Tuesday, August 6, 2013

एदुआर्दो गालेआनो की कविता- सपना देखने का अधिकार

eduardo 1
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1948 में और दुबारा 1976 में मानवाधिकारों की लम्बी सूची जारी की, लेकिन मानवता की भारी बहुसंख्या आज भी सिर्फ देखने, सुनने और चुप रहने के अधिकार का ही उपभोग कर पाती है। मान लीजिये की हम सपना देखने के अधिकार का प्रयोग करने लगें, जिसकीआज तक किसी ने घोषणा नहीं की ? मान लीजिये की हम थोडा बक-बक करने लगें? आइये, हम अपनी निगाहें इस मौजूदा घिनौनी दुनिया की जगह एक बेहतरीन दूसरी दुनिया की ओर टिकाएँ जो मुमकिन है-

हवा तमाम जहरीली चीजों से साफ हो, सिवाय उन जहरों के जो पैदा हुए हों इंसानी डर और इंसानी जज्बात से;

सडकों पर, कारें रौंदी जाएँ कुत्तो के द्वारा;

लोग कारों से न हाँके जाएँ या संचालित न हों कंप्यूटर प्रोग्राम से या खरीदे न जाएँ सुपर बाज़ार के द्वारा या उन पर निगाह न रखी जाय टेलीविजन से;

आगे से टीवी सेट परिवार का सबसे ख़ास सदस्य न रह जाएँ और उनके साथ वैसा ही सलूक किया जाय, जैसा इस्तरी या वाशिंग मशीन के साथ;

लेग श्रम करने के लिए जीने के बजाय जीने के लिए श्रम करें;

कनून की नजर में माना जाय मूर्खता का अपराध कि लोग धन बटोरने या जीतने के लिए जिन्दा रहें, बजाय इसके कि सहजता से जीयें, उन पंछियों की तरह जो अनजाने ही चहचहाते हैं और उन बच्चों की तरह जो खेलते हैं बिना यह जाने कि वे खेल रहे हैं;

किसी देश में युद्व के मोर्चे पर जाने से इन्कार करने वाले नौजवान जेल नहीं जायें बल्कि जेल जायें वे लोग जो युद्व छेड़ना चाहते हैं;

अर्थशास्त्री उपभोग के स्तर से जीवन स्तर को या उपभोक्ता सामानों की मात्रा से जीवन की गुणवत्ता को न नापें;

रसोईये इस बात में यकीन न करें कि लोबस्टर को अच्छा लगता है जिन्दा उबाला जाना;

इतिहासकार इस बात में यकीन न करें कि देशों को अच्छा लगता है उन पर हमला किया जाना;

राजनेता इस बात में यकीन न करें कि सिर्फ वादों से भर जाता है गरीब लोगों का पेट;

गम्भीरता को सद्गुण नहीं समझा जाय और जो खुद पर हँसना नहीं जानता हो, उसे गम्भीरता से न लिया जाय;

मौत और पैसेकी जादुई शक्ति गायब हो जाय और कोई चूहा महज वसीयत या दौलत के दम पर अचानक गुणी जन न बन जाय;

अपने विवेक के मुताबिक जो ठीक लगे वह काम करने के लिए किसी को मूर्ख न समझा जाय और नाह ही अपने फायदे के हिसाब से काम करने वाले को बुद्विमान;

पूरी दुनिया में गरीबों के खिलाफ नहीं, बल्कि गरीबी के खिलाफ जंग छिड़े और हथियार उद्योग के सामने खुद को दिवालिया घोषित करने के सिवा कोई चारा न रह जाये;

भोजन खरीद-फरोख्त का सामान न हो और संचार साधनों का व्यापार न हो क्योंकि भोजन और संचार मानवाधिकार हैं;

कोई व्यक्ति भूख से न मरे और कोई व्यक्ति खाते-खाते भी न मरे;

बेघर बच्चों को कूड़े का ढेर न समझा जाय क्योंकि कोई भी बच्चा बेघर न रह जाय;

धनी बच्चों को सोने जैसा न माना जाय क्योंकि कोई भी बच्चा धनी न रहे;

शिक्षा उन लोगों का विशेषाधिकार न हो जिनकी हैसियत हो उसे खरीदने की;

पुलिस उन लोगों पर कहर न ढाये जिनकी जेब में उसे देने के लिए पैसा न हो;

न्याय और मुक्ति, जिन्हें जन्म से ही आपस में जुड़े बच्चों की तरह काट कर अलग कर दिया गया, आपस में फिर मिलें और एक साथ जुड़ जायें;

एक महिला, एक अश्वेत महिला ब्राजील में राष्ट्रपति चुनी जाय, एक रेड इण्डियन महिला ग्वाटेमाला में और दूसरी पेरू में सत्ता संभाले;

अर्जेंनटीना की प्लाजा द मेयो (1) की सनकी औरतों को मानसिक स्वास्थ्य की सब से अच्छी मिसाल समझा जाय क्योंकि उन्होंने जान पर खतरा जानकर भी चुप स्वीकार नहीं किया चुप बैठना;

चर्च और पचित्र माता, मूसा के शिलालेख की गलत लिखावट को दुरूस्त करें और उनका छठा आदेश शरीर के उत्सव मनाने का आदेश दे;

एक और आदेश की घोषणा करे चर्च, जिसे भूल गया था ईश्वर- तुम प्रकृति से प्यार करो क्योंकि तुम उसी के अंग हो;

जंगलों से आच्छादित हों दुनिया के रेगिस्तान और धरती की आत्मा;

नाउम्मीद लोगों में उम्मीद की किरण फूटे और खोये हुए लोगों का पता लगा लिया जाय क्योंकि वे लोग अकेले-अकेले राह तलाशने के चलते निराश हुए और रास्ते से भटक गये;

हम उन लोगों के हमवतन और हमसफर बनें जिनमें न्याय और खूबसूरती की चाहत हो, चाहे वे कहीं भी रहते हों, क्योंकि आने वाले समय में कहातम हो जाएँ देशों के बीच सरहदें और दिलों के बीच की दूरी;

शुद्धता केवल देवताओं का उबाऊ विशेषाधिकार भर रह जाये, और हम अपनी गड़बड़ और गन्दी दुनिया में इस तरह गुजारें हर रात जैसे वह आखिरी रात हो और हर दिन जैसे पहला दिन...
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1. प्लाजा द मेयो- अर्जेंनटीना में 1976 से 1983 के बीच सैनिक तानाशाही के अधीन सरकार का विरोध करने वाले क्रांतिकारी नौजवानो को गिरफ्तार करके यातना देने, हत्या करने और गायब कर देने की घटनाएं आम हो गयी थीं। उन नौजवानों की माताओं ने प्लाजा द मेयो नाम से संगठन बनाकर तानाशाही की इन क्रूरताओं का खुलकर विरोध किया था।)

(अनुवाद- दिगम्बर)

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