वे बारबार दरियादिली से सम्मानित किये गए
साथी लेनिन. प्रतिमाएँ आवक्ष और आदमकद
उनके नाम पर रखे गए शहरों
के नाम, बच्चों के भी.
अनगिनत भाषाओँ में दिए गए
भाषण
जुलूस निकले प्रदर्शन हुए
शंघाई से शिकागो तक, लेनिन
के सम्मान में.
मगर इस तरह आदर दिया उन्हें
दक्षिणी तुर्किस्तान के एक
छोटे से गाँव
कूयान-बुलाक के कालीन बुनकरों
ने-
एक शाम बीस कालीन बुनकर
इकठ्ठा हुए
अपने हथकरघे के पास बुखार
से कंपकंपाते.
उत्पात मचाता बुखार- रेलवे
स्टेशन पर
भिनभिनाटे मच्छरों की भरमार-
एक घना बादल
उठता ऊंटों वाले पुराने कब्रिस्तान
के पीछे की दलदल से.
मगर रेलगाड़ी जो हफ्ते में
दो मर्तबा
लाती है पानी और धुआँ, लाती
है
यह खबर भी एक दिन
कि लेनिन को सम्मानित करने
का दिन आ रहा है जल्दी
और इस तरह तय किया
कुयान-बुलाक के लोगों ने
कालीन बुनकर, गरीब लोगों ने
कि उनके गाँव में भी साथी
लेनिन की याद में
लगेगी सिलखड़ी से बनी लेनिन
की आवक्ष प्रतिमा.
लेकिन पैसा जुटाना जरूरी था
मूर्ति-स्थापना के लिए
तो वे सभी आकर खड़े हुए
बुखार में सिहरते और चंदे
में दे दिये
गाढ़ी कमाई के कोपेक काँपते
हाथों से.
लाल सेना का सिपाही स्तेपा
जमाल, जो
बड़ी सावधानी से गिन रहा था
और देख रहा था गौर से
मुस्तैदी लेनिन को सम्मानित
करने की, खुशी से झूम उठा वह.
लेकिन उसने देखा उन काँपते
हुए हांथों को भी.
और अचानक उसने एक सुझाव
दिया
कि मूर्ति के लिए जमा पैसे
से ख़रीदा जाय मिट्टी का तेल
डाला जाय ऊंटों के कब्रिस्तान
के पीछे वाली दलदल पर
जहाँ से आते हैं मच्छर, जो
फैलाते हैं बीमारी
और इस तरह कुयान-बुलाक में
बीमारी का मुकाबला करने
और वास्तव में सम्मानित
करने के लिए,
दिवंगत, लेकिन अविस्मरणीय,
साथी लेनिन को.
सबने इसे मान लिया.
लेनिन को सम्मानित करने के
दिन
लाए वे अपनी पुरानी-पिचकी
बाल्टियाँ, मिट्टी तेल से भरा
और एक के पीछे एक चल पड़े
उसे दलदल पर छिड़कने.
इस तरह फायदा हुआ उन्हें,
लेनिन को श्रद्धांजली देने से और
इस तरीके से उन्हें
श्रधांजलि दी जो लाभदायक रहा उनके लिए और
इसलिए अच्छी तरह जाना भी
उन्हें.
2
हमने सुना है यह वाकया कि
कैसे कुयान-बुलाक के गाँववालों ने
सम्मानित किया लेनिन को.
उस शाम जैसे ही
मिट्टी तेल ख़रीदा गया और
छिड़का गया दलदल पर
एक आदमी खड़ा हुआ सभा में,
और उसने माँग की
कि रेलवे स्टेशन पर एक स्मारक
पत्थर लगाया जाय जिसमें
ब्योरा हो इस घटना का, कि
कैसे पलटी योजना और बदल गयी
लेनिन की आवक्ष मूर्ति
बीमारी मिटानेवाले मिट्टी तेल के पीपों में.
और उन लोगों ने यह भी किया
और खड़ा किया स्मारक पत्थर.
अनुवाद- दिगम्बर
(कुयान-बुलाक उज्बेकिस्तान के फरगाना में एक रेलवे स्टेशन
है. वहाँ एक स्मारक पत्थर है, जिस पर लिखा है- “इस जगह पर लेनिन का एक स्मारक होना
चाहिए था, लेकिन उस स्मारक के बदले मिट्टी तेल ख़रीदा गया और दलदल पर उसका छिड़काव
किया गया. इस तरह कुयान-बुलाक ने, लेनिन की याद में और उनके ही नाम पर, मलेरिया का
काम तमाम कर दिया.”)
इस जगह पर लेनिन का एक स्मारक होना चाहिए था, लेकिन उस स्मारक के बदले मिट्टी तेल ख़रीदा गया और दलदल पर उसका छिड़काव किया गया.
ReplyDeleteबहुत शानदार स्मारक