क़यामत
का जिक्र करना,
उकसाना
धोखेबाज़ी और बदनीयती को,
किस्से
बुनना ताकि टाला जा सके
बदकिस्मती
को-
इनसे
बात नहीं बनने वाली.
तेज
होती जा रही है ओले बरसाती
हवा.
उठ रही हैं ऊँची लहरें और फिर
लौट
रही हैं पीछे, बेपर्द करती तलहटी
जिसे
कभी देखा नहीं तुमने.
हवा
में राख है प्यारे,
हमारे
खाने में राख जैसा कोई जायका
सोते
वक्त हमारे होठों पर राख
राख
से अंधी हुई आँखें.
हमारी
रीढ़ गिरवी है जिसे
छुड़ा
नहीं सकते हम. किसी ने
हमारे
दाँत खरीद लिए और चाहता है
उखाडना
उन्हें दाँव पर लगाने के लिए.
असली
शैतान छुपे हैं चारपाई के नीचे,
खून
के प्यासे. जिस जमीन पर
बना
है यह मकान उसके मालिक
शुरू
करेंगे यहाँ कोयला खदान.
सांता
क्लॉज नहीं आता. आते हैं
किराये
के गुंडे. तुम्हारी बुनियाद
गिरवी
है और बैंक बेचैन है
पाबन्दी
लगाने को तुम्हारे आनेवाले कल पर.
अगर
चाहते हो बचे रहना तो जागो
अगर
चाहते हो लड़ना तो आगे बढ़ो
कुछ
भी हासिल नहीं होता मुन्तजिर को
केवल
भूख के पंजे खरोंचते हैं
खाली
पेट के भीतर.
अगर
जानते हो अपने लहू की कीमत
तो
लड़ो कि वह बहता रहे रगों में.
तुम्हारे
पास कुछ भी नहीं है खोने को
अपनी
जिन्दगी के सिवा.
और
वह तो दशकों पहले बेंच दी थी
तुम्हारे
पुरखों ने उनके हाथों.
बेइंतिहाँ
है उनकी हवस
तुम्हारे
सब्र की कोई इन्तिहाँ है?
बहुत अच्छी कविता. आपका आभार इसे पढ़वाने के लिए!!
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