Tuesday, June 19, 2012

संसाधनों का ह्रास और पर्यावरण का विनाश -एक विनम्र प्रस्ताव

            -फ्रेड मैगडॉफ

(इस टिप्पणी में फ्रेड ने बड़े ही सरल और रोचक ढंग से यह बताया है कि दुनिया के मुट्ठीभर सबसे धनी लोग ही संसाधनों का सबसे ज्यादा उपभोग करते हैं और वे ही पर्यावरण और धरती के विनाश के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि उलटे वे लोग गरीबों की जनसंख्या को इसके लिए दोषी ठहराते हुए एनजीओ के जरिये परिवार नियोजन कार्यक्रम चलवाते हैं. फ्रेड का सुझाव है कि गरीब जनता बहुत कम संसाधन खर्च करती है, इसलिए गरीबों की नहीं, बल्कि धनाढ्यों की जनसंख्या और दौलत पर रोक लगा कर ही धरती को बचाया जा सकता है. फ्रेड मैगडॉफ पारिस्थितिकी और अर्थशास्त्र के जानेमाने प्रोफ़ेसर और प्रतिष्ठित लेखक हैं.)  

दैत्याकार क्रेन 



धनी देशों में ढेर सारे लोग यह मानते हैं कि इस धरती पर जितने संसाधन उपलब्ध हैं उनमें लगातार  कमी होना और दुनिया भर में बढते पर्यावरण प्रदूषण कि मुख्य वजह आज भी दुनिया के निवासियों की विराट संख्या है जो सात अरब से भी ज्यादा है. यह स्थिति और भी खराब होगी क्योंकि विश्व-जनसंख्या इस सदी के मध्य तक 9 अरब और सदी के अंत तक 10 अरब हो जाने की संभावना है.

इसका समाधान यह सुझाया जा रहा है (वैसे कुछ लोगों का कहना है कि वास्तव मे कोई समाधान है नहीं- हम सब के भाग्य में उथल-पुथल और बर्बरता लिखी है) कि विश्व जनसंख्या को तेज़ी से घटाया जाय, खासकर ऐसे कार्यक्रमों के जरिये जो जन्म में कमी को प्रेरित करें. इसी का नतीजा हैं गरीब देशों में गर्भ निरोधकों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के लिए धनी देशों के एनजीओ द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रम जो महिलाओं के लिए गर्भ-निरोधक और परिवार नियोजन के उपाय मुहैय्या करते हैं.

इस मुद्दे पर वे लोग जो रुख अपना रहे हैं हम उसकी पडताल कभी बाद में करेंगे. यहाँ हम उनके इस दावे को पूरी तरह सही मानकर चलेंगे कि दुनिया की विशाल  जनसंख्या ही संसाधनों के इस्तेमाल और वैश्विक पर्यावरण की क्षति को बुरी तरह प्रभावित कर रही है.

विश्व बैंक के कर्मचारियों ने विश्व विकास सूचक- 2008  में यह आकलन प्रस्तुत किया है की दुनिया की 10 फीसदी सबसे धनी आबादी लगभग 60 फीसदी संसाधनों का इस्तेमाल करती है और 40 फीसदी सबसे गरीब आबादी इन संसाधनों का 5 फीसदी से भी कम इस्तेमाल करती है. संसाधनों के इस्तेमाल और जनससंख्या के बीच इस घनिष्ट सम्बंध को देखते हुए सबसे धनी 10 फीसदी लोग ही 60 फीसदी वैश्विक प्रदुषण, यानी ग्लोबल वार्मिंग, जल प्रदुषण, इत्यादि के लिए जिम्मेदार हैं.


अब विचारधारा को थोड़ी देर के लिए दरकिनार कर दें. अगर आप वैश्विक संसाधनों के इस्तेमाल और पर्यावरण विनाश के मामले को लेकर उतने ही चिंतित हैं जितना मैं और कई अन्य लोग, तो ये आँकड़े ऐसे नतीजे की ओर ले जाते हैं जिनसे कोई आँख नही चुरा सकता. गरीब परिवारों की जनसंख्या घटाने का प्रयास इस मामले को हल करने में बिलकुल मदद नहीं करेगा, क्योंकि संसाधनों और पर्यावरण से जुड़ी जिन समस्याओं का हम सामना कर रहे हैं उसके असली गुनाहगार दुनिया के लखपति-करोड़पति हैं.

इस सच्चाई के मद्देनज़र हमारा यह विनम्र सुझाव है कि दुनिया के सबसे धनी 10 फीसदी लोग अपनी जरूरतों में कटौती करें. हमारे ग्रह की पारिस्थितिकी और विश्व जनगण के लिए यह कदम बेहद जरूरी है. इसलिए मेरा प्रस्ताव है की निम्नलिखित कार्यक्रमों को फौरन लागू किया जाय-

(क)     लखपतियों-करोड़पतियों के लिए “कोई बच्चा नहीं “ या “केवल एक बच्चा” की नीति;


(ख)    पैतृक संपत्ति पर 100 फीसदी टैक्स तत्काल लागु करना, (यानी संपत्ति का उत्तराधिकार खत्म);

(ग)     और न्यूनतम आय-सीमा (न्यूनतम मजदूरी की तरह ) लागू करके लखपतियों-करोड़पतियों की आय को घटाना.

इन निर्देशों का पालन करते हुए हम जल्द ही दुनियाभर में संसाधनों के इस्तेमाल और प्रदुषण को घाटा कर आधा कर सकते हैं. तब लखपति-करोड़पति या तो दुनिया से गायब हो जायेंगे (मर-खप जायेंगे ) या ऐसी जिन्दगी जियेंगे जिसमें उनका उपभोग भी आम जनता की तरह ही सामान्य हो जाएगा.

तब, जब हम अपनी धरती पर भारी दबाब को घटा चुके होंगे, हम उन मुद्दों को हाथ मे लेंगे, जिनको हल करते हुए हम अपने इस ग्रह को रहने लायक और अपने समाज को न्यायपूर्ण बनायेंगे.

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