Wednesday, August 8, 2012

हिबाकुशा





-दिगम्बर
(नागाशाकी और हिरोशिमा पर अमरीका द्वारा परमाणु बम गिराये जाने के बाद उस विभीषिका में बच गये, यंत्रणा और वेदना की जिन्दगी जी रहे लोगों को हिबाकुशा कहा गया. व्यापकता में इसका प्रयोग परमाणु खतरे के अर्थ में भी किया जाता है.)

एक हिबाकुशा फ़ैल रहा है

हमारे चारों और
यादों में धधक रहा है लाल-लाल
चार हजार डिग्री सेल्सियस
तापमान का लावा.

एक बंद अधजली
सवा आठ बजा रही घड़ी
वक्त के ठहर जाने का
डरावना संकेत कर रही है.

कौंध रही है छवि -
माँ की छाती से लिपटा
दुधमुहाँ बच्चा
पलक झपकते ही
पहले अंगारा, फिर चारकोल में
बदल गए दोनों.

आँखों में नाचते हैं
उद्ध्वस्त शहर
जो पल भर में
बदल गए शमशान में.

असंख्य झुलसे हुए
औरत-मर्द-बच्चे
छलांग लगाते रहे
एक के ऊपर एक
और देखते ही देखते नदी
पट गयी लाशों से.

एक लाख चालीस हजार मौत
और दो लाख छियासठ हजार
हिबाकुशा- बच गए जो
यंत्रणा और वेदना में
तिल-तिल जीने मरने को.

2

पसर रहा है हमारी आँखों के आगे
हिबाकुशा हमारे चारों ओर
नागाशाकी, हिरोशिमा, फुकुसिमा.

यह दौर है हिबाकुशा
कि डालर महाप्रभु के
सुझाये मार्ग से इतर
विकास के दूसरे रास्तों की
चर्चा भी देशद्रोह है.

अक्षय ऊर्जा स्रोतों के
सुलभ-सुरक्षित उपाय
दबा दिए गए हैं
नाभिकीय कचरे की ढेर में.

विनाशलीला की बुनियाद पड़ रही है
विकास का परचम लहराते हुए.

विध्वंसक युद्ध की नहीं
समझौतों की शांतिमयी भाषा
दुरभिसंधि के दुर्बोध, जटिल वाक्यों
और संविधान की पुरपेंच धाराओं से
गूंगा किये जाते हैं
प्रतिरोध के स्वर.

विदेशी हमलावर नहीं,
जीवन-जीविका-जमीन की हिफाजत में
उठे जनज्वार को रौंदते हैं
स्वदेशी फौजी बूट.

विदेशी आक्रांताओं ने बदल लिये हैं
अपने पुराने कूटनीतिक पैंतरे.

बाइबिल और बंदूक की जगह
ब्रेटन वुड साहूकारों की हुंडी
और इकरारनामे का मसौदा है
गुलामी का नया मन्त्र.

यह दौर है हिबाकुशा
कि नाभिकीय तबाही के व्यापारी
मौत के सौदागरों और
जयचंदों - मीर जाफरों के बीच
होती हैं सद्भावपूर्ण गुप्त वार्ताएं
और देश के कई इलाके
बदल जाते हैं फौजी छावनी में.

एक फरमान जारी होता है
और देखते-देखते
एक हँसती खिलखिलाती
जिंदगी से भरपूर सभ्यता
खँडहर में बदल जाती है.

जब दुनिया भर में तेज है
हिबाकुशा के खिलाफ संघर्ष
तो पनाह ले रहे हैं हमारी धरती पर
थ्री माइल्स वैली, चर्नोबिल और फुकुसिमा
जैतापुर, कुडानकुलम, गोरखपुर में.

किसी नादिर शाह की बर्बर फ़ौज नहीं
किसी चंगेज किसी तैमूर
किसी अशोक किसी सिकंदर की
जरुरत ही क्या है भला.

तबाही के लिए काफी हैं
विकास का अलम लिए
कत्लोगारत पर आमादा
हिबाकुशा के रक्तपिपासु पूजक
हमारे जन प्रतिनिधि.

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