हाल ही में ‘हंगर एंड मालन्युट्रिशन’ नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसमें बताया गया है कि हर साल लगभग १६ लाख बच्चे जन्म के कुछ ही
समय बाद मर जाते हैं. दो साल से कम उम्र के पचास फीसदी बच्चे कुपोषित हैं.
छह राज्यों के बच्चों का सर्वे करके नन्दी फाउंडेशन द्वारा तैयार
की गयी इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में छह वर्ष से कम आयु के 42 प्रतिशत बच्चों का
वजन सामान्य से कम होता है और 50 प्रतिशत बच्चे गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं. समस्या की गंभीरता का
अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत के आठ राज्यों में जितने बच्चे कुपोषण के
शिकार हैं, उतने अफ्रीका और सहारा उपमहाद्वीप के ग़रीब से ग़रीब देशों में भी नहीं
हैं.
देश के संपन्न राज्यों में से एक, महाराष्ट्र में जनवरी 2012 में दस लाख 67 हजार 659 बच्चे कुपोषित थे
और मई 2012 तक इनमें से 24 हजार 365 बच्चों की मौत हो गयी थी.
रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के नंदूरबार जिले में पिछले साल 49 हजार, नासिक में एक लाख, मेलघाट में चालीस हजार, औरंगाबाद में 53 हजार, पुणे जैसे सम्पन्न शहर में 61 हजार और मराठवाड़ा में 24 हजार बच्चे कुपोषण के शिकार हुए.
मुंबई के अस्पतालों में हर रोज 100 से ज्यादा कुपोषण
के शिकार बच्चे भर्ती हो रहे हैं, जिनमें से 40 फीसदी की मौत हो जाती
है. सिर्फ मुंबई में ही साल भर में 48 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार हुए हैं.
समूचे महाराष्ट्र की स्थिति यह है कि जनवरी 2012 में दस लाख 67 हजार 659 बच्चे कुपोषण का शिकार
थे और मई 2012 तक इनमें से 24 हजार 365 बच्चों की मौत हो गयी थी.
भूख और कुपोषण संबंधी एक रिपोर्ट जारी करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले
साल कुपोषण की समस्या को देश के लिए शर्मनाक बताया था. घडियाली आँसू बहाए जाने के
एक साल बाद जारी इस रिपोर्ट के आँकड़े, दिनों दिन बदतर होते हालात की ओर इशारा करते
हैं.
इन दिल दहला देने वाली सच्चाइयों का हमारे देश के निर्मम शासकों
पर कोई असर नहीं होता. विकास के जिस अमानुषिक रास्ते पर वे देश को घसीट रहे हैं, उसमें
यहाँ की हालात सोमालिया से भी बदतर होना तय है. इसी भयावह सम्भावना की एक झलक इस रिपोर्ट
में दिखती है.
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