Tuesday, October 9, 2012

वैश्विक श्रेष्ठता के लिए द इकोनोमिक टाइम्स पुरस्कार के निर्णायक मंडल को खुला पत्र


 – जी. अनन्तपद्मनाभम, एमनेस्टी इन्टरनेशनल (भारत)
(यूँ तो किसी अंग्रेजी अख़बार द्वारा उद्योगपतियों को दिया जानेवाला कोई ऐसा पुरस्कार जिसके निर्णायक मंडल में औद्योगिक घराने के लोग ही भरे पड़े हों, उसके चरित्र को लेकर न तो किसी भ्रम की गुंजाइश है और न ही वह हमारे सरोकार का विषय है. लेकिन एमनेस्टी के इस पत्र में वेदान्ता कम्पनी के क्रियाकलापों से सम्बंधित जो तथ्य और सूचनाएं दी गयी हैं, वह निश्चय ही गौरतलब है. संपादक.)
प्रिय श्री दीपक पारेख, श्री कुमार मंगलम बिरला, श्री के. वी. कामथ, श्री क्रिस गोपालकृष्णन, श्री ए.के. नायक, श्रीमती चन्दा कोचर और श्री सिरिल श्रोफ,
हम एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत के लोग वेदान्ता पी.एल.सी. के चेयरमैन श्री अनिल अग्रवाल को वर्ष 2012 का द इकोनिमिक टाइम्स बिजनेस लीडर पुरस्कार देने के आपके फैसले से काफी निराश हुए हैं.
बिजनेस लीडर पुरस्कार उस व्यक्ति को दिया जाता है जिसने “सफलता की एक रणनीतिक दिशा का प्रदर्शन किया हो और एक दृष्टि अपनाई हो.” लेकिन वेदान्ता ने, ओडिसा की नियामगिरी पहाडियों में बॉक्साईट के खदान शुरू करने और लांजीगढ़ के निकट एक अलम्युनियम शोधक संयंत्र का विस्तार करने के लिए लीडरशिप और दृष्टि, दोनों ही मामले में भारी कमी का प्रदर्शन किया. इसकी जगह इसने जिस चीज का परिचय दिया, वह है- भारतीय कानूनों की बेशर्मी के साथ अवहेलना और स्थानीय समुदायों के अधिकारों के प्रति सम्मान का पूरी तरह आभाव.
अगस्त 2010 में, पर्यावरण और वन मंत्रालय ने जब यह पाया कि नियामगिरी बॉक्साईट परियोजना ने पर्यावरण और वन कानूनों का बड़े पैमाने पर उलंघन किया है और इससे डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के अधिकारों का हनन होगा, तो इस परियोजना को रद्द कर दिया गया. मंत्रालय ने लांजीगढ़ संयंत्र के विस्तार की अनुमति पर भी रोक लगा दी, जब विशेषग्य समिति ने पाया कि यह गैरकानूनी है. द इकोनोमिक टाइम्स ने नियामगिरी बॉक्साईट खदान योजना का खुद ही लिखित रूप से विरोध किया है.
वेदान्त ने उसके बाद से एक मानवाधिकार और टिकाऊपन की नीतिगत रूपरेखा तैयार की, जिसके बारे में उसका दावा है कि वह अंतरराष्ट्रीय मानकों और सर्वश्रेष्ठ व्यवहार पर आधारित है. उक्त पुरस्कार के निर्णायकों ने कहा है कि श्री अग्रवाल की कंपनियों में कुशासन के बार में  जो धारणा प्रचलित है, वह यथार्थ नहीं है. लेकिन एमनेस्टी इन्टरनेशनल के ताजा शोध बताते हैं कि वेदान्ता के उलंघन अपने चरम पर हैं और लगातार जारी हैं. वेदान्ता की घोषित नीतिगत रुपरेखा और ओडिसा में इसकी व्यावहारिक कार्रवाइयों में भारी अंतर मौजूद है.
वेदान्ता द्वारा डोंगरिया कोंध के दृष्टिकोण की उपेक्षा लगातार जारी है. इसने स्थानीय समुदायों से राय-मशवरा करने का दावा किया है, जो एमनेस्टी इन्टरनेशनल द्वारा एकत्रित प्रमाणों से पुष्ट नहीं होता. इन प्रमाणों में डोंगरिया कोंध की गवाहियाँ और औपचारिक बैठकों का कार्यवृत भी शामिल है. कम्पनी के दावे, 2010 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा नियुक्त विशेषग्य समिति के दो अधिकारियों के निष्कर्षों से भी गलत ठहरते हैं.
वेदान्ता का यह दावा कि लांजीगढ़ संयंत्र के चलते बुरी तरह प्रभावित समुदायों की गवाही के आगे कहीं नहीं टिकते कि उसके द्वारा अपनाई गयी प्रक्रिया और योजना भारतीय कानूनों के अनुरूप है. इस संयंत्र से होने वाले प्रदुषण के कारण स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य और जल स्रोतों पर बुरा असर हुआ, बिना उचित मुआवजा दिये उनकी खेती की जमीन अधिग्रहित कर ली गयी तथा प्रदूषण और सामिलात जमीन पर कम पहुँच के चलते उनकी रोजी-रोटी का नुकसान हुआ.
लांजीगढ़ संयंत्र से निकलने वाले लाल कीचड़ के जलाशयों से उत्पन्न खतरों को पर्याप्त रूप से हल करने और वास्तविक प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में सही जानकारी देने में वेदान्ता की असफलता का एमनेस्टी इन्टरनेशनल ने भंडाफोड किया. लेकिन इसके बावजूद कम्पनी ने सुधार की दिशा में उचित कदम नहीं उठाये.
राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग द्वारा की जा रही एक जाँचपड़ताल में पाया गया कि जो लोग वेदान्ता के विरोधी हैं, उन्हें फर्जी मुकदमों में फँसाने और उनके विरोध को कुचलने में स्थानीय पुलिस भी लिप्त है. आयोग की जाँच बताती है कि वेदान्ता के परोक्ष इशारे पर पुलिस ने इस परियोजना से प्रभावित गाँवों के निवासियों के ऊपर कई मौकों पर झूंठे और अतिरंजित मामलों में मुकदमा दर्ज किया.
ये सभी तथ्य मानवाधिकारों की समस्या को हल करने सम्बंधी वेदान्त की कथित वचनवद्धता पर सवाल खड़ा करते हैं. श्री अग्रवाल ने इकोनोमिक टाइम्स से कहा है कि- “हमें अपने विकास के लिए अपने संसाधनों का उपयोग टिकाऊ ढंग से करना है.” लेकिन वेदान्ता ने लगातार यह दिखाया है कि वह ऐसा करने को इच्छुक नहीं है.
वेदान्ता के कई समर्थकों को जब इसके द्वारा किये गये पर्यावरण और मानवाधिकार हनन के बारे में सचेत किया गया तो उन्होंने अपनी राय पर पुनर्विचार किया.
2007 से ही, वेदान्ता के कई संस्थागत निवेशकों ने, जिनमें नार्वेजियन पेन्सन फंड और द चर्च ऑफ इंग्लैण्ड पेन्सन बोर्ड भी शामिल हैं, ओडिसा में कम्पनी की कार्रवाइयों के बुरे प्रभावों के बारे में चिंता जाहिर करते हुए इस कम्पनी का अपना हिस्सा बेच दिया.
इस साल के शुरू में ब्रिटेन की रोयल सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ एक्सीडेंट और ब्रिटिश सेफ्टी काउन्सिल को जब लांजीगढ़ संयंत्र में सुरक्षा मानकों की अवहेलना के में बारे सुचना मिली, तो उन संस्थाओं ने वेदान्ता को पुरस्कार देना टाल दिया. चार महीना पहले ही, ओस्लो स्थित बिजनेस फॉर पीस फाउन्डेशन ने  ‘व्यापार में नैतिकता’ के लिए श्री अग्रवाल को जो पुरस्कार देना तय किया था, उसे रद्द कर दिया जब वेदांता के कदाचारों और मानवाधिकार हनन के बारे में उसे सूचित किया गया.
हम अपील करते हैं कि आप श्री अग्रवाल को वर्ष का इ.टी. बिजनेस लीडर पुरस्कार देने के फैसले पर पुनर्विचार करें. वेदान्ता को इस पुरस्कार से सुशोभित करना मानवाधिकार हनन के एक इतिहास को पुरस्कृत करना है, अपने अधिकारों पर हमले के खिलाफ स्थानीय समुदायों के न्याय अभियान की अनदेखी करना है और इ.टी. कारपोरेट श्रेष्ठता पुरस्कार के उद्देश्य के साथ गद्दारी है.     
भवदीय,
जी. अनन्तपद्मनाभन
मुख्य कार्यकारी, एमनेस्टी इंटरनेशनल (भारत)
(काफिला.ऑर्ग के अंग्रेजी पोस्ट का आभार सहित अनुवाद)

मूल अंग्रेजी पाठ के लिए यहाँ क्लिक करें

1 comment:

  1. बेशर्मी का आलम है। देश और इंसानियत की बातें करने वाले ताकतवर लोग सब कुछ बेचने में लगे हैं। और इनामात तय करने वाली कमेटियों के बुद्धिजीवी बिकाऊ जोकर हैं।

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