Saturday, April 25, 2009

रघुवीर सहाय की ये कविता वर्तमान दौर पर एक करारा व्यंग है -

आप की हँसी
निर्धन जनता का शोषण है
कह - कर आप हँसे
लोकतंत्र का अन्तिम क्षण है
कह - कर आप हँसे
सब के सब हैं भ्रस्टाचारी
कह - कर आप हँसे
चारो ओर बड़ी लाचारी
कह - कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे मै सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पाकर फ़िर से आप हँसे

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