हमारी भाषा के जनपक्षधर कवि त्रिलोचन का देहांत हो गया। नब्बे से ऊपर का यह काल यात्री आधी सदी से भी अधिक समय तक हिन्दी कविता की कठिन राह को अनवरत हमवार करता रहा। नए-नए जतन से हमारी बात कहने वाला यह काव्य-पुरूष अब हमारे बीच नहीं रहा लेकिन उसकी कवितायें हमारे साथ हैं और हमेशा रहेंगी। हमारे जन और जनपद के इस सच्चे कवि की याद में प्रस्तुत है एक कविता :
पथ पर
चलते रहो निरंतर.
सूनापन हो
या निर्जन हो
पथ पुकारता है गत-स्वन हो
पथिक,
चरण ध्वनि से
दो उत्तर
पथ पर
चलते रहो निरंतर ....!
-त्रिलोचन
पथ पर
चलते रहो निरंतर.
सूनापन हो
या निर्जन हो
पथ पुकारता है गत-स्वन हो
पथिक,
चरण ध्वनि से
दो उत्तर
पथ पर
चलते रहो निरंतर ....!
-त्रिलोचन
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