स्पेन में अशांति और दंगे (फोटो ए पी के प्रति आभार सहित ) |
यूरोपीय संघ को नोबेल शान्ति पुरस्कार देना एक भद्दा मजाक और उन्माद भरी जालसाजी है. नोर्वे नाटो का सदस्य देश है. सबसे अहम यह कि यूरोपीय संघ के सदस्य देश भी नाटो के सदस्य देश हैं, जो वास्तव में यूरोपीय संघ सैनिक शक्ति के रूप में काम करता है. इसलिए नाटो नोर्वेजियाई नोबेल “शान्ति” समिति ने नाटो यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को अपना पुरस्कार दिया है, क्योंकि उसने अभी हाल ही में लीबिया के खिलाफ हमलावर युद्ध छेड़ा, ताकि वहाँ के तेल ओर गैस भंडार पर डाका डाले और इस दौरान लगभग 50,000 अफ्रीकियों को वहाँ से भगा दे. यह यूरोपीय गौरांग नस्लवादी उपनिवेशवादी साम्राज्यवाद का मामला है जो दुबारा अफ्रीका पर शिकंजा कस रहा है- फर्क सिर्फ यही है कि इस बार यह कुकृत्य बेहतर देखरेख के लिए नोबेल शान्ति पुरस्कार का ठप्पा लगा कर किया जा रहा है.
प्रोफ़ेसर फ्रांसिस ए. बोएल अंतरराष्ट्रीय न्याय के विशेषग्य हैं. वे 1998 में फिलीस्तीनी स्वतंत्रता की घोषणा के बारे में फिलीस्तीनी मुक्ति संगठन और यासिर अराफात के क़ानूनी सलाहकार थे. साथ ही, वे 1991 से 1993 तक मध्य-पूर्व शान्ति वार्ता के प्रतिनिधि थे जिस दौरान उन्होंने उस ओस्लो समझौते के लिए, जो अब बेकार हो चुका है, फिलिस्तीन की ओर से जवाबी प्रस्ताव तैयार किया था. उनकी रचनाओं में “पेलेस्टाइन, पेलेस्तिनियन एण्ड इंटरनेशनल ला” (2003) और “द पेलेस्तिनियन राइट ऑफ रिटर्न अंडर इंटरनेशनल ला” (2010) शामिल हैं.
प्रोफ़ेसर फ्रांसिस ए. बोएल ने 1976 में नोबेल शान्ति पुरस्कार के लिए नामांकन की पात्रता हासिल की थी, जब उन्होंने पहली बार हावर्ड में इंटरनेशनल ला का अध्यापन शुरू किया था.
(Countercurrents.org से आभार सहित लिया और अनूदित किया गया.)
इन्हीं कारगुजारियों की वजहसे नोबेल एक मजाक बन चुका है।
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