-मार्ज
पियर्सी
अब कोई गरीब नहीं रहा
सुनो नेताओं का बयान.
हम देख रहे हैं उन्हें बिलाप करते
उस मध्यवर्ग के लिए
जो सिकुड़ रहा है.
गरीब इस तरह धकेले गए
गुमनामी के गर्त में
कि बयान करना मुमकिन नहीं.
बिलकुल वही बर्ताव
जो कभी कोढियों के साथ होता था,
जहाज में ठूंस कर भेजते थे काला पानी,
यादों
से परे सड़ने को धीरे-धीरे.
अगर
गरीबी रोग है तो इसके शिकार लोगों को
अलग
रखो सबसे काट कर.
सामाजिक
समस्या है तो उन्हें
कैद
करो ऊँची दीवारों के पीछे.
मुमकिन
है यह आनुवंशिक रोग हो-
अक्सर
शिकार हो जाते हैं वे आसानी से
रोक-थाम
होने लायक रोगों के.
खिलाओ
उन्हें कूड़ा-कचरा कि वे मर जाएं
और
तुमको खर्च न करना पड़े एक भी कौड़ी
उनके
दिल के दौरे या लकवा के इलाज पर.
मुहय्या
करो उन्हें सस्ती बंदूकें
कि
वे क़त्ल करें एक-दूजे को
तुम्हारी
निगाहों से एकदम ओझल.
झोपड़पट्टियाँ
ऐसी ही खतरनाक जगहें हैं.
ऐसे
स्कूल हो उनके लिए जो उन्हें सिखाए
कि
वे कितने बेवकूफ हैं.
लेकिन
हमेशा यह दिखावा करो
कि
उनका वजूद ही नहीं है,
क्योंकि
वे ज्यादा कुछ खरीदते नहीं,
ज्यादा
खर्च नहीं करते,
नहीं
देते तुमको घूस या चंदा.
उनकी
बोदी बचत नहीं है विज्ञापनों का निशाना.
वे
असली जनता नहीं है
बहुराष्ट्रीय
निगमों की तरह.
(मर्ज पियर्सी के अब तक अठारह कविता संग्रह प्रकाशित हुए
हैं. यह कविता मंथली रिव्यू से साभार ले कर अनूदित और प्रस्तुत किया गया है.
अनुवाद- दिगम्बर)
मर्मस्पर्शी कविता का शानदार अनुवाद !
ReplyDeleteहमें फर्जी नेताओं और उस मीडिया से सावधान रहना होगा जो मात्र उपभोक्ता वर्ग को ही जनता मानता है. पीढ़ियों से जानलेवा बदहाली में धकेले गए गरीबों का उनके लिए कोई वजूद ही नहीं है. उनके स्कूल गरीबों को ज्ञान नहीं देते - औकात बताते हैं.. तुम हो ही इसी डस्टबिन के लायक! बहुराष्ट्रीय निगमों व उसके सेवकों के लिए जनता या तो मध्यवर्ग है या वे खुद.