(नाभिकीय ऊर्जा
पूरी दुनिया में विनाश का पर्याय बन चुका है। अमरीका के थ्री माइल्स वैली, रूस के
चेर्वोनिल और अभी हाल ही में जापान के फुकुशिमा ने बार-बार यह
चेतावनी दी है कि नाभिकीय ऊर्जा मानवता के लिए अत्यन्त घातक है। इससे निकलने
वाले विकिरण का प्रभाव मौजूदा पीढ़ी को ही नहीं बल्कि आने वाली असंख्य
बेगुनाह पीढ़ीयों को अपंग बनाता रहता है। यह बात जगजाहिर है।
पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश के शासक इन सच्चाइयों की अनदेखी करते हुए नाभिकीय ऊर्जा को हर कीमत पर बढ़़ावा दे रहे हैं। संसद में ‘‘नोट के बदले वोट’’ का खेल खेलकर भी अमरीका के साथ नाभिकीय समझौते को अन्तिम रूप दिया गया। जैतापुर और कुडानकुलम में वहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा प्रबल विरोध के बावजूद हर कीमत पर नाभिकीय संयंत्र लगाया जा रहा है।
पिछले कुछ दिनों से पूर्व-राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम जी कुडानकुलम नाभिकीय प्लांट के पक्ष में अभियान चला रहे हैं। आसपास की जनता लंबे अरसे से इस विनाशकारी परियोजना का विरोध कर रही है। श्री कलाम ने आसपास के गावों के लिए 200 करोड़ रुपये कि एक विकास योजना भी प्रस्तावित की है, जिसका अभिप्राय समझना कठिन नहीं. इस सन्दर्भ में भारत सरकार के पूर्व ऊर्जा सचिव और योजना आयोग के पूर्व ऊर्जा सलाहकार श्री ई.ए.एस. शर्मा का श्री कलाम के नाम यह खुला पत्र। अनुवाद - सतीश पासवान )
पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश के शासक इन सच्चाइयों की अनदेखी करते हुए नाभिकीय ऊर्जा को हर कीमत पर बढ़़ावा दे रहे हैं। संसद में ‘‘नोट के बदले वोट’’ का खेल खेलकर भी अमरीका के साथ नाभिकीय समझौते को अन्तिम रूप दिया गया। जैतापुर और कुडानकुलम में वहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा प्रबल विरोध के बावजूद हर कीमत पर नाभिकीय संयंत्र लगाया जा रहा है।
पिछले कुछ दिनों से पूर्व-राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम जी कुडानकुलम नाभिकीय प्लांट के पक्ष में अभियान चला रहे हैं। आसपास की जनता लंबे अरसे से इस विनाशकारी परियोजना का विरोध कर रही है। श्री कलाम ने आसपास के गावों के लिए 200 करोड़ रुपये कि एक विकास योजना भी प्रस्तावित की है, जिसका अभिप्राय समझना कठिन नहीं. इस सन्दर्भ में भारत सरकार के पूर्व ऊर्जा सचिव और योजना आयोग के पूर्व ऊर्जा सलाहकार श्री ई.ए.एस. शर्मा का श्री कलाम के नाम यह खुला पत्र। अनुवाद - सतीश पासवान )
भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम के नाम
पत्र
प्रेषक:
डॉ. ई. ए. एस. शर्मा
पूर्व सचिव (विद्युत ), भारत सरकार
पूर्व सलाहकार (ऊर्जा), योजना आयोग
प्रिय श्री अब्दुल कलम,
मैं नाभिकीय शक्ति पर द हिन्दू में प्रकाशित आपके अति-आश्वासनकारी लेख की
तरफ ध्यान
दिलाना चाहता हूँ। मैं समझता हूँ कि आप कुडानकुलम के लोगों को इस बात के लिए
आश्वस्त करने की हद तक चले गये कि नाभिकीय ऊर्जा ‘‘100 प्रतिशत सुरक्षित
है’’। मैं
आँकडों की जानकारी के मामले में बहुत ही अनाड़ी हूँ, फिर भी मुझे आश्चर्य है कि कैसे कोई व्यक्ति इतना प्रशंसात्मक दावा कर
सकता है, विशेषतया तब जब कि तकनोलोजी
से थोड़ा भी परिचित व्यक्ति इस तरह के दावे करने से हिचकेगा!
मैं श्रीकाकुलम, आंध्र
प्रदेश का रहने वाला हूँ। मेरे निवास के बहुत ही नजदीक, कोव्वाडा में न्यूक्लियर
पावर कारपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल)ने एक बहुत बड़ा नाभिकीय ऊर्जा
संयंत्र का काम्प्लेक्स लगाने का प्रस्ताव रखा है। नाभिकीय ऊर्जा कि
सुरक्षा को लेकर मेरी गंभीर आशंकायें हैं। अब जब कि यह मेरे घर के पिछवाड़े ही
लगाने जा रहा हैं, मेरी
आशंकायें कई गुना बढ़ गयी
हैं। जो व्यक्ति ऐसी तकोनोलोजी से प्रभावी होने वालों में शामिल हो
उसके मन में ऐसी
आशंकायें होना स्वाभाविक है, भले ही
कहीं दूर बैठकर लेख लिखने वाले व्यक्ति को,
ऐसी आशंकायें किसी “हास्य-विनोद
की किताबी कल्पना’’ जैसी लगाती
हों।
मैं समझता हूँ कि एनपीसीआईएल ने नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र के स्थान के चारों
ओर बसे
लोगों को चेतावनी देने के लिए उस संयंत्र के इर्द-गिर्द एक जोनिंग प्रणाली
स्थापित की है। मैं समझता हूँ कि,
”वर्जित क्षेत्र“,
‘‘विकिरण मुक्त
किया गया क्षेत्र” और “आपातकालीन जाँच-पड़ताल
क्षेत्र’’ उस
संयंत्र के घेरे से 16 किलोमीटर दूर तक फैला हुआ
है। श्रीकाकुलम मे रह रहे मेरे परिवार को अभी तक यह सब नहीं बताया गया है। शायद, प्रभावित होने वाले सिरे पर स्थित
लोगों को इसकी सूचना देने से पहले ही एनपीसीआईएल संयंत्र के पूरा हो जाने
कि प्रतीक्षा कर रहा है। आपका लेख निश्चय ही इस बात पर कूटनीतिक चुप्पी
साधे हुए है। शायद एनपीसीआईयल ऐसे तुच्छ तथ्यों को तूल देना नहीं चाहता
हो!
आपकी प्रतिष्ठा को ध्यान मे रखते हुए, मैंने आपके लेख को बहुत ही सावधानी से पढकर यह समझने की कोशिश की
कि कोव्वाडा “नाभिकीय
पार्क“ के
बिलकुल नजदीक रहने
वाला खुद मैं, कितना
सुरक्षित रह पाऊँगा। एनपीसीआईएल
ने इस संयंत्र को “स्वच्छ“ और “हरित” दिखाने के लिए उसे कितना
खूबसूरत नाम दिया है- “नाभिकीय
पार्क।"
एक स्थान पर, आपने निम्नलिखित दावा करने कि कृपा की है।
"नाभिकीय बहस के
इर्द-गिर्द एक अन्य दलील यह है कि नाभिकीय दुर्घटना और उसके बाद होने
वाला विकिरण केवल उसकी चपेट मे आनेवाली पीढ़ी को ही नुकसान नहीं पहुँचायेगा, बल्कि
आनेवाली पीढ़ियों पर भी अपना घातक प्रभाव डालता रहेगा। अगर केवल
अटकलबाजी और हास्य-विनोद की किताबी कल्पना की तुलना मे उपलब्ध तथ्यों
और वैज्ञानिक जाँच-पड़ताल को ज्यादा महत्त्व दिया जाय , तो यह
दलील हर तरह
से एक मिथक साबित होगी।"
इस तरह का बयान देने से पहले निश्चित तौर पर आपने इस विषय पर उपलब्ध वैज्ञानिक
साहित्य के सारे स्रोतों
की छानबीन की होगी। मुझे यकीन है कि आपने ऐसा जरूर किया होगा।
मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि अनुभव और अटकलबाजी की तुलना में वैज्ञानिक जाँच-परख को
ज्यादा महत्त्व दिया जाना चाहिए। लेख का एक-एक वाक्य पढ़ने के बाद मैं निम्नलिखित चिंताओ का
निवारण करने मे
असमर्थ रहा हूँ, जो अब भी
मेरे दिमाग को मथ रही है।
1- आपने
नाभिकीय तकनोलोजी की सुरक्षा
से जुड़े मसलों को महज अटकलबाजी कहते हुए दरकिनार कर दिया। लेकिन क्या आपने नाभिकीय संस्थापन से यह पूछने
का प्रयत्न
किया कि एनपीसीआईएल ने हरेक मौजूदा नाभिकीय संयंत्र के भीतर किसी खास अवयव
में खराबी आने के चलते पैदा होने वाली यांत्रिकी की गड़बड़ी से होने वाली
दुर्घटना की जटिल सम्भावना का अनुमान लगाने के लिए कभी विश्वस्त अभियांत्रिकी
सम्बन्धी अध्ययन कराया? यदि ऐसा
नहीं हुआ, तो क्या
आप केवल कुछ एक
दुर्घटनाओं के अपने मूल्यांकन के आधार पर, जो पिछले कुछ दशकों में घटित हुई हैं, इस
निष्कर्ष तक छलांग लगा सकते हैं कि दुर्घटना होने कि संभावना नगण्य है? क्या इस तरह का निष्कर्ष जो
अत्यन्त कृत्रिम नमूने पर आधारित हैं और सांख्यिकी के लिहाज से बेहद कमजोर हैं, भ्रामक
अनुमान की ओर नहीं
ले जाता?
2- आपने
कृतज्ञतापूर्वक यह स्वीकार किया है कि विकिरण से प्रभावित होने और कैंसर के
खतरे में कुछ सह-सम्बन्ध है। फिर भी आपने रेडीयोएक्टिविटी के दूरगामी हानिकारक प्रभावों
की सम्भावना, विशेषकर
मानव कोशिकाओं पर इसके
दुष्प्रभाव को कम करके आंका है। क्या संयोगवश आपने इस विषय पर उपलब्ध वैज्ञानिक
साहित्य कि विस्तृत जाँच-पड़ताल की? क्या आप पूरे आत्म-विश्वास से इस तथ्य को नकार सकते हैं कि लघु-तीव्रता और
उच्च-तीव्रता के विकिरण का मानव स्वास्थ्य पर सम्भावित प्रभाव, अनुवांशिकी प्रभाव सहित, के बारे में वैज्ञानिक
ज्ञान में भारी अंतर है? लघु-तीव्रता
तक के विकिरण का भी मानव
कोशिकाओं पर सम्भावित खतरे एक उदाहरण के तौर मैंने एक लेख संलग्न
किया है जो कुछ
दिनों पहले ‘द हिन्दू’ में उसी तरह छपा था, जिस तरह आपका यह लेख इस प्रतिष्ठित
समाचार-पत्र में छपा
था। मुझे उम्मीद है कि आपने स्वास्थ्य पर विकिरण के प्रभाव के बारे में दावे के साथ कहने से
पहले वैज्ञानिक साहित्य
का सावधानी से अध्ययन किया होगा।
3- नाभिकीय
तकनोलोजी के सकारात्मक पहलुओं पर वाक्पटुता के बावजूद आपने इसके नकारात्मक
पहलुओं की पूरी तरह अनदेखी की है। मैं इसके कारणों को समझ सकता हूँ।
तकनोलोजी के अनेक मामलों में, तकनोलोजी
संस्थाएँ, अपनी
तकनोलोजी को आगे
बड़ाने की बेचैनी में, कीमतों
का कम, लेकिन
फायदों का अधिक आंकलन करती है। लोक-नीति के मामले में किसी भी व्यक्ति को अनिवार्य रूप से इसके
प्रति हमेशा
सतर्क रहना चाहिए।
4- क्या
आपने अब तक बन्द हुए किसी नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र के आधार पर किसी नाभिकीय
ऊर्जा संयंत्र को बंद करने की कीमत का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया? आपने “अवसर लागत“ के बारे मे तो बताया है, लेकिन क्या आपने लम्बे समय तक संचित
होने वाले रेडीयोएक्टीव कचरे के प्रबंधन की लगत का भी आंकलन का प्रयास
किया? क्या आप
जानते हैं कि इसकी लागत कितनी अधिक होगी यह आंकलन लगाना मुश्किल है? चेर्नोबिल को बन्द करने की
कीमत का आंकलन कभी नहीं हो पायेगा, क्योंकि
उसे कभी भी बन्द नहीं किया जा सकेगा। रूस सरकार दूषित चेर्नोबिल रिएक्टर के चारों
तरफ विदेशी वित्तीय सहायता से पत्थर का एक विराट ताबूत बना रही है! फुकुशिमा की क्या कीमत
चुकानी पड़ी, आज तक
किसी को नहीं
पता।
5- आपने
ऊर्जा और अर्थव्यवस्था के बीच के सम्बन्धों की बात कही हैं। इस मामले मे आपके विवेक
पर सवाल खड़ा करने में मुझे हिचकिचाहट हो रही है। हालाँकि मैं सुनिश्चित नहीं हूँ कि
आप ऊर्जा और आर्थिक विकास के ऊपर कुशलता सुधार, माँग प्रबंधन और दूसरे उपायों के प्रभाव से अवगत हैं या नहीं। मुझे
उम्मीद है कि इस
विषय पर आपने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइन्स के प्रो. अमूल्य रेड्डी से, जब वे जीवित थे, आपको इस विषय पर बातचीत का
अवसर मिला होगा। मैं अपने
पूरे सामर्थ्य से आपको पेंगुइन प्रकाशन के लेखक एमोरी बी लोविंस की किताब “सॉफ्ट इनर्जी पाथ्स:
टुवार्ड्स ए ड्यूरेबल पीस“ पड़ने की
सलाह देता हूँ। इस
विचारोत्तेजक किताब को पड़कर बहुत लाभान्वित हुआ हूँ।
श्री कलाम, इस पत्र
को लिखने का मेरा मकसद किसी भी तरीके से आपके लेख में खोट निकालना नहीं, बल्कि अपनी सच्ची मानवीय
चिंताओं को प्रकट करना है। आप एक विद्वान लेखक हैं। लेकिन मेरी जगह बैठे किसी व्यक्ति के लिए या
मौजूदा नाभिकीय ऊर्जा
संयंत्र के आस-पास बसे लोगों के लिए जो बात महत्त्वपूर्ण है, वह पूर्व-कल्पित धारणा पर
आधारित लेख नहीं, बल्कि
वैज्ञानिक प्रमाणों पर
आधारित तर्क है। मैं भयभीत हूँ कि आपका लेख जितने जवाब नहीं देता
उससे ज्यादा
सवाल खड़े करता है।
सादर,
आपका,
डॉ. ई. ए.एस. शर्मा
पूर्व सचिव(विद्युत),भारत सरकार
पूर्व सलाहकार(ऊर्जा ),योजना आयोग
विशाखापट्टनम (दिनांक 6-11-11)
अंग्रेजी मे मूल लेख पढने के लिए इस लिंक पर क्लीक करें-
वाह कलाम साहब!
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