Friday, October 5, 2012

दो दलित महिलायें 42 वर्षों से 15 रूपए मासिक वेतन पर काम कर रही हैं

अक्कू और लीला

एक ऐसा मामला सामने आया है जो दिखाता है कि चंद अधिकारियों की निरंकुशता ने उडुपी निवासी दो दलित महिलाओं की जिन्दगी को कितनी बुरी तरह प्रभावित किया.
अक्कू और लीला, दो महिलाओं ने 15 रूपये मासिक वेतन पर वहाँ के महिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान में लगभग चार दशकों तक सफाईकर्मी के रूप में सेवा की. उनसे वादा किया गया था कि उनकी नौकरी पक्की कर दी जायेगी, लेकिन 42 साल सेवा करने के बाद भी उन्हें सेवा शर्तों का कोई लाभ नहीं मिला.
उन दोनों महिलाओं ने जब 2001 में कर्नाटक प्रशासनिक ट्रिब्यून का दरवाजा खटखटाया, तब से शिक्षा विभाग ने 15 रूपए मासिक का तुच्छ वेतन भी देना बंद कर दिया.
उनकी दुर्दशा तब सामने आयी, जब उडुपी स्थित ह्यूमन राइट प्रोटेक्शन फाउन्डेशन के अध्यक्ष रविन्द्रनाथ शानबाग ने इस मुद्दे को हाथ में लिया और इस मामले की पैरवी सर्वोच्च न्यायालय तक की.
श्री शानबाग ने पत्रकारों को बताया कि सर्वोच्च न्यायालय, कर्नाटक उच्च न्यायालय और कर्नाटक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने इन महिलाओं के पक्ष में फैसला दिया और सरकार को इनकी नौकरी पक्की करने का निर्देश दिया, लेकिन सरकार ने अभी तक उस आदेश का पालन नहीं किया.
उन्होंने बताया कि इस पूरी अवधि में, दोनों महिलायें कोई वेतन पाए बिना ही वर्षों तक उस संस्थान के 21 शौचालयों की सफाई करती रहीं.
कर्नाटक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने 2003 में ही सरकार से 90 दिन के भीतर उनकी सेवा नियमित करने को कहा था और कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 2004 में ही उनका बकाया वेतन भुगतान करने का आदेश दिया था. यह सुचना भी जारी हुई थी कि अगर आदेशों का पालन नहीं किया गया तो इसे न्यायालय की अवहेलना मानी जायेगी. लेकिन उन्हें वेतन का भुगतान करने के बजाय सरकार ने 2005 में सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर कर दी.
श्री शानबाग ने बताया कि “सर्वोच्च न्यायालय ने 2010 में इन महिलाओं के पक्ष में फैसला दिया. इन सभी आदेशों के बावजूद ये महिलायें आज भी अपना हक पाने का इंतजार कर रही हैं.” उनका कहना था कि “अब सरकारी अधिकारी कह रहे हैं कि ये महिलायें नौकरी पर रखने लायक नहीं हैं, क्योंकि अब वे सेवानिवृति की उम्र तक पहुँच गयी हैं. मैं हैरान हूँ कि इन बदहाल महिलाओं की बकाया राशि का भुगतान करने के बजाय सरकार ने उनके खिलाफ मुक़दमा लड़ने पर लाखों रुपये फूँक दिये.
क्या सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर कोई अदालत है जो इन महिलाओं को न्याय दे सके?” श्री शानबाग ने सवाल किया और सरकार से आग्रह किया कि इन महिलाओं का जो भी बकाया है, उसका भुगतान करे.
(मूल अंग्रेजी लेख और चित्र के लिए हम द हिंदू के आभारी हैं)

2 comments:

  1. अनवरत या तीसरा खंबा में मैं इस पर 2010 में ही लिख चुका था। हैरानी है कि अभी तक इन महिलाओं को उन के अधिकार प्राप्त नहीं हुए। मौजूदा व्यवस्था बिलकुल बेशर्म हो चुकी है।

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    1. बेशर्म ही नहीं, हृदयहीन भी, दिनेश जी.

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