Thursday, July 26, 2012

मरुति हिंसा के साये में, होंडा मजदूरों पर पुलिस हमले की यादें


(होंडा स्कूटर्स एंड मोटरसायकिल्स के मजदूर मानेसर स्थित  फैक्टरी में एकत्र हो कर सत् साल पहले अपने ऊपर हुई लाठीचार्ज की याद में सभा करते हुए. फोटो- पीटीआई )
 

-अमन सेठी 
(‘द हिंदू’ में 26 जुलाई को प्रकाशित अमन सेठी की यह संक्षिप्त रपट मानेसर औद्योगिक क्षेत्र की ताजा घटनाओं को समझने के लिए एक अंतर्दृष्टि देती है. ‘द हिंदू’ के प्रति आभार सहित अनूदित और प्रकाशित.)
सात साल पहले विक्रम सिंह मानेसर (हरियाणा) स्थित होंडाफैक्टरी के लगभग 800 मजदूरों की भीड़ में शामिल था, जब पुलिस द्वारा उन्हें चारों ओर से घेर कर उनकी पिटाई की गयी थी. “हमारी मांगें थीं कि मैनेजमेंट हमारी यूनियन को मान्यता दे और जिन मजदूरों को आन्दोलन के दौरान निलंबित या निष्कासित किया गया है, उनको बहाल किया जाय. प्रशासन द्वारा हमें मिनी-सेक्रेटेरियट बुलाया गया था और उसी वक्त हमें चारों ओर से घेर कर पीटा गया था.
आज, उस हमले की सातवीं वर्षगांठ मनाने के लिए 8000 मजदूर होंडा फैक्टरी में इकठ्ठा हुए. इसके पास में ही मारुती सुजुकी फैक्टरी है. यह आयोजन हाल ही में उस फैक्टरी में हुई हिंसक घटनाओं की पृष्ठभूमि में हुआ, जिसमें एक जेनरल मैनेजर की मौत हो गयी थी और कई अन्य मैनेजर घायल हुए थे.
स्थानीय और राष्ट्रीय यूनियनों के नेताओं ने अपने भाषण में मारुती में हुई हिंसा पर चिंता व्यक्त की, लेकिन उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मजदूरों की जायज शिकायतें हैं जिनको अमूमन नजरंदाज किया जाता है. होंडा वर्कर यूनियन के अशोक यादव ने कहा कि “यह बात सभी को याद रखनी चाहिए कि हम अपने पेट की भूख की वजह से ही संघर्ष करते हैं.”
होंडा मजदूरों की यह सभा खास तौर पर इसलिए महत्वपूर्ण है कि आसपास के गावों की “महापंचायत” ने मारुती और होंडा जैसी कंपनियों का समर्थन करने का बीड़ा उठाया था और मजदूर यूनियनों से लड़ने की कसम खाई थी.
सोमवार को पंचायत के नेता जिनको मारुती और होंडा जैसी कंपनियों में ट्रांसपोर्ट और दूसरे सहायक कामों का ठेका मिला हुआ है, पिछले हफ्ते हुई हिंसक वारदात के चलते मानेसर से बड़ी मैनुफैक्चरिंग कंपनियों के भाग जाने को लेकर अपनी परेशानी का इजहार किया था और यह धमकी दी थी कि जरुरत पड़ने पर वे होंडा मजदूरों की सभा को जबरन रोकेंगे.
ऐसा लगता है कि आज की सुबह मजदूर यूनियन, पंचायत और स्थानीय पुलिस के बीच इस बात पर सुलह-समझौता हो गया कि यूनियन जुलूस नहीं निकालेगी, लेकिन फैक्टरी के भीतर मजदूरों की सभा करेगी.
सीटू के नेता सतबीर ने कहा कि “हम मजदूर अपनी जमीन से उजड़े हुए किसानों के बच्चे हैं और यह बहुत ही दुखद है कि निहित स्वार्थ के चलते कुछ लोग मजदूरों और किसानों में फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं.”
सभा के बाद बात करते हुए मजदूरों ने पिछले सात साल के दौरान अपने यूनियन की सफलता-असफलता का लेखाजोखा लिया. उन्होंने बताया कि मजदूरी को लेकर जो भी समझौता वार्ता और समाधान हुआ, वह तो संतोषजनक रहा, लेकिन पुलिस के हमले के बाद जिन 63 मजदूरों के ऊपर हत्या का प्रयास और दंगा-फसाद जैसे झूठे मुक़दमें लाद दिए गए थे, वे आज भी उन इल्जामात से जूझ रहे हैं.
विक्रम सिंह ने कहा कि “सात साल हो गए, लेकिन आज तक एक भी मैनेजर या पुलिस वाले पर हम लोगों के ऊपर हमला करने का मुकदमा दर्ज नहीं किया गया. उल्टे हम लोग ही हत्या के इल्जाम का सामना कर रहे हैं और हर महीने अदालत में हाजिर हो रहे हैं.”

1 comment:

  1. majdoor andolan poltical tatha krantikaari dhaar wale ho shram kanoon ko lekaar state our capitalist aur jyadaa akramak hone wale hai pooji aour jyadaa reactionory ho rahi hai
    mera krantikaari abhiwadan

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