11 मार्च 2011 के
भूकंप, सुनामी और उसके चलते फुकुशिमा दायची नाभिकीय ऊर्जा सयंत्र में हुई परमाणु
दुर्घटना ने जापान के लोगों को भयंकर कष्ट सहने को बाध्य किया है और दुनिया भर में
विकिरण से होने वाले प्रदूषण को बढ़ा दिया है. साथ ही इसने परमाणु ऊर्जा से होने
वाले दीर्घकालिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और आर्थिक खतरों के बारे में दुनिया भर में
खतरे की घंटी बजा दी है.
थ्री माइल
आइलैंड और चेरनोबिल की तरह ही, फुकुशिमा में होने वाली दुर्घटना ने हमें एक बार
फिर याद दिला दिया है कि नाभिकीय तकनीक निर्मम है और इससे होने वाली दुर्घटनाओं को
रोका नहीं जा सकता. जैसा कि जापान सरकार ने घोषणा की है, परिस्थिति नियंत्रण में
नहीं है. नाभिकीय ऊर्जा सयंत्र की हालत अभी भी डांवांडोल है और कर्मचारी निरंतर
खतरनाक जीवन-परिस्थितियों में काम कर रहे हैं.
विकिरण से होने वाला
प्रदूषण लगातार फ़ैल रहा है. यह क्षेत्रिय और वैश्विक आपातकाल है. लोगों को या तो
अपने बाल-बच्चों के साथ कहीं भागने के लिये मजबूर किया जा रहा है या स्वास्थ्य से जुड़े भयावह खतरों और लंबे समय तक विकिरण से होने वाले जोखिम में जीने को मजबूर किया जा
रहा है. फुकुशिमा प्रान्त में, माताओं के दूध और बच्चों के पेशाब में रेडियोधर्मी
पदार्थ होने के सबूत मिले हैं. वर्त्तमान पीढ़ी ही नहीं, बल्कि आने वाली नस्लों की
जिंदगियां खतरे में हैं. इलाके की अर्थव्यवस्था नष्ट हो चुकी है.
नाभिकीय ईंधन की श्रृंखला
हर कदम पर ‘हिबाकुशा’ पैदा करती है. इस शब्द का प्रयोग हिरोशिमा और नागासाकी के
बमों से बचे लोगों की दुर्दशा बयान करने के लिये किया गया था, लेकिन अब इसका
इस्तेमाल विकिरण के शिकार हुए सभी लोगों के लिये किया जाता है. यूरेनियम का खनन,
नाभिकीय हथियारों के परीक्षण, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों में होने वाली दुर्घटनाओं
और नाभिकीय कचरे के भण्डारण और परिवहन, इन सारी कार्रवाइयों ने हिबाकुशा पैदा किया
है.
दुनियाभर में इन
हिबाकुशाओं ने गोपनीयता, शर्म और चुप्पी का माहौल तैयार किया है. सूचना का अधिकार,
स्वास्थ्य सम्बन्धी रिकार्ड, इलाज और मुआवजा या तो अपर्याप्त हैं, या “राष्ट्रीय
सुरक्षा” और पैसे की कमी का बहाना बनाकर नकार दिया गया है. उत्तरदायित्व का यह अभाव
सिर्फ जापान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बुनियादी समस्या है जो सरकारों और
नाभिकीय उद्योग के भ्रष्ट संबंधों के चलते नाभकीय उद्योग में हर जगह व्याप्त है.
आज हम एक दोराहे पर
खड़े हैं. हमारे पास नाभकीय ईंधन शृंखला से नाता तोडने तथा ऐसे कार्य - कुशल, अक्षय और दीर्घकालिक ऊर्जा की ओर बढ़ने का विकल्प
है जो हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को जोखिम में न डाले. अपनी भावी पीढ़ियों की
खातिर ऐसा करना हमारी जिम्मेदारी है. नाभकीय ऊर्जा से नाता तोडने का मामला नाभिकीय
हथियारों के उन्मूलन से जुड़ा हुआ है और यह चिरस्थायी विश्वशांति में सहायक होगा.
फुकुशिमा के लोगों
और नाभिकीय ऊर्जा मुक्त विश्व के लिये योकोहामा वैश्विक सम्मेलन में शामिल लोगों
की भावना के प्रति विश्व जनगण की एकजुटता यह दर्शाती है कि जनता की एकता के दम
पर ही वास्तव में हम अपने भविष्य की
आधारशिला रखेंगे.
हम आह्वान करते है:
1.
जवाबदेही और जिम्मेदारी सुनिश्चित
करना तथा अबतक जनता से सूचनायें छिपाने और परस्पर विरोधी सूचनायें जारी करने के
इतिहास को बदलते हुए जनता को सही सूचनायें मुहैया करने के लिये एक स्वतन्त्र निकाय
का निर्माण.
2.
फुकुशिमा नाभिकीय ऊर्जा
सयंत्र दुर्घटना से प्रभावित हुए लोगों के अधिकारों की सुरक्षा उन्हें इस खर्चे में अपना
हिस्सा देना चाहिए.
3.
नाभकीय ईंधन शृंखला-
यूरेनियम के खनन से कचरा निबटाने तक का क्रमश: उन्मूलन करने और नाभकीय ऊर्जा
संयंत्रों को बंद करने के लिए एक विश्वस्तर की मार्गदर्शक योजना. “सुरक्षा का मिथक”
ध्वस्त हो चुका है. नाभकीय तकनीक कभी भी सुरक्षित नहीं रहा है और यह कभी भी भारी सरकारी
अनुदान के बगैर नहीं चल पाया है. नवीनीकृत
ऊर्जा सही प्रमाणित हुआ है तथा विकेन्द्रीकृत रूप में और स्थानीय स्तर पर यह
इस्तेमाल के लिये उपलब्ध है, बशर्ते इसे प्रोत्साहित करने वाली नीतियों के जरिए
क्षेत्रिय अर्थव्यवस्थाओं को मदद की जाय, जैसे फीड-इन शुल्क*.
4.
जो जापानी नाभिकीय ऊर्जा
केन्द्र अभी बंद हैं, उनको फिर से शुरू न किया जाये. जापान की ऊर्जा जरूरतों को उन
नीतियों को अमल में लाकर पूरा किया जा सकता है जिसमें फीड-इन-शुल्क जैसे कानून
शामिल हैं जिन्हें स्वीकार कर लिया गया है और साथ ही जिसमें ऊर्जा के वितरण और
उत्पादन के मालिकाने का ढ़ाचा अलग-अलग हो.
5.
नाभिकीय ऊर्जा सयंत्रो और
उनके संघटकों के निर्यात पर प्रतिबन्ध, खास कर एशिया, मध्य पूर्व, अफ्रीका और
यूरोप के औद्योगीकृत देशो में.
6.
ऐसे समाज के निर्माण में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्थानीय और नगर निकायों को सहयोग देना जो नाभिकीय
ऊर्जा पर निर्भर ना हो. हम समुदायों को मजबूत बनाने, विकेन्द्रीकरण, नीचले स्तर से
योजना बनाने तथा आर्थिक, जातीयऔर लैंगिक भेदभाव का अंत करने के लिये स्थानीय और नगरपालिका
अधिकारीयों, क्षेत्रीय सांसदों और भद्र समाज के बीच एकजुटता को प्रोत्साहित करते
हैं.
7.
फुकुशिमा के नागरिकों के साथ
किये गये व्यवहार के विरोध में और नाभिकीय ऊर्जा से मुक्त विश्व की मांग के लिये 11 मार्च 2012 को दुनियाभर में कार्यक्रमों, प्रदर्शनों, विचार गोष्ठियों और मिडिया
कार्यकर्मों का आयोजन किया जायेगा.
ऊपर दिये गये सिद्धांतों के
आधार पर वैश्विक सम्मेलन के भागीदारों ने “नाभिकीय ऊर्जा मुक्त विश्व के लिये
कार्यवाहियों के अरण्य” की शुरुआत की, जिसमे ठोस कार्ययोजना शामिल हैं. ये सब
संस्तुतियां उपयुक्त रूप में जापानी सरकार, दूसरे देशों की सरकारों, दीर्घकालिक
विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (रियो+20) इत्यादि को पेश की जायेंगी.
योकोहामा में नाभकीय ऊर्जा
मुक्त विश्व के वैश्विक सम्मेलन में 10,000 लोग शामिल हुए, और 30,000 लोगों ने इसे
ऑनलाइन देखा. हम सभी सहभागी फुकुशिमा के समर्थन, वैश्विक हिबाकुशा तंत्र के तहत
विकिरण से प्रभावित लोगों की एकजुटता, ईस्ट एशिया नान न्यूक्लियर पॉवर मूवमेंट की
स्थापना तथा स्थानीय नगर नेताओं और नगराध्यक्षओं की एकता के लिये एक अन्तरराष्ट्रीय
मंच बनाने को प्रतिबद्ध हैं.
15 जनवरी 2012
नाभिकीय ऊर्जा मुक्त विश्व के
वैश्विक सम्मेलन में घोषित
योकोहामा, जापान
(इस घोषणापत्र का मसौदा
नाभिकीय ऊर्जा मुक्त विश्व के वैश्विक सम्मेलन की आयोजन समिति द्वारा तैयार किया
गया और दुनियाभर से आये भागीदारों ने इसका समर्थन किया.)
* फीड-इन शुल्क – दीर्घकालिक ऊर्जा उपभोग के लिये
लगाया जाने वाला शुल्क जो तकनीक पर किये गये खर्चे के आधार पर लगाया जाता है.
अनुवाद—दिनेश पोसवाल
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