Monday, February 4, 2013

अराजनीतिक बुद्धिजीवी


-ओत्तो रेने कास्तिलो 
(ग्वाटेमाला के क्रन्तिकारी कवि, जन्म 1934 – मृत्यु 1967 )

















एक दिन
हमारे देश के
अराजनीतिक बुद्धिजीवियों से
पूछताछ करेंगे
हमारे सबसे सीधे-सादे लोग.

उनसे पूछा जायेगा
कि उन्होंने क्या किया
जब उनका राष्ट्र
मरता रहा धीरे-धीरे,
सुलगता धीमी आँच में,
निर्बल और अकेला.

कोई भी उनसे नहीं पूछेगा
उनकी पोशाक के बारे में,
दोपहर में खाकर
सुस्ताने के बारे में,
कोई नहीं जानना चाहेगा
“शून्य के विचार” के साथ
उनके बंजर मुकाबलों के बारे में.

परवाह नहीं करेगा कोई भी
उनकी महँगी ऊँची पढ़ाई की.
नहीं पूछा जायेगा उनसे
यूनानी मिथकों के बारे में.
या उस आत्म-घृणा के बारे में
जो उत्पन्न होती है उस समय
जब उन्हीं में से कोई
शुरू करता है
कायरों की मौत मरना.

कुछ भी नहीं पूछा जायेगा 
उनके बेहूदे तर्कों के बारे में,
जो सफ़ेद झूठ के साये में
पनपते हैं.

उस दिन
सीधे-सादे लोग आयेंगे.
जिनके लिए कोई जगह नहीं थी
अराजनीतिक बुद्धिजीवियों की
किताबों और कविताओं में,
लेकिन रोज पहुँचाते रहे जो
उनके लिए ब्रेड और दूध,
तोर्तिला और अण्डे,
वे जिन्होंने उनके कपडे सिले,
वे जिन्होंने उनकी गाड़ी चलाई,
जिन लोगों ने देख-भाल की
उनके कुत्तों और बागवानी की
और खटते रहे उनकी खातिर,
और वे लोग पूछेंगे-
“क्या किया तुमने जब गरीब लोग
दुःख भोग रहे थे, 
जब उनकी कोमलता
और जीवन जल रहा था
भीतर-भीतर?”   

मेरे मधुर देश के
अराजनीतिक बुद्धिजीवीयो,
तुम कोई जवाब नहीं दे पाओगे.
चुप्पी का गिद्ध
तुम्हारी आँतों को चबायेगा,
तुम्हारी अपनी दुर्गति
कचोटेगी तुम्हारी आत्मा.
और लाज के मारे
मौन रह जाओगे तुम. 

(अनुवाद- दिगम्बर)

2 comments:

  1. कास्तिलो को वहां की सैन्य सरकार ने संभवतः जिन्दा जला दिया था |यह एक महान कवि की महान कविता है | लेकिन इसका एक और अनुवाद मैंने पढ़ा है | माफ़ी और माजरत के साथ कह रहा हूँ , कि वह अनुवाद कविता की दृष्टि से बहुत उत्कृष्ट है | मैं खोजकर उसे देने का प्रयास करूँगा | आपका प्रयास भी अच्छा है | इतना अच्छा कि बधाई तो दी ही जा सकती है | मेरी प्रिय कविताओं में से एक |

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    1. मैंने भी इसका अच्छा वाला अनुवाद पढ़ा है रामजी भाई और वाह नहीं मिला तो मैंने अनुवाद कर दिया कि कामचलाऊ ही सही, यह सन्देश लोगों तक पहुँच जाय. अगर वह अनुवाद मिले तो खुशी होगी.

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