क्यूबा ने शोध प्रयासों के जरिये अपने देश को डेंगू बुखार से मुक्त कर लिया है।
–विश्व स्वास्थ्य संगठन
क्यूबा के
वैज्ञानिक मारिया जी गुजमान और गुस्तावो कोरी ने बताया कि क्यूबा यह दिखाता है कि
कैसे संसाधनों की कमी होते हुए भी कोई देश शोध कार्यों के जरिये डेंगू जैसी वैश्विक स्वास्थ्य समस्या से निपट सकता है।
लेखकों के अनुसार हमारे देश ने पूर्ण रूप से स्थानीय स्तर पर प्रासंगिक मूलभूत समस्याओं को निशाना बनाकर और व्यवहार में लाये जाने वाले शोध के जरिये असंभव-सा लगने वाले इस काम को कर दिखाया है।
क्यूबा के स्वदेशी अध्ययनों ने इस बुखार से सम्बंधित उसकी जानकारी को बेहतर बनाया और अपने द्वीप के प्रसंग में इसकी खासियतों को उजागर किया जैसे मनुष्यों में डेंगू प्रतिरोधी जीन का मौजूद होना।
लेखकों के अनुसार स्थानीय शोधकार्यों से नये-नये निदान उपकरण बनाये गये हैं जिनकी सहायता से देशभर में फैले प्रयोगशालाओं के जाल की सहायता से खून के नमूनों का विश्लेषण किया जाता है इसी की देन है कि रोग निगरानी करने की उसकी क्षमता काफी बढ़ गयी है और क्यूबा आत्मनिर्भर हो गया है। अपने भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के जरिये क्यूबा ने इन कामों को बखूबी अंजाम दिया। टीका लगाने वाली 2 दवाईयाँ भी विकसित की गयी हैं जो अब इलाज से पहले किये जाने वाले मूल्यांकन के काफी आगे के चरण में हैं।
‘वेक्टर कंट्रोल योजनाओं’ की सूचना देने के लिए भी शोध जानकारी का उपयोग
किया जाता है। इसका इस्तेमाल कीट विज्ञान संबंधी शोध
कार्यो जैसे -कीटनाशकों के प्रतिरोध की प्रक्रिया का अध्ययन
करने या ऐसे पर्यावरण संबंधी लक्षणों का पता लगाने
में किया जाता है जो डेंगू-वाहक मच्छरों को फैलाने में मदद करते हैं।
लेखकों के अनुसार ‘वेक्टर कंट्रोल योजना’ में स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए कुछ अन्य जाँच पड़ताल किये जा रहे हैं। यह काम काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि डेंगू फैलाने वाले मच्छरों का मौजूद होना मानव व्यवहार पर निर्भर करता है।
यह अध्ययन लान्सेट नामक ख्यातिलब्ध मैडिकल जनरल में प्रकाशित हुआ है। क्यूबा ने एक बार यह फिर साबित किया है कि अपने देश के स्रोत-साधनों और जनता की सहभागिता के बलबूते बड़ी से बड़ी समस्या का समाधन किया जा सकता है। हमारे देश की राजधानी में हर साल डेंगू एक महामारी का रूप ले लेता है और सरकारी तंत्र तमाशा देखता रह जाता है। दूर देहात में गाँव के गाँव ऐसी बीमारियों की चपेट में होते हैं और हजारों लोग सवास्थ्य सेवाओं के निजीकरण और मुनाफाखोरी की भेंट चढ़ जाते हैं। सबके लिए स्वास्थ्य की गारण्टी उसी समाज में सम्भव है जो सामाजिक न्याय और समानता पर आधरित हो।
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