Monday, September 26, 2011

भगत सिंह और पेरियार: दो सामानधर्मा युगद्रष्टा

(शहीदे-आजम भगत सिंह के 104 वें जन्म दिन पर)

दक्षिण भारत में सामाजिक-आर्थिक समानता के अग्रदूत पेरियार ई. वी. रामास्वामी भगत सिंह के समकालीन थे और उम्र में उनसे 28 साल बड़े थे. भगत सिंह के विचारों के वे प्रबल समर्थक थे. हाल ही में प्रो. चमन लाल और एस. इरफ़ान हबीब ने अपने शोध-कार्यों के दौरान इस बात के दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत किये हैं.


पेरियार की सबसे बड़ी विशेषता उनकी स्पष्टवादिता थी, जो भगत सिंह से सम्बंधित उनके विचारों में भी स्पष्ट दिखाई देती है. 29 मार्च 1931 को तमिल साप्ताहिक कुडियारासु के सम्पादकीय में पेरियार ने भगत सिंह और गाँधी की तुलना करते हुए भगत सिंह के विचारों के साथ अपनी सहमति जतायी थी. उन्होंने लिखा -"जिस दिन गाँधी ने कहा कि केवल ईश्वर ही उनका मार्गदर्शन करता है, दुनिया को चलाने में वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था ही उचित है और हर काम भगवान की इच्छा के अनुसार ही होता है, उसी दिन हम इस निष्कर्ष पर पहुँच गये की गाँधीवाद और ब्राह्मणवाद में कोई अंतर नहीं है. हम इस नतीजे पर भी पहुंचे की अगर ऐसे दर्शन को मानने वाली कांग्रेस पार्टी का खात्मा नहीं होता तो यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा और अब यही सच्चाई कम से कम कुछ लोगों को हासिल हो गयी है. उन्होंने गांधीवाद के पतन का आह्वान करने का विवेक और साहस हासिल कर लिया है. यह हमारे उद्देश्य की बहुत बड़ी जीत है.


"यदि भगत सिंह फांसी चढ़कर प्राण नहीं गंवाते तो यह जीत इतनी लोकप्रियता के साथ हासिल नहीं होती. हम यह कहने का भी साहस करते हैं कि अगर उन्हें फांसी नहीं होती तो गांधीवाद की जमीन और पुख्ता होती.


"जैसा की आमतौर पर लोगों के साथ होता है, भगत सिंह न बीमार पड़े, न पीड़ित हुए और न ही मरे. उन्होंने न केवल भारत को, बल्कि दुनिया को भी असली बराबरी और शान्ति की राह दिखाने के लिए पवित्र उद्देश्य के लिए अपना जीवन निछावर किया. वे उन्नत शिखर तक पहुँच गये. हम अपने हृदय की गहराई से उनकी शहादत की प्रशंसा और गुणगान करते है."


पेरियार ने भगत सिंह द्वारा पंजाब के गवर्नर को लिखे उस पत्र का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने नास्तिकता और समाजवाद के विचारों में अपना विश्वास व्यक्त किया था. अदालत में बयान देते हुए भगत सिंह ने कहा था "इस सभ्यता की विराट इमारत को यदि समय रहते बचाया नहीं गया तो यह भहराकर ढह जायेगी. इसलिए एक आमूल परिवर्तन जरूरी है और जिन लोगों को इस बात का अहसास है उनका यह कर्तव्य है कि समाजवाद की बुनियाद पर इस समाज का पुनर्गठन करें. अगर ऐसा नहीं किया गया तो आज मानवता के सामने जिस दुस्सह पीड़ा और नरसंहार का ख़तरा मंडरा रहा है उसे रोका नहीं जा सकता." भगत सिंह के इन विचारों से सहमति जताते हुए पेरियार ने लिखा था कि "छुआ-छूत को ख़त्म करने के लिए हमें ऊपरी और निचली जाति के सिद्धांत को ख़त्म करना होगा. इसी तरह गरीबी मिटने के लिए हमें पूँजीवाद और मजदूरी के सिद्धांत से छुटकारा पाना होगा. इसलिए समाजवाद और साम्यवाद कुछ और नहीं, बल्कि इन अवधारणाओं और व्याख्याओं से निजात पाना ही है. यही वे सिद्धांत हैं जिनकी हिमायत भगत सिंह करते थे."


पेरियार का मानना था कि ऐसे विचारों को मानना किसी भी क़ानून के तहत अपराध नहीं है . यदि यह किसी कानून के खिलाफ भी समझा जाता है तो किसी को इससे डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमें पूरा यकीन है कि इन सिद्धांतों का पालन करने से (जिन्हें भगत सिंह सही मानते थे) जनता को कोई हानि नहीं होगी या कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. हम इन सिद्धांतों को व्यवहार में उतारने का प्रयास कर रहे हैं."


निष्कर्ष के तौर पर उन्होंने अपने सम्पादकीय में लिखा था-"हमारी यह पक्की राय है कि भारत में सिर्फ भगत सिंह के विचारों की ही जरूरत है."


आज के इस कठिन दौर में न्याय और समता पर आधारित समाज के सपने को साकार करने में लगे लोगों के लिए इन दोनों युगद्रष्टाओं के विचार और जीवन प्रेरणास्पद हैं.

9 comments:

  1. lekh bahut accha hai. ganhi aur bhagat singh ke baare me periyar ke vicharon ko sabhi logon tak pahuchna chaiye.apka karya srahniya he. dinesh

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  2. yah patr maine pichhle saal Janpaksh par post kiya tha. yah aitihaasik dastavez shoshan ke khilaf sangharshrat do itihaas-purushon ke parspar aadar bhaav ko dikhata hai aur ek raastaa bhi sujhata hai

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  3. पेरियार घोर अलगाववादी थे, वहीं भगतसिंह ऐसे नहीं थे। पेरियार संकीर्ण-क्षेत्रीयतावादी थे, भगतसिंह नहीं। भारत की जनता को भाषायी गुलामी मे जकड़ने के घृणित यज्ञ में पेरियार ने हवि दी, भगतसिंह ने नहीं।

    हालाँकि पेरियार का दूसरा पक्ष भी है, लेकिन बँटवारे की राजनीति और सिर्फ क्षेत्र के आधार पर घृणा की राजनीति करने से उन्हें भगतसिंह के साथ तौलना ठीक नहीं लगता!

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  4. पेरियार घोर अलगाववादी थे, वहीं भगतसिंह ऐसे नहीं थे। पेरियार संकीर्ण-क्षेत्रीयतावादी थे, भगतसिंह नहीं। भारत की जनता को भाषायी गुलामी मे जकड़ने के घृणित यज्ञ में पेरियार ने हवि दी, भगतसिंह ने नहीं।

    हालाँकि पेरियार का दूसरा पक्ष भी है, लेकिन बँटवारे की राजनीति और सिर्फ क्षेत्र के आधार पर घृणा की राजनीति करने से उन्हें भगतसिंह के साथ तौलना ठीक नहीं लगता!

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  5. Replies
    1. ऐसा कैसे हुआ? कृपया दुबारा टिपण्णी दें. कोई तकनीकी गडबडी रही होगी.

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  6. तीन साल पहले पेरियार के लेखों के अंगेरजी अनुवाद की एक किताब केरल में केरला शास्त्र साहित्य परिषद वालों से खरीदी थी, उसमें यह लेख है। पेरियार के दूसरे लेख भी पढ़ने लायक हैं।

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  7. जातीवादियों को पेरियार अबमेडकर फुले कभी पसन्द नही आते । वैसे इनको मानने के लिए इंसान भर होना ही काफ़ी है ।

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  8. जातीवादियों को पेरियार अबमेडकर फुले कभी पसन्द नही आते । वैसे इनको मानने के लिए इंसान भर होना ही काफ़ी है ।

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