जुझारू गायक पौल रोबसन |
क्रन्तिकारी तुर्की कवि नाजिम हिकमत |
वे हमें अपना गीत नहीं गाने दे रहे, रोबसन,
उकाब जैसी उड़ान वाले मेरे गायक पाखी
मोतिया मुस्कान बिखेरते मेरे अफ्रीकी भाई,
वे हमें अपना गीत नहीं गाने दे रहे हैं.
वे भयभीत हैं, रोबसन,
भोर की लालिमा से भयभीत,
भयभीत देखने, सुनने और छूने से-
नंगधडंग बच्चे को नहलाती बारिश के शोर से भयभीत,
जैसे कोई कच्ची नाशपाती में दाँत गडाये उस हँसी से भयभीत.
वे भयभीत हैं मोहब्बत करनेवालों से, मोहब्बत फरहाद की तरह.
(यकीनन तुम्हारे यहाँ भी कोई फरहाद हुआ होगा, रोबसन,
उसका नाम क्या है भला?)
वे बीज से भयभीत हैं, धरती से
और बहते पानी से
भयभीत किसी दोस्त के हाथ को याद करने से
जो कोई छूट, कोई कमीशन, कोई ब्याज नहीं माँगता –
हाथ जो कभी छूटा नहीं
जैसे कोमल हथेलियों में कोई चंचल चिड़िया.
वे उम्मीद से भयभीत हैं, रोबसन, उम्मीद से भयभीत, उम्मीद से!
उकाब जैसी उड़ान वाले मेरे गायक पाखी, वे भयभीत हैं,
वे हमारे गीतों से भयभीत हैं, रोबसन.
अक्टूबर 1949
(अनुवाद - दिगंबर)
एक यादगार और बेहतरीन कविता का उतना ही अच्छा अनुवाद...
ReplyDeleteशुक्रिया साथी!!
bahut achchhi kavita hai.
ReplyDeleteकविता में पहले अंग्रेजी अनुवाद में प्रयुक्त नीग्रो शब्द का हुबहू अनुवाद किया था जिसे सुधर कर अफ़्रीकी कर दिया. नीग्रो अपमानसूचक शब्द है और इतना प्रचलित है कि जाने-अनजाने हम भी इसका इस्तेमाल कर बैठते हैं. शाहीद अख्तर को धन्यवाद, जिन्होंने इस भूल की ओर ध्यान दिलाया.
ReplyDeleteBehtareen anuvaad.
ReplyDeleteShandar kavitaa.