Monday, November 5, 2012

इरोम शर्मिला की कविता : अमन की खुशबू
















अमन की खुशबू

जब अपने अंतिम मुकाम पर पहुँच जाय
जिन्दगी  

तुम, मेहरबानी करके ले आना
मेरे बेजान शरीर को
फादर कोबरू की मिट्टी के करीब

आग की लपटों के बीच 
मेरी लाश का बादल जाना
अधजली लकड़ियों में
उसे टुकड़े-टुकड़े करना
फावड़े और कुल्हाड़े से 
नफ़रत से भर देता है
मेरे मन को 

बाहरी आवरण का सूख जाना लाजमी है
इसे जमीन के अंदर सड़ने दो
कुछ तो काम आये यह 
आने वाली नस्लों के 
इसे  बदल जाने दो
खदान की कच्ची धातु में 

मैं अमन की खुशबू
फैलाऊंगी अपने जन्मस्थल
कांगली से
जो आने वाले युगों में
फ़ैल जायेगी 
सारी दुनिया में

(देश-विदेश, अंक-10 में प्रकाशित. अंग्रेजी से अनुवाद पारिजात )

4 comments:

  1. एक सार्थक प्रस्तुति ... आभार आपका !


    भुने काजू की प्लेट, विस्की का गिलास, विधायक निवास, रामराज - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. इस कविता के लिए आपका बहुत शुक्रिया .मैं इसे अपने ब्लॉग में भी दे रहा हूँ और फेसबुक पर अपने ग्रुप 'हमारी आवाज' में भी .मैं एरोम को नमन करता हूँ .

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  3. एरोम शर्मीला का संघर्ष सराहनीय है , लेकिन दुःख की बात है technology के जमाने में भी उनकी आवाज को पूरा देश नहीं सुन पा रहा है | मैं अपने ही कॉलेज की बात करूँ , यहाँ जाने कितने ही लड़के-लड़कियां उनके बारे में जानते तक नहीं , दुखद है ये |
    आपने बहुत अच्छा अनुवाद किया है |

    सादर आभार |

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  4. isase pahle ki meri avaz khatam ho,
    do mujhe adhiyare ka ujala..!!

    kai varso ka lamba safar.... aur aag abhi jal rahi hain...!
    Great salute for Ms. IROM SHARMILA .

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