Friday, June 1, 2012

रसूल हमजातोव की कविता- सफ़ेद सारस


(रसूल हमजातोव द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए सैनिकों की समाधि का दर्शन करने हिरोशिमा (जापान) गए थे, जहाँ जापानी रिवाज के मुताबिक़ कागज़ के बने सफ़ेद सारस के झुण्ड को उस स्मारक के ऊपर उड़ते हुए दिखाया गया था. इस कविता में रसूल हमजातोव ने उसी बिम्ब का प्रयोग किया है. द्वितीय महायुद्ध में सोवियत संघ के दो करोड़ से भी अधिक नागरिक शहीद हुए थे, जिनकी याद में समर्पित है रसूल  की यह कविता.

मूलतः अवार भाषा में लिखित झुरावली शीर्षक कविता का अंग्रेजी अनुवाद बोरिस अनिसीमोव ने व्हाइट क्रेन शीर्षक  से किया है, जिसका हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है.)

सफेद सारस

कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है
जैसे युद्ध क्षेत्र में मारे गए नौजवान सिपाही
जो लौट कर कभी घर नहीं आये
वे दफ्न नहीं हुए हैं धरती के नीचे,

जैसा  बताया गया हमें.
बर्फ जैसे सफ़ेद पंखों वाले सारस बन
उड़ चले वे असीम आकाश में  उन्मुक्त.

युद्ध के दिनों से आज तलक
दिखते हैं वे उड़ते, कलरव करते ऊँचे आकाश में
मुझे गमगीन कर देती है

दूर से आती उनकी आवाज 
और भीगी आँखों से निहारता हूँ
अपने बहादुर साथियों अपने पुरखों को.


आकाश में उड़ते सारसों का एक झुण्ड
ओझल होता जा रहा है आँखों से दूर बहुत दूर
इतनी दूर कि मेरी आँखें देख नहीं पाती उन्हें.


जब गुजर जाएँ मेरी जिंदगी के दिन

और खत्म हो जाये मेरा वजूद जिस दिन
मुझे उम्मीद है कि ये सारस अपनी पाँतों में
मेरे लिए भी बना लेंगे थोड़ी-सी जगह. 


तब मैं अपने दुःख और तकलीफ से 

ऊपर उठ, शामिल हो जाऊँगा उसी तरह
उनकी कतार में जैसे बरसों पहले.


मुक्ताकाश में उड़ान भरते 
अपनी नयी भाषा में  याद करूँगा नाम
उन बहादुरों के और उन लोगों के भी  जिन्हें
छोड़ जाऊँगा मैं इस धरती पर.



 (अनुवाद- दिगम्बर)

4 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता है. आभार इसे पढ़वाने के लिए...

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  2. बेहतर...

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  3. अदभुत कविता हैं मुझे रसूल और सारस दोनों पसंद है ।उनकी किताब मेरा दागिस्तानमेरे प्रिय
    किताबों में से है । मुझे इस किताब से ऊर्जा मिलती है। सारसों को मैंने धान के खेतो के पास देखा है।वे अकेले नही जोडो‌‌‌‌‌ के साथ रहते है। यह बात मुझें बहुत प्यारी लगती है। क्या हिंदी मे उनकी कविताओं की अनूदित किताब है बतायें ।
    स्वप्निल श्रीवास्तव

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