चार्टर को प्रभावहीन घोषित कर दे या फिर इसे प्रयाजकों सहित सभी सहभागियों पर सामान रूप से लागू करे. ओलम्पिक का मकसद दोहरे मानदण्ड अपनाना नहीं है और इसीलिए हम ऐसी उम्मीद रखते हैं.

(अनुवाद- सतीश)