Wednesday, November 21, 2012

कविता : आओ कसाब को फाँसी दें

-अंशु मालवीय


आओ कसाब को फाँसी दें !

उसे चौराहे पर 
फाँसी दें !

बल्कि उसे उस चौराहे पर 
फाँसी दें

जिस पर फ्लड लाईट लगाकर

विधर्मी औरतों से बलात्कार किया गया

गाजे-बाजे के साथ

कैमरे और करतबों के साथ

लोकतंत्र की जय बोलते हुए

उसे उस पेड़ की डाल पर 
फाँसी दें

जिस पर कुछ देर पहले खुदकुशी कर रहा था किसान

उसे पोखरन में 
फाँसी दें

और मरने से पहले उसके मुंह पर

एक मुट्ठी रेडियोएक्टिव धूल मल दें

उसे जादूगोड़ा में 
फाँसी दें

उसे अबूझमाड़ में 
फाँसी दें

उसे बाटला हाउस में 
फाँसी दें

उसे 
फाँसी दें.........कश्मीर में

गुमशुदा नौजवानों की कब्रों पर

उसे एफ.सी.आई. के गोदाम में 
फाँसी दें

उसे कोयले की खदान में 
फाँसी दें.

आओ कसाब को 
फाँसी दें !!

उसे खैरलांजी में 
फाँसी दें

उसे मानेसर में 
फाँसी दें

उसे बाबरी मस्जिद के खंडहरों पर 
फाँसी दें

जिससे मजबूत हो हमारी धर्मनिरपेक्षता

कानून का राज कायम हो

उसे सरहद पर 
फाँसी दें

ताकि तर्पण मिल सके बंटवारे के भटकते प्रेत को

उसे खदेड़ते जाएँ माँ की कोख तक......और पूछें

जमीनों को चबाते, नस्लों को लीलते

अजीयत देने की कोठरी जैसे इन मुल्कों में

क्यों भटकता था बेटा तेरा

किस घाव का लहू चाटने ....

जाने किस ज़माने से बहतें हैं

बेकारी, बीमारी और बदनसीबी के घाव.....

सरहद की औलादों को ऐसे ही मरना होगा

चलो उसे रॉ और आई.एस.आई. के दफ्तरों पर 
फाँसी दें

आओ कसाब को 
फाँसी दें !!

यहाँ न्याय एक सामूहिक हिस्टीरिया है

आओ कसाब की 
फाँसी को राष्ट्रीय उत्सव बना दें

निकालें प्रभातफेरियां

शस्त्र-पूजा करें

युद्धोन्माद,

राष्ट्रोन्माद,

हर्षोन्माद

गर मिल जाए कोई पेप्सी-कोक जैसा प्रायोजक

तो राष्ट्रगान की प्रतियोगिताएं आयोजित करें

कंगलों को बाँटें भारतमाता की मूर्तियां

तैयारी करो कम्बख्तो ! 
फाँसी की तैयारी करो !

इस एक 
फाँसी से

कितने मसले होने हैं हल

निवेशकों में भरोसा जगना है

सेंसेक्स को उछलना है

ग्रोथ रेट को पहुँच जाना है दो अंको में

कितने काम बाकी हैं अभी

पंचवर्षीय योजना बनानी है

पढनी है विश्व बैंक की रपटें

करना है अमरीका के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास

हथियारों का बजट बढ़ाना है...

आओ कसाब को 
फाँसी दें !

उसे गांधी की समाधि पर 
फाँसी दें

इस एक काम से मिट जायेंगे हमारे कितने गुनाह

हे राम ! हे राम ! हे राम !

3 comments:

  1. सटीक रचना,अंशु जी ने बिलकुल सही लिखा है

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    1. kya khak sahi likha hai
      har ghatana ko desh ki samashyaon se jodna kahaan tak uchit thaharaya ja sakta hai.

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  2. हिलाकर रख देने वाली रचना ..जबरदस्त ..

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