Thursday, August 9, 2012

मार्खेज़ को डिमेंशिया हो गया है -अंशु मालवीय



(अब से ठीक एक महीना पहले मार्खेज़ के भाई के मार्फ़त यह खबर मिली थी कि एकांत के सौ बर्ष जैसे उपन्यास के कालजयी लेखक गेब्रियल गार्सिया मार्खेज़ स्मृतिलोप के शिकार हैं. इसने दुनिया भर में मार्खेज़ के प्रशंसकों को बेचैन कर दिया था. अंशु की यह कविता उसी बेचैनी, उसी छटपटाहट से जन्मी है और हमारे समय को अपने आगोश में लेती जा रही विश्वव्यापी डिमेन्शिया के व्यापक आयाम से रूबरू कराती है.)

मार्खेज़ को डिमेंशिया हो गया है.
जीवन की उत्ताल तरंगों के बीच गिर-गिर पड़ते हैं
स्मृति की नौका से बिछल-बिछलकर;
फिर भरसक-भरजाँगर
कोशिश कर बमुश्किल तमाम
चढ़ पाते हैं नौका पर,
उखड़ती साँसों की बारीक डोर थाम.
जिसे इंसानियत का सत्व मानते हैं वह
वही स्मृति साथ छोड़ रही है उनका
विस्मृति के महाप्रलय में
निरुपाय-निहत्था है हमारा स्मृतियोद्धा अब.
सामूहिक स्मृतिलोप के शिकार
माकोंडो गाँव के निवासियों की तरह
चलो हम उनके लिए चीजों पर उनके नाम लिख दें-
देखो ये बिक चुकी नदी है
ये नीलाम हो चुके पर्वत
अपने अस्तित्व ही नहीं
हमारी यादों के भी कगार पर जी रहे पंछी
ये हैं अवैध घोषित हो चुकी नस्लें
ये हैं हमारे गणराज्य
बनाना रिपब्लिक के संवैधानिक संस्करण
ये है तुम्हारा वाइन का गिलास
ये कलम, ये कागज और ये तुम हो
हमारे खिलंदड़े लेखक गेब्रिएल गार्सिया मार्खेज़ !
ये यादें ही तो हैं
जिन्होंने नाचना और गाना सिखाया
सिखाया बोलना और चलना
सिखाया जीना और बदला लेना,
लामकाँ में घर बनाना सिखाया 
हमारे विस्थापित मनों को
हमें और किसी का भरोसा नहीं स्मृति यात्री !
धर्म ने हमारा सत्वहरण कर लिया
विज्ञान ने तानाशाहियों की दलाली की
विचारधाराओं ने राष्ट्रों के लिए मुखबिरी की
इतिहास ने हमारी परछाइयाँ बुहार दीं
हमें यादों का ही भरोसा है,
अब वह भी छिनी जाती है
बगैर किसी मुआवजे के हमारी जमीनों जैसी.
यादें जमीन हैं
          आसमान के बंजरपन को
          अनन्तकाल से कोसती हुई.
हमारी नाल कहाँ गड़ी है ?
माँ जैसे लोरी सुनाने वाले सनकी बूढ़े !
कब से यूँ ही विचर रहे हो धरती पर
हमारे प्रसव के लिए पानी गुनगुना करते,
थरथराते हाथों से दिए की लौ पकड़े हुए स्मृति धाय !
हमारी नाल कहाँ गड़ी है?
कैसी हैं हमारी विच्छिन्न वल्दीयतें !
कैसे हैं इंसानियत के नकूश !
हमारे गर्भस्वप्न कैसे हैं ?
किन तितलियों के पंखों में छुपे हैं
हमारे दोस्त फूलों के पुष्प पराग ... !
किससे पूछें
        तुमसे तो खुद जुदा हो चली हैं स्मृतियाँ     
                          स्मृति नागरिक !
मछलियों की रुपहली पीठों पर ध्यान लगाये
पानी के ऊपर ठहरे जलपाखियों की एकाग्र साधना से पूछें,
पूछें पानी से सट कर उड़ते बगुलों की पंख समीरन से,
जमुना के गंदले पानी में टूटकर बिखरे
सूरज की किरचों से पूछें,
पूछें मरीचिका के संधान में मिथक बनते मृगों से,
डेल्टावनों की सांघातिक मक्खियों से पूछें
या पूछें अभयारण्यों में खाल के व्यापारियों से
अभय की भीख माँगते बाघों से,
अपने खेत में अपने पोसे हुए पेड़ की डाल से ख़ुदकुशी करते
किसान के अँगोछे की गाँठ से पूछें,
या बंद कारखाने के अकल्पनीय अकेले चौकीदार से पूछें,
फ्लाई ओवर के नीचे गड़गड़ाहट से उचटी नींदों से पूछें
या पूछें सीवर से निकलती कार्बन मोनो औक्साइड से
किस उपनिषद – किस दर्शन के पास जवाब है इन सवालों का
सिवाय यायावर यादों की एक तवील यात्रा के
हमें हमारी गड़ी हुई नालों के स्वप्न क्यूँ आते हैं ?
                               हमारे ज्ञानी ओझा !
हम सब डिमेन्शिया में जा रहे हैं मार्खेज़ !
अपने उचटे हुए हाल और बेदखल माज़ी के बीच झूलते
किसी और का मुस्तकबिल जीने को अभिशप्त;
ये किन अनुष्ठानों का अभिशाप है ?
कि शब्द अपने अर्थ भूलते जा रहे हैं
भूलती जा रही हैं सांसें अपनी लय
खिलौने सियासत करने लगे हैं
साज लड़ने लगे हैं जंग
जिस्मफरोशी कर रही हैं रोटियाँ
           और हम हथियारों का तकिया लगाने को मजबूर हैं !   
हम सब डिमेन्शिया में जा रहे हैं मार्खेज़
और हम इसे अलग-अलग नामों से पुकार रहे हैं
विकास, तरक्की, साझा भविष्य ... या
या इतिहास गति की वैज्ञानिक नियति ?
विज्ञान         और        नियति
                    माई गुडनेस !
मार्खेज़ तुम्हें डिमेन्शिया हो गया है और
इससे पहले कि यादों से पूरी तरह वतन बदर हो जाओ
एक बार जरुर हमारे लिए चीजों पर नाम की चिप्पियाँ लगाना
                             मसलन-
                             ये हैं यादें
                             ये है आज़ादी और
                             ये है लड़ना
                                 यादों के छोर तक लड़ना !


अंशु मालवीय

Wednesday, August 8, 2012

हिबाकुशा





-दिगम्बर
(नागाशाकी और हिरोशिमा पर अमरीका द्वारा परमाणु बम गिराये जाने के बाद उस विभीषिका में बच गये, यंत्रणा और वेदना की जिन्दगी जी रहे लोगों को हिबाकुशा कहा गया. व्यापकता में इसका प्रयोग परमाणु खतरे के अर्थ में भी किया जाता है.)

एक हिबाकुशा फ़ैल रहा है

हमारे चारों और
यादों में धधक रहा है लाल-लाल
चार हजार डिग्री सेल्सियस
तापमान का लावा.

एक बंद अधजली
सवा आठ बजा रही घड़ी
वक्त के ठहर जाने का
डरावना संकेत कर रही है.

कौंध रही है छवि -
माँ की छाती से लिपटा
दुधमुहाँ बच्चा
पलक झपकते ही
पहले अंगारा, फिर चारकोल में
बदल गए दोनों.

आँखों में नाचते हैं
उद्ध्वस्त शहर
जो पल भर में
बदल गए शमशान में.

असंख्य झुलसे हुए
औरत-मर्द-बच्चे
छलांग लगाते रहे
एक के ऊपर एक
और देखते ही देखते नदी
पट गयी लाशों से.

एक लाख चालीस हजार मौत
और दो लाख छियासठ हजार
हिबाकुशा- बच गए जो
यंत्रणा और वेदना में
तिल-तिल जीने मरने को.

2

पसर रहा है हमारी आँखों के आगे
हिबाकुशा हमारे चारों ओर
नागाशाकी, हिरोशिमा, फुकुसिमा.

यह दौर है हिबाकुशा
कि डालर महाप्रभु के
सुझाये मार्ग से इतर
विकास के दूसरे रास्तों की
चर्चा भी देशद्रोह है.

अक्षय ऊर्जा स्रोतों के
सुलभ-सुरक्षित उपाय
दबा दिए गए हैं
नाभिकीय कचरे की ढेर में.

विनाशलीला की बुनियाद पड़ रही है
विकास का परचम लहराते हुए.

विध्वंसक युद्ध की नहीं
समझौतों की शांतिमयी भाषा
दुरभिसंधि के दुर्बोध, जटिल वाक्यों
और संविधान की पुरपेंच धाराओं से
गूंगा किये जाते हैं
प्रतिरोध के स्वर.

विदेशी हमलावर नहीं,
जीवन-जीविका-जमीन की हिफाजत में
उठे जनज्वार को रौंदते हैं
स्वदेशी फौजी बूट.

विदेशी आक्रांताओं ने बदल लिये हैं
अपने पुराने कूटनीतिक पैंतरे.

बाइबिल और बंदूक की जगह
ब्रेटन वुड साहूकारों की हुंडी
और इकरारनामे का मसौदा है
गुलामी का नया मन्त्र.

यह दौर है हिबाकुशा
कि नाभिकीय तबाही के व्यापारी
मौत के सौदागरों और
जयचंदों - मीर जाफरों के बीच
होती हैं सद्भावपूर्ण गुप्त वार्ताएं
और देश के कई इलाके
बदल जाते हैं फौजी छावनी में.

एक फरमान जारी होता है
और देखते-देखते
एक हँसती खिलखिलाती
जिंदगी से भरपूर सभ्यता
खँडहर में बदल जाती है.

जब दुनिया भर में तेज है
हिबाकुशा के खिलाफ संघर्ष
तो पनाह ले रहे हैं हमारी धरती पर
थ्री माइल्स वैली, चर्नोबिल और फुकुसिमा
जैतापुर, कुडानकुलम, गोरखपुर में.

किसी नादिर शाह की बर्बर फ़ौज नहीं
किसी चंगेज किसी तैमूर
किसी अशोक किसी सिकंदर की
जरुरत ही क्या है भला.

तबाही के लिए काफी हैं
विकास का अलम लिए
कत्लोगारत पर आमादा
हिबाकुशा के रक्तपिपासु पूजक
हमारे जन प्रतिनिधि.