Monday, August 13, 2012

एदुआर्दो गालेआनो की पुस्तक लातिन अमरीका के रिसते जख्म (एक महाद्वीप के लूट की पाँच सदियाँ) की प्रस्तावना


-इसाबेल अलेंदे

वर्षों पहले, जब मैं युवा थी और विश्वास करती थी कि दुनिया को बेहतरीन आकांक्षाओं और आशाओं के अनुरूप ढाला जा सकता है, उसी दौरान किसी ने मुझे पीले कवर की एक किताब पढ़ने के लिये दी थी- लातिन अमरीका के रिसते जख्म, लेखक- एदुआर्दो गालेआनो. मैंने भावनाओं के उमंग में डूब कर उसे दो ही दिन में खत्म कर दिया, लेकिन उसे पूरी तरह समझने के लिये मुझे उसे दो बार फिर पढ़ना पड़ा. 
  
1970 के दशक की शुरुआत में चिली उस प्रचंड तूफान से घिरे समुद्र में फँसा एक छोटा सा द्वीप था, इतिहास ने नक्शे पर एक बीमार दिल जैसा दिखनेवाले लातिन अमरीकी महाद्वीप को जिसमें धकेल दिया था. हम साल्वाडोर अलेंदे की समाजवादी सरकार के दौर से गुजर रहे थे, लोकतांत्रिक चुनावों के जरिये राष्ट्रपति बनने वाला पहला मार्क्सवादी, एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास समता और स्वाधीनता का सपना था और उस सपने को हकीकत में बादलने का जोश था. तभी पीले कवर की उस किताब ने, यह साबित किया था कि हमारे क्षेत्र में कोई भी सुरक्षित द्वीप नहीं, हम सभी शोषण और उपनिवेशीकरण के 500 वर्षों के साझीदार थे, हम सभी एक ही समान नियति से बंधे हुए थे, हम सभी उत्पीड़ितों की एक ही प्रजाति से सम्बंध रखते थे. अगर मैं इस किताब के वास्तविक अर्थ को समझने में सक्षम होती, तो मैं यह निष्कर्ष निकाल सकती थी कि साल्वाडोर अलेंदे की सरकार शुरुआत से ही अभिशप्त थी. यह शीत युद्ध का काल था और अमेरिका, हेनरी किसिंजेर के शब्दों में “अपने घर के  पिछवाड़े” एक वामपंथी प्रयोग को सफल नहीं होने दे सकता था. क्यूबा की क्रांति ही काफी थी; कोई अन्य समाजवादी प्रयोग सहन नहीं किया जा सकता था, चाहे वह लोकतांत्रिक चुनाव का ही नतीजा क्यों न हो.

 11 सितंबर, 1973 को एक सैन्य तख्तापलट ने चिली में लोकतांत्रिक परंपरा की एक सदी का अंत कर दिया और जनरल औगुस्तो पिनोचे के लंबे शासन काल की शुरुआत की. इसी तरह के तख्तापलट दूसरे देशों में भी हुए और शीघ्र ही इस महाद्वीप की आधी से अधिक जनता आतंक के साये में जी रही थी. यह वाशिंगटन में तैयार की गयी तथा दक्षिणपंथियों की आर्थिक और राजनैतिक शक्ति के बल पर लातिन अमरीकी जनता के ऊपर थोपी गयी रणनीति थी. हर अवसर पर सेना ने विशेषाधिकार संपन्न सत्ताधारी गुटों के लिए भाड़े के सैनिकों की तरह काम किया. बड़े पैमाने पर दमन को संगठित किया गया; यातना, नजरबंदी कैंप, सेंसरशिप, बिना मुक़दमे के कारावास और बिना मुकदमे के मौत की सजा रोजमर्रे की घटनाएँ थीं. हजारों लोग “गायब हो गये”, जान बचाने के लिये भारी तादाद में निर्वासित लोगों और शरणार्थियों ने अपना देश छोड़ दिया. इस महाद्वीप ने जिन पुराने जख्मों को बर्दाश्त किये थे और जो अभी भरे भी नहीं थे, उनमें नए-नए जख्म और शामिल होते गये. इसी राजनैतिक पृष्ठभूमि में, दक्षिण अमेरिका के रिसते जख्म प्रकाशित हुई. इस किताब ने रातोरात एदुआर्दो गालेआनो को मशहूर कर दिया, हालाँकि वह पहले ही उरूग्वे के एक जाने-माने राजनैतिक पत्रकार थे. 
      
अपने सभी देशवासियों की तरह एदुआर्दो भी एक फुटबाल खिलाड़ी बनना चाहते थे. वह एक संत भी बनना चाहते थे, लेकिन जैसा कि बाद में हुआ, उन्होंने ढेर सारे पाप किये, उन्होंने एक बार इसे कबूल भी किया. “मैंने कभी किसी का क़त्ल नहीं किया, यह सच है, लेकिन महज इसलिये क्योंकि मेरे पास साहस और समय की कमी थी, इसलिये नहीं कि मुझमें इच्छा की कमी थी.” वह एक राजनैतिक पत्रिका मार्चा के लिये काम करते थे, अठाईस साल की उम्र में वे उरुग्वे के एक महत्वपूर्ण अखबार एपोचा के प्रबंधक बन गये. उन्होंने दक्षिणी अमेरिका के रिसते जख्म को, 1970 की आखिरी नब्बे रातों, यानी तीन महीने में लिखा, जबकि दिन के समय वे विश्वविद्यालय में किताबों, पत्रिकाओं और सूचनापत्रों का संपादन किया करते थे.

यह उरुग्वे का बहुत बुरा दौर था. हवाईजहाज और पानी के जहाज नौजवान लोगों से भर कर रवाना होते थे, जो अपने देश की गरीबी और घटिया जीवन-स्तर से बचकर भाग रहे होते थे, जिसने उन्हें बीस साल की उम्र में ही बूढा बना दिया था, और जहाँ मांस और ऊन से ज्यादा हिंसा की फसल उगती थी. एक सदी तक चलने वाले एक ग्रहण के बाद सेना ने तुपामारो गुरिल्लाओं से लड़ने के बहाने इस परिदृश्य पर हमला बोल दिया. उन्होंने आज़ादी की बलि चढ़ा दी और शासन के रहे सहे अधिकारों को भी छीन लिया, जो पहले ही नाम मात्र का नागरिक समाज रह गया था.

1973 के मध्य में सैन्य तख्तापलट हुआ, उन्हें जेल में डाल दिया गया, और उसके कुछ समय बाद ही वह अर्जेंटीना प्रवास पर चले गये, जहाँ उन्होंने क्राइसिस पत्रिका शुरू की. लेकिन 1976 में अर्जेंटीना में भी सैनिक तख्तापलट हो गया तथा बुद्धिजीवियों, वामपंथियों, पत्रकारों और कलाकारों के खिलाफ “कुत्सित लड़ाई” शुरू हो गयी. गालेआनो एक बार फिर प्रवास पर चले गये, इस बार वे अपनी पत्नी हेलेना विल्लाग्र के साथ स्पेन चले गये. स्पेन में उन्होंने संस्मरण पर एक खूबसूरत किताब, डेज एंड नाईटस् ऑफ लव एंड वार लिखी, और उसके कुछ समय पश्चात उन्होंने अमरीका की आत्मा के साथ एक वार्तालाप-सा शुरू किया; मेमोरिज ऑफ फायर, दक्षिणी अमेरिका के पूर्व-कोलम्बियाई युग से आधुनिक समय तक के इतिहास का एक विराट भितिचित्र. “मैंने ऐसी कल्पना की कि अमेरिका एक औरत है और वह मेरे कानों में अपने गुप्त किस्से कह रही है, प्यार और हिंसा के वे कृत्य जिन्होंने उसका निर्माण किया.” उन्होंने हाथ से लिखते हुए, आठ साल तक इन खंडों पर काम किया. “मैं समय बचाने में विशेष रूचि नहीं रखता, मैं उसका आनंद लेना पसंद करता हूँ.” अंततः १९८५ में, जब एक जनमत संग्रह ने उरुग्वे में सैनिक तानाशाही को पराजित कर दिया, तब गालेआनो अपने देश वापस लौट सके. उनका प्रवास ग्यारह साल तक चला, लेकिन उन्होंने खामोश रहना या अदृश्य रहना नहीं सीखा था; जैसे ही उन्होंने मोंटेवीडियो में कदम रखा, वे  उस कमज़ोर लोकतंत्र को जो सैनिक सरकार की जगह कायम हुआ था, उसे मजबूत बनाने में जुट गये. उन्होंने अधिकारी वर्ग का विरोध करना लगातार जारी रखा और तानाशाही के अपराधों की भर्तस्ना करने के लिये अपने जीवन को भी खतरे में डाला.

एदुआर्दो गालेआनो के कई कथा-साहित्य और कविताओं के संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं; वह अनगिनत लेखों, साक्षात्कारों और व्याख्यानों के लेखक हैं; उन्होंने अपनी साहित्यिक प्रतिभा और राजनैतिक सक्रियता के लिये बहुत से पुरुस्कार, मानद उपाधियाँ और सम्मान हासिल किये हैं. वे लातिन अमरीका के, जो अपने महान साहित्यिक नामों के लिये जाना जाता है, सबसे दिलचस्प लेखकों में से एक हैं. उनका लेखन सतर्क विवरण, राजनैतिक मत, काव्यात्मक शैली और बेहतरीन किस्सागोई के लिये जाना जाता है. वह गरीबों और उत्पीडितों की, और साथ ही नेताओं और बुद्धिजीवियों की आवाज सुनने के लिये लातिन अमेरिका के एक छोर से दूसरे छोर तक घूमे. वह अमेरिका के मूलनिवासियों, किसानों, गुरिल्लाओं, सैनिकों, कलाकारों और अपराधियों के साथ रहे; उन्होंने राष्ट्रपतियों, अत्याचारियों, शहीदों, नायकों, डाकुओं, निराश माताओं और बीमार वेश्याओं से बातचीत की. उन्होंने तेज ज्वर सहे, वे जंगलों में पैदल चले और एक बार जबरदस्त दिल के दौरे से बाल-बाल बचे; उन्हें दमनकारी शासन और कट्टर आतंकवादियों ने प्रताड़ित किया. मानव अधिकारों की रक्षा के लिये उन्होने अकल्पनीय जोखिम उठाते हुए सैन्य तानाशाही और हर प्रकार की क्रूरता और शोषण का विरोध किया. लातिन अमेरिका के बारे में उनका प्रत्यक्ष ज्ञान मेरी जानकारी में किसी भी अन्य व्यक्ति से कहीं ज्यादा है और वे इसका इस्तेमाल पूरी दुनिया को अपनी जनता के सपनों और भ्रमों, आशाओं और असफलताओं को बताने के लिये करते हैं. वे लेखन प्रतिभा, दयालु ह्रदय, और सुलभ मनोविनोद से भरपूर एक जांबाज़ हैं. “हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो जिन्दा लोगों के बजाय मृत लोगों से अच्छा व्यवहार करती है. हम जो जिन्दा हैं, वे सवाल करते हैं और जवाब देते हैं, और हमारे अंदर और भी बहुत से अक्षम्य दोष हैं, उस व्यवस्था की निगाह में जो मानती है कि पैसे की तरह ही मौत भी जनता की जिन्दगी को बेहतर बनाती है.”

किस्सागोई में उनकी निपुणता और साथ ही दूसरी सभी प्रतिभाएं, उनकी पहली किताब दक्षिणी अमेरिका के रिसते जख्म में स्पष्ट दिखाई देती हैं. मैं एदुआर्दो गालेआनो को व्यक्तिगत तौर पर जानती हूँ; वह बिना किसी सचेत प्रयास के, अनिश्चित काल तक कहानियों की कभी न खत्म होने वाली कड़ियाँ पिरो सकते हैं. एक बार हम क्यूबा के समुद्रतट के पास एक होटल में थे, जहाँ यातायात का कोई साधन नहीं था और कमरा भी वातानुकूलित नहीं था. कई दिनों तक पीना कोलाडा (रम, नारियल की मलाई और अन्नानास के जूस को मिलाकर बनाया गया एक पेय पदार्थ - अनुवादक) की चुस्की लेते हुए वे अपनी अद्भुत कहानियों से मेरा मनोरंजन करते रहे. किस्सागोई की यह अलौकिक प्रतिभा दक्षिणी अमेरिका के रिसते जख्म को पठनीय बनाती है– जैसा कि एक बार उन्होने कहा था– समुद्री डाकुओं के बारे में एक उपन्यास, उन लोगों के लिये भी रुचिकर है जो आर्थिक-राजनैतिक मामलों में विशेष जानकारी नहीं रखते हैं. किताब किसी अफसाने की तरह एक लय में आगे बढती है; इसे बिना पूरा खत्म किये रखना संभव नहीं है. उनके तर्क, उनका क्रोध, और उनका जोश अभिभूत कर देने वाला नहीं हो पाता, अगर यह सब इतनी शानदार शैली में, इतने कुशल समयानुपात और कौतुहल के साथ व्यक्त न किया गया होता. गालेआनो शोषण की अनम्य प्रचंडता के साथ भर्त्सना करते हैं, फिर भी यह किताब एक सबसे निकृष्टतम लूट के दौर में लोगों की एकजुटता और जिजीविषा को काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत करती है. गालेआनो की किस्सागोई में एक रहस्यमयी क्षमता है. पाठक को पढ़ने के लिये उकसाने और उसे अंत तक लगातार पढते रहने पर राजी करने के लिये वे अपने इस कौशल का जाम कर इस्तेमाल करते हैं, और पाठक के दिमाग के निजी कोने में घुसपैठ करके उसे अपनी रचना के आकर्षण और अपने आदर्शों की ताकत के सामने समर्पण के लिये मजबूर कर देते हैं.

अपनी पुस्तक बुक ऑफ एम्ब्रासेज में, एदुआर्दो ने एक कहानी कही है जो मुझे बेहद पसंद है. मेरे लिये यह आम तौर पर लेखन का, और खास तौर पर खुद उनके लेखन का एक शानदार रूपक है.

एक बूढा और अकेला आदमी था जिसने अपना अधिकांश समय बिस्तर पर ही बिताया. उसके बारे में अफवाह थी कि उसने अपने घर में एक खज़ाना छुपा रखा है. एक दिन कुछ चोर उसके घर में घुस गये. उन्होने हर तरफ तलाश किया और उन्हें तहखाने में एक संदूक मिला. वे उसे उठाकर ले गये और जब उन्होने उसे खोला तो पाया कि वह चिट्ठियों से भरा हुआ था. वे प्रेमपत्र थे जो उस बूढ़े आदमी को पूरे जीवन के दौरान प्राप्त हुए थे. चोर उन पत्रों को जलाने वाले थे, लेकिन उन्होने इस बारे में बात की और आख़िरकार उन्हें वापस करने का फैसला लिया. एक-एक करके. हर हफ्ते एक पत्र. उसके बाद हर सोमवार की दोपहर वह बूढा आदमी डाकिये के आने की प्रतीक्षा करता. जैसे ही वह उसे आते देखता, वह दौड़ना शुरु कर देता और डाकिया, जिसे  सब कुछ पता था, अपने हाथ से एक चिठ्ठी उसकी तरफ बढ़ा देता. और संत पीटर भी, एक औरत का सन्देश पाकर खुशी से धडकते उसके दिल की आवाज सुन सकते थे.

क्या यह साहित्य का दिलचस्प नमूना नहीं है? एक घटना जिसे काव्यमय सत्य से रूपांतरित किया गया है. लेखक उन्हीं चोरों की तरह होते हैं, वे कुछ ऐसी चीज लेते हैं जो वास्तविक होती है, जैसे की चिट्ठियां, और उसे जादू की तरकीब से एक ऐसी चीज़ में तब्दील कर देते हैं जो एकदम ताज़ा हो. गालेआनो की कहानी में चिट्ठियां पहले से अस्तित्व में हैं और वे सबसे पहले उस बूढे आदमी की हैं, परन्तु वह एक अंधेरे तहखाने में बिना पढ़े ही पड़ी हुई हैं, वे मृतप्राय हैं. उन्हें एक-एक करके डाक से वापस भेजने की साधारण सी तरकीब से उन चोरों ने चिट्ठियों को एक नया जीवन और उस बूढे आदमी को एक नया भरम दे दिया. मेरे लिये गालेआनो के लेखन में यह प्रशंसनीय है: छुपे हुए खजानों को ढूँढ निकलना, भूली-बिसरी घटनाओं को नयी जीवंतता प्रदान करना, और अपने उग्र जोश के जरिये थकी हुई आत्माओं में नई जान डाल देना.

चीजें जैसी दिखायी देती हैं उससे आगे बढ़कर, लातिन अमरीका के रिसते जख्म उनकी छानबीन का निमंत्रण देती है. इस तरह की महान साहित्यिक रचना लोगों की चेतना को झकझोरती हैं, उन्हें एकजुट करती हैं, व्याख्या करती हैं, समझाती हैं, भर्त्सना करती हैं, और उन्हें परिवर्तन के लिये उकसाती हैं. एदुआर्दो गालेआनो का एक ओर पक्ष है जो मुझे बेहद आकर्षित करता है. यह व्यक्ति जिसे इतनी ज्यादा जानकारी है और जिसने सूत्रों और संकेतों का अध्ययन करके जिस तरह की भविष्यवाणी का बोध विकसित किया है, वह  आशावादी है. मेमोरिज ऑफ फायर के तीसरे खंड, सेंचुरी ऑफ विंड  में ६०० पेज तक लातिन अमरीका के लोगों के साथ किये गये नरसंहार, क्रूरता, दुर्व्यवहार, और शोषण को साबित करने के बाद तथा वह सबकुछ जो चुरा लिया गया है और जिसका चुराया जाना निरंतर जारी है, इसका धैर्यपूर्वक वर्णन करने के बाद अंत में, वे लिखते हैं-  

जीवन का वृक्ष जानता है कि चाहे कुछ भी हो जाये, उसके इर्दगिर्द नाचने वाला जोशीला संगीत कभी नहीं थमता. कितनी ही मौत क्यों न आये, कितना ही खून क्यों न बह जाये, यह संगीत आदमियों और औरतों को नृत्य कराता रहेगा तब तक जब तक हवा उनकी सांस चलाती रहेगी, खेत जुतते रहेंगे और उन्हें प्यार करते रहेंगे.  

उम्मीद की यह किरण ही है जो मुझे गालेआनो के लेखन में सबसे ज्यादा प्रेरणास्पद लगती है. इस महाद्वीप में फैले हुए हजारों शरणार्थीयों की तरह, मुझे भी 1973 के सैन्य तख्तापलट के बाद अपना देश छोड़ कर जाना पड़ा. मैं अपने साथ कुछ ज्यादा नहीं ले सकी- कुछ कपड़े, पारिवारिक चित्र, एक छोटे से बैग में अपने आँगन की थोड़ी सी मिट्टी, और दो किताबें- पाब्लो नरूदा की ओडेस का एक पुराना संस्करण और पीली कवर वाली किताब दक्षिणी अमेरिका के रिसते जख्म. बीस साल से ज्यादा बीतने के बाद भी वह किताब आज भी मेरे पास है. इसीलिये मैं इस किताब की प्रस्तावना लिखने और एदुआर्दो गालेआनो को उनके स्वतंत्रता के प्रति आश्चर्यजनक प्रेम के लिये तथा एक लेखक और दक्षिणी अमेरिका के नागरिक के तौर पर मेरी जागरूकता में योगदान के लिये सार्वजानिक रूप से धन्यवाद देने से मैं खुद को रोंक नहीं पायी. जैसा कि उन्होंने एक बार कहा था- “उन चीज़ों के लिये मरना उचित है जिनके बगैर जीना उचित नहीं.”

(अनुवाद- दिनेश पोसवाल) 

एदुआर्दो गालेआनो की विश्वप्रसिद्ध पुस्तक ओपन वेन्स ऑफ लातिन अमरीका  का हिंदी अनुवाद जल्दी ही गार्गी प्रकाशन से छपने वाला है. यहाँ उसका प्राक्कथन पोस्ट किया जा रहा है जिस पर सुधी पाठकों की राय और आलोचनाएँ आमंत्रित हैं.

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