रायटर्स की एक रपट के मुताबिक ब्रिटिश दवा कम्पनी
ग्लैक्सो-स्मिथक्लीन ने अपने घटिया कुकृत्य के लिए लगाये गए एक आपराधिक आरोप को स्वीकारने
और 3 अरब डालर का जुर्माना भरने पर सहमति दे दी है, जिसे अमरीकी अधिकारी वहाँ के
इतिहास में स्वास्थ्य सम्बंधी धोखाधड़ी का सबसे बड़ा मामला बताते हैं.
अमरीकी न्याय विभाग की जाँच के मुताबिक
ग्लैक्सो ने पैक्सिल नामक अवसादरोधी दवा बिना मंजूरी लिए 18 साल से कम उम्र के
रोगियों को बेंची जो केवल वयस्कों के लिए मान्य थी. वजन घटाने और नपुंसकता का इलाज
करने के नाम पर उसने वेल्बुट्रिन नाम की ऐसी दवा बेंची जिसे इन कामों के लिए
प्रयोग की अनुमति नहीं मिली थी.
अभियोक्ताओं के मुताबिक इन दवाओं की बिक्री
बढ़ाने के लिए ग्लैक्सो कम्पनी ने मेडिकल जर्नल का एक गुमराह करने वाला लेख बाँटा
तथा डॉक्टरों को आलिशान दावत और स्पा उपचार जैसी सुविधाएँ मुहैया की जो गैरक़ानूनी
रिश्वत जैसा ही है. इसके अलावा कंपनी के बिक्रय प्रतिनिधियों ने डॉक्टरों को हवाई
द्वीप पर छुट्टी मनाने, मेडोना के कार्यक्रम का टिकट देने और सेमिनार का खर्चा
उठाने पर करोड़ों डॉलर खर्च किये.
तीसरे मामले में कंपनी ने डायबिटीज की दवा
अवान्डिया के बारे में अमरीकी खाद्य एवं औषधि विभाग को सुरक्षा डाटा नहीं दिया जो
कानून के खिलाफ है. यह दुराचार ’90 के दशक से सुरु हो कर 2007 तक जारी रहा.
ग्लैक्सो कंपनी ने इन तीनों मामलों में आपराधिक
अभियोगों को स्वीकारने पर अपनी सहमति दी है. यह मामला खास तौर से मायने रखता है,
क्योंकि कारपोरेट दुराचार के मामलों में अपराध स्वीकारना बहुत ही दुर्लभ घटना हुआ
करती है. इस इल्जाम का दायरा और अहमियत इतना बेमिसाल है कि अमरीकी अधिकारी इसे
“ऐतिहासिक कार्रवाई” और “गैर कानूनी कामों में लिप्त कंपनियों के लिए साफ चेतावनी”
बता रहे हैं.
समझौते में कम्पनी को एक अरब डॉलर का आपराधिक
और दो अरब डॉलर का दीवानी जुर्माना चुकाना होगा. इस मामले ने 2009 के उस फैसले को
पीछे छोड़ दिया है जिसमें अमरीकी अदालत ने एक अन्य दवा कम्पनी फाइजर पर 13 दवाओं की
अवैध बिक्री के अभियोग में 2.3 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया था.
भारत में इन विदेशी बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियों
की आपराधिक गतिविधियों का तो कोई अंत ही नहीं है. दुनिया भर में प्रतिबंधित दवाएँ
तथा गैरकानूनी और बिलाइजाजत दवाएँ यहाँ धडल्ले से बिकती हैं. जिन दवाओं का जानवरों
पर परीक्षण करना भी विदेशों में वर्जित है, उनको यहाँ आदमी पर आजमाया जाता है.
दवाओं की कीमत का तो कोई हिसाब ही नहीं. फिर भी यहाँ इन पर कोई अंकुश नहीं है. तय
करना मुश्किल है कि इन मानवद्रोही कुकृत्यों के लिए इन विदेशी कंपनियों और हमारे
देशी शासकों में से किसका अपराध ज्यादा संगीन है.
इस कंपनी से तो कोबाडेक्स और हार्लिक्स याद आते हैं।
ReplyDeleteहार्लिक्स के नाम की जानेवाली लूट भी तो यही कंपनी कर रही है।