वानपिंग किला, बीजींग में नार्मन बेथ्यून की प्रतिमा |
(यह दुर्लभ रचना एक ऐसे विशाल ह्रदय, निःस्वार्थ और
कर्मठ क्रन्तिकारी का प्रत्यक्ष अनुभव है, जिसने निःस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा
करते हुए अपने प्राण निछावर कर दिए. पेशे से डॉक्टर और शोधकर्ता नार्मन बेथ्यून
कनाडा के निवासी थे. स्पेन के गृहयुद्ध में और चीन पर दूसरे जापानी हमले के खिलाफ
वहाँ की जनता द्वारा चलाये जा रहे प्रतिरोधयुद्ध के दौरान वहाँ घायलों की सेवा के
लिए चिकित्सकों के अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा मिशन में शामिल हुए थे. घायलों की सेवा
के दौरान ही उन्होंने स्पेन में खून चढाने की सचल सेवा और चीन में युद्धभूमि में
शल्यक्रिया की विधि विकसित की थी. चीन में घायल क्रन्तिकारी योद्धाओं की सेवा के
दौरान 12 नवंबर 1939 को 49 वर्ष की उम्र में
उनकी मृत्यु हो गयी थी.
नार्मन बेथ्यून कनाडा की कम्युनिस्ट
पार्टी के सदस्य थे. उनका मानना था कि युद्ध किसी उसूल के लिए नहीं, बल्कि मुनाफे
की हवस का नतीजा होते हैं. उनका जीवन विश्वबंधुत्व, समानता और न्याय में विश्वास
रखने वाले युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. हिंदी अनुवाद- दिनेश पोसवाल.) )
सिर के ऊपर मिट्टी तेल का लैम्प मधुमक्खियों के उत्तेजित झुण्ड जैसी स्थायी
भिनभिनाहट वाली आवाज कर रहा है. मिट्टी की दीवारें. मिट्टी के बिस्तर. सफ़ेद कागज
जैसी खिड़कियाँ. खून और क्लोरोफार्म की गंध. ठण्ड. सुबह के तीन बजे, 1 दिसम्बर, उत्तरी चीन, लिन
चू के निकट, ८वीं रूट आर्मी के साथ. जख्म खाये हुए आदमी. छोटे सूखे तालाब जैसे जख्म,
जो काली-भूरी मिट्टी से ढँके हुए हैं; काली गैंग्रीन जैसे झालरनुमा खुरदरे किनारों
वाले जख्म; साफ जख्म जो अपनी गहराइयों में मवाद छिपाये हुए हैं, जो बेहतरीन मजबूत माँसपेशियों
में अंदर और उसके बीच में एक ठहरी हुई नदी की तरह पैवस्त है और जो माँसपेशियों के
अंदर और उसके आसपास गर्म धारा की तरह बह रहा है; जख्म जो बाहर की तरफ फैल रहे हैं,
सड़ते हुए आर्किड या कुचली हुई लालिमा की तरह, मानव देह पर दारुण पुष्प; जख्म जिनसे
मनहूस गैस के बुलबुलों के साथ, खून के काले थक्के वेगपूर्वक बाहर निकलते हैं, जो
अभी भी निरंतर जारी खून के ताजा बहाव पर तैर रहे हैं.
पुरानी
गंदी पट्टियाँ खून के सूखने के चलते खाल से चिपक गयी हैं. सावधानी से. पहले उसे नम
होने दो. जांघ के आरपार. टांग को ऊपर उठाओ. यह एक थैले की तरह क्यों है, एक शिथिल
लंबे झोले की तरह. कैसा लंबा झोला? क्रिसमस के तोहफों से भरा लंबा झोला. वह हड्डी
का मजबूत दंड कहाँ हैं? वह दो दर्जन टुकड़ों में टूट गया है. अपनी अँगुलियों से एक-एक
करके उन्हें बाहर निकालो; किसी कुत्ते के दांतों की तरह सफ़ेद, तीखे और नुकीले
टुकड़े. अब महसूस करो. क्या ओर भी बची हैं? हाँ, यहां. सब हो गया? हाँ; नहीं, यहां
एक ओर टुकड़ा बाकी है. क्या यह मांसपेशी मृत हो गयी है? चिकोटी काट कर देखो. हाँ,
यह बेजान है, इसे काट कर निकाल दो. इसे कैसे ठीक किया जा सकता है? किस तरह ये मांसपेशियाँ,
जो कभी इतनी मजबूत थीं, जो अब इतनी विदीर्ण, इतनी बरबाद, इतनी नष्ट हो चुकी हैं,
वे फिर से अपना कसाव वापस हासिल कर सकती हैं? खींचो, आराम से. खींचो, आराम से. यह
कैसा तमाशा था! अब ये काम खत्म हुआ. अब यह काम पूरा हो गया. अब हम बरबाद हो गए
हैं. अब हम खुद का क्या करेंगे?
अगला.
कैसा नाबालिग बच्चा है! सत्रह साल का. इसके पेट में गोली मारी गयी है.
क्लोरोफार्म. तैयार? उदर-झिल्ली में छेद होने के कारण तेजी से बाहर निकलती है. मल
की दुर्गन्ध. फैली हुए अंतड़ियों की गुलाबी कुंडली. चार छिद्र. इन्हें बंद करो.
टांके लगाओ. कमर को स्पंज से साफ़ कर दो. नली. तीन नलियाँ. इन्हें बंद करना मुश्किल
है. उसे गर्म रखो. कैसे? इन ईंटों को गर्म पानी में डुबाओ.
गैंग्रीन
एक धूर्त, दबे पाँव अंदर आने वाली चीज है. क्या यह जख्मी अभी जीवित है? हाँ, यह जिन्दा
है. तकनीकी रूप से कहें तो जिन्दा है. इसे नस के जरिये लवण का घोल चढ़ा दो. शायद
इसके शरीर की असंख्य छोटी-छोटी कोशिकायें याद कर सकें. शायद वे उष्ण खारे समुद्र,
अपने पैतृक घर, अपने पहले भोजन को याद कर सकें. लाखों सालों की यादों के बीच, वे
शायद दूसरे ज्वारभाटाओं, दूसरे महासागरों, और समुद्र और सूर्य से पैदा हुए जीवन को
याद रख सकें. शायद यह उसे अपने थके हुए छोटे सिर को फिर से उठाने में, जी भरकर
पीने में मदद कर सके और एक बार फिर उसे जीवन के संघर्षों में वापस ला सके. शायद
ऐसा हो जाय.
और
यह जख्मी. क्या यह एक बार फिर अगली फसल के वक्त अपने खच्चर के साथ, असीम आनंद और
प्रसन्ता से चिल्लाते हुए, सड़क के किनारे दौड़ पायेगा? नहीं, यह अब फिर कभी नहीं दौड़ पायेगा. आप एक टांग से
कैसे दौड़ सकते हैं? वह क्या करेगा? क्यों, वह बैठेगा और दूसरे लड़कों को दौड़ते हुए
देखेगा. वह क्या सोचेगा? वह वही सोचेगा जो हम और आप सोचते हैं. दया दिखाने का क्या
फायदा है? उससे हमदर्दी ना दिखायें! हमदर्दी उसके बलिदान को कम कर देगी. उसने यह
सब चीन की रक्षा के लिये किया. उसकी मदद करो. उसे मेज पर से उठाओ. उसे अपनी बाँहों
में उठाकर ले चलो. क्यों, वह एक बच्चे की तरह हल्का है! हाँ, आपका बच्चा, मेरा
बच्चा.
उसका
शरीर कितना खुबसूरत है: उसकी चाल कितनी निश्छल है; वह कितने उम्दा तरीके से चलता
है; कितना आज्ञाकारी, गर्वीला और मजबूत. और कितना दारुण जब चोट खाये हुए है. जिंदगी
की छोटी सी शमाँ मद्धम होती जाती है, और एक झिलमिलाहट के बाद, बुझ जाती है. वह एक
मोमबत्ती की तरह बुझ जाता है. धीमे से और हल्के से. वह अपने अन्त पर अपना विरोध
दर्ज करता है, फिर समर्पण कर देता है. उसका भी कभी अपना समय था, अब वह खामोश है.
क्या
और भी हैं? चार जापानी कैदी. इन्हें अंदर ले आओ. दर्द के इस जमात में कोई भी शत्रु
नहीं है. इनकी खून से सनी वर्दी काट कर उतार दो. इस रक्तस्राव को रोको. इन्हें दूसरों
के बगल में लिटा दो. क्यों, ये भाइयों की तरह हैं! क्या ये सिपाही पेशेवर
मानव-हत्यारे हैं? नहीं, ये हथियार लिये हुए अनाड़ी हैं. मजदूरों के हाथ. ये
वर्दीधारी मजदूर हैं.
अब
और नहीं हैं. सुबह के छह बज रहे हैं. हे भगवान, इस कमरे में काफी ठण्ड हो गयी है.
दरवाजा खोल दो. दूर, गहरे-नीले पर्वतों के पार, पूरब में, एक मद्धिम, धुंधली रोशनी
प्रकट हो रही है. एक घंटे में सूरज निकल आएगा. बिस्तर पर जाने और सोने का समय.
लेकिन
नींद नहीं आएगी. इस क्रूरता, इस मूर्खता की क्या वजह है? जापान से दस लाख मजदूर दस
लाख चीनी मजदूरों को मारने या अपंग करने के लिये आते हैं. जापानी मजदूरों को अपने
चीनी मजदूर भाइयों पर हमला क्यों करना चाहिये, जो स्वयं की सुरक्षा करने के लिये
मजबूर हैं. क्या चीनियों की मौत से जापानी मजदूरों का फायदा होगा? नहीं, उन्हें
कैसे फायदा हो सकता है? तब, भगवान के नाम पर, किसे फायदा होगा? इन जापानी मजदूरों
को इस खूनी अभियान पर भेजने के लिये कौन जिम्मेदार है? इससे किसे फायदा होगा? इन
जापानी मजदूरों को चीनी मजदूरों पर हमला करने के लिये राजी करना कैसे संभव हो सका –
जो उनके ही गरीब भाई, उनके ही जैसे मुसीबत के मारे साथी हैं.
क्या
यह संभव है कि कुछ अमीर आदमी, मुट्ठी भर लोगों का एक छोटा-सा वर्ग, दस लाख लोगों
को उन दूसरे दस लाख लोगों पर हमला करने, उन्हें नष्ट करने के लिये उकसाए जो उन्ही
की तरह गरीब हैं? ताकि ये अमीर लोग और अमीर बन सकें. एक दारुण विचार! वे इन गरीब
आदमियों को चीन आने के लिये कैसे फुसला सके? उन्हें सच्चाई बताकर? नहीं, अगर
उन्हें सच्चाई पता होता तो वे कभी भी यहाँ नहीं आते. क्या इन मजदूरों को बताया गया
कि अमीर सिर्फ सस्ता कच्चा माल, ज्यादा बाज़ार और ज्यादा मुनाफा चाहते हैं? नहीं,
उन्होंने बताया कि यह बर्बर युद्ध उनकी “जाति की नियति” है, यह “सम्राट की शान” के
लिए है, यह “राष्ट्र के सम्मान” के लिए है, यह उनके “राजा और देश” के लिए है.
झूठ,
सफ़ेद झूठ!
हमले
के अपराधी युद्ध थोपने वालों की नजर में यह युद्ध, किसी भी अन्य अपराध, जैसे- क़त्ल
की तरह है, जिन्हें इन अपराधों से फायदा होता है. क्या जापान के 80,000,000
मजदूरों, गरीब किसानों, बेरोजगार औध्योगिक मजदूरों को– इससे कोई फायदा होगा?
आक्रामक युद्धों के पूरे इतिहास में, स्पेन द्वारा मैक्सिको पर विजय, इंग्लैंड
द्वारा भारत पर कब्ज़ा, इटली द्वारा इथोपिया में जबरन लूटपाट, क्या कभी भी इन
“विजेता” देशों के मजदूरों को कोई भी फायदा हुआ है? नहीं, वे ऐसे युद्धों से कभी
भी लाभान्वित नहीं होते. यहाँ तक कि जापान के मजदूरों को अपने देश के प्राकृतिक
संसाधनों से भी क्या कोई लाभ मिलता है, सोने से, चांदी से, लोहे से, कोयले से, तेल
से? बहुत पहले ही इस प्राकृतिक सम्पदा पर उन्होंने अपना हक खो दिया था. यह अमीर,
शासक वर्गों के कब्ज़े में है. लाखों लोग जो उन खानों में काम करते हैं वे गरीबी
में जीवन बीताते हैं. तो फिर किस तरह वे हथियारों के दम पर चीन के सोना, चांदी,
लोहा, कोयला, और तेल की लूटपाट से फायदा उठा सकते है? क्या ये अमीर मालिक अपने
मुनाफे के लिये दूसरों की सम्पदा को हड़प नहीं लेते? क्या वे हमेशा से ऐसा ही नहीं
करते आ रहे हैं?
यह
अपरिहार्य लगता है कि जापान के सैन्यवादी और पूँजीवादी ही वह एकमात्र वर्ग है जिसे
इस बड़े पैमाने पर किये गये खूनखराबे, इस अधिकृत पागलपन, इस पवित्र कत्लेआम से
फायदा होगा. यह शासक वर्ग, जो वास्तविक राष्ट्र है, वही असली अपराधी है.
तो
क्या आक्रमण के युद्ध, उपनिवेशों पर विजय के लिये युद्ध, तब, वास्तव में सिर्फ बड़े
व्यापार हैं? हाँ, ऐसा ही प्रतीत होता है, यद्यपि इन राष्ट्रीय अपराधों को अंजाम
देने वाले अपने असली उद्देश्यों को उच्च कोटि के भाववाचक शब्दों और आदर्शों के
पीछे छुपाने का प्रयास करते हैं. वे क़त्ल के जरिये नये बाज़ारों पर, जबरन लूट के
द्वारा कच्चे माल पर कब्ज़ा करने के लिये युद्ध छेड़ते हैं. वे आदान-प्रदान के बजाय
चुराने का आसान रास्ता अपनाते हैं; खरीदने के बजाय क़त्ल करके हथियाने का आसान
रास्ता अपनाते हैं. यही युद्धों का रहस्य है. यह सभी युद्धों का रहस्य है. मुनाफा.
व्यापार. मुनाफा. क़त्ल के बदले में मुनाफा.
इस
सबके पीछे व्यापार और क़त्ल का डरावना, निर्दयी ईश्वर खड़ा है जिसका नाम मुनाफा है.
पैसा, एक अतृप्त मोलोच[*]
की तरह, अपने ब्याज, अपने सूद की माँग करता है और वह किसी भी कीमत पर नहीं रुकता,
यहाँ तक कि अपने लालच को संतुष्ट करने के लिये, लाखों लोगों का क़त्ल करने के बाद
भी नहीं रुकता. सेनाओं के पीछे सैन्यवादी खड़े हैं. सैन्यावादियों के पीछे वित्तीय पूँजी
और पूँजीपति खड़े हैं. कातिल ; अपराध के सहभागी.
मानवता
के ये शत्रु कैसे दिखते हैं? क्या इनके मस्तक पर कोई चिन्ह होता है कि उन्हें
पहचाना जा सके, उनसे दूर रहा जा सके और अपराधियों के तौर पर उन्हें दंड दिया जा
सके? नहीं. इसके विपरीत, ये सम्मानित लोग हैं. ये इज्जतदार लोग हैं. ये स्वयं को
सज्जन कहते हैं, और इन्हें सज्जन कहा जाता है. सज्जन शब्द के साथ यह कैसी विडंबना
है! ये देश, समाज और चर्च के आधारस्तंभ हैं. ये अपनी धनदौलत के आधिक्य से निजी और
सार्वजनिक परोपकारिता को मदद देते हैं, ये संस्थाओं को दान देते हैं. अपने निजी
जीवन में ये दयालु और विचारशील हैं, वे कानून का पालन करते हैं, उनका अपना कानून,
निजी संपत्ति का कानून. लेकिन एक ऐसा लक्षण है जिससे इन बंदूकधारी महानुभावों को
पहचाना जा सकता है. उनकी दौलत के मुनाफे में कमी का खतरा आने दें और तब इनके अंदर
का शैतान एक गुर्राहट के साथ जाग उठता है. ये जंगलियों की तरह निर्दयी, पागलों की
तरह कठोर, जल्लाद की तरह क्रूर हो जाते हैं. अगर मानव जाति को बचाये रखना है तो
ऐसे लोगों को खत्म हो जाना चाहिये. जब तक ये लोग जीवित हैं विश्व में कभी भी
स्थायी शांति नहीं हो सकती. मानव समाज की जो व्यवस्था ऐसे लोगों के अस्तित्व की
इज़ाज़त देती है, उसे मिटा दिया जाना चाहिये.
ये ही
वे लोग हैं, जो जख्म देते हैं.
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